Thursday, June 13, 2019

फ़िल्म रिव्यु: 'एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा'

फ़िल्म- 'एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा'
डायरेक्शन- शैली धर
लेखिका- ग़ज़ल धालीवाल

निहायत ही दिलचस्प हल्की फुल्की कहानी का ताना बाना जोड़ती यह फ़िल्म 'होमोसेषुअलिटी' की बात करती है। गाने, कॉमेडी, इमोशन्स को समेटे यह फ़िल्म अपने दर्शको के साथ न्याय करती नज़र आती है। हालाँकि ट्रेलर देखकर ऐसा कतई नहीं लगा था की इसका मुद्दा होमोसेषुअलिटी है।
बचपन से लेकर जवानी तक हमे हमारे 'सभ्य समाज' के द्वारा बनाई गयी एक महिला और पुरुष की परफेक्ट इमेज वाली डेफिनेशन में फिट करवाया जाता है। हालाँकि एलजीबीटीक्यों की आवाज़ एक गूंज बनके जब देश की सबसे बड़ी अदालत की चौखट पर पहुंची तो धारा 377 को निरस्त करना पड़ा।


तो कहानी क्या थी?
तो कहानी यह थी कि स्वीटी चौधरी जिसका किरदार सोनम कपूर निभा रही थी अपने भाई बबलू (अभिषेक दूहा) से भागते हुए साहिल मिर्जा (राजकुमार राव) के नाटक रिहर्सल में पहुंच जाती है।
लव एट फर्स्ट साइट को कुछ ज्यादा ही सीरियसली ले गए हमारे साहिल साहब पहुँच जाते हैं लड़की के घर मोगा। बाद में चलकर जिसमे पता चलता है कि स्वीटी को लंदन में रह रही कुहू (रेगिना कसांड्रा) नाम की लड़की से प्यार है। स्वीटी के भाई बबलू को ही केवल उन दोनों की सच्चाई का पता होता है। होमोसेषुअलिटी को 'बीमारी' का नाम देने वाला बबलू स्वीटी की शादी जल्द-से-जल्द किसी लड़के से करवाना चाहता है। ऐसे में साहिल यह ठान लेता है की वह स्वीटी के घरवालो को समझा कर रहेगा की यह कोई बीमारी नही है। अनिल कपूर जो स्वीटी के पिता का किरदार निभा रहे हैं को जूही चावला जिसका कैटरिंग का बिज़नस होता है से प्यार होजाता है।

एक्टिंग कैसी रही?
राजकुमार राव की एक्टिंग हमेशा की तरह माइंड ब्लोइंग रही। अनिल कपूर और सोनम कपूर ने भी बेटी-बाप के किरदार को जीवित करने का कम बखूबी किया है। साउथ की जानी मानी एक्ट्रेस रेगिना का भी स्क्रीन प्रजेंस काफी अच्छा था, हालाँकि इनका ज्यादा रोल नही था।

डायरेक्शन और संगीत?
ट्रेलर आते ही फ़िल्म का टाइटल ट्रैक 'एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा' पहले ही हिट हो चुका था। गुड नाल इश्क़ मिट्ठा के साथ दूसरे गाने आपको काफी इम्प्रेस करेंगे। इसमें म्यूजिक दिया रोचक कोहली ने जो काबिले तारीफ है। एक्टिंग, डायरेक्शन, सिनेमेटोग्राफी अच्छी है। कम और ज्यादा के बीच रहती यह फ़िल्म रियल लोकेशन पर शूट की गयी है।

फ़िल्म का अंत?
क्लाइमेक्स थोडा और बेहतर हो सकता था, अगर होता तो चार चाँद लग जाते। कुल मिलकर यह फ़िल्म औसत रही बीएस अंत और बेहतर ढंग से पेश किया जा सकता था। 

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