Friday, June 14, 2019

दिल्ली के टॉप मोस्ट हॉन्टेड प्लेस

1.जमाली कमली का मकबरा और मस्जिद
यह महरौली में भारतीय पार्क के पुरातत्व सर्वेक्षण में स्थित है। यह दो लोगो के नाम पर बनाई गई है शेख जमाली और कमाली। इसका निर्माण बाबर और हुमायूँ के शासनकाल के दौरान 1528-1529 इसवी में हुआ था।
जमाली कमाली की मस्जिद, एक संलग्न उद्यान क्षेत्र में स्थित है। जिसमे दक्षिण द्वारा प्रवेश किया जाता है। इस मस्जिद का निर्माण करने में लाल बलुआ पत्थर का उपयोग किया गया है और साथ ही संगमरमर द्वारा अलंकृत भी किया गया है। ये मकबरा मस्जिद के उत्तरी दिशा के निकट स्थित है। कक्ष के भीतर की सपाट छत को चिपकनेवाली पट्टी से बनाया और सुशोभनाता से अलंकृत किया गया है। इस कक्ष को लाल और नील रंग से रंगा गया है और साथ ही उसपर कुरान की कुछ आयतों का भी उल्लेख किया गया है। मकबरे की कक्ष की दीवारो पर रंगीन टाइल्स लगायी गयी है जिनपर जमाली की कविताओं को लिखा गया है। मकबरे की सजावट को एक गहने की पेटी में घुसने की धारणा से की गयी है। जमाली कमाली मस्जिद और मकबरे, के समाधि कक्ष में संगमरमर से बानी दो कब्रे है : एक जमाली की, जो एक संत व् कवि थे और दूसरी कमाली की। जमाली कमाली के मकबरे में 12 कब्र और भी बनीं हुई है इसके अलावा भी कई कब्रे है लेकिन यह सभी कब्रे अज्ञात श्रेणी में आती है।
कौन थे जमाली?
जमाली का असली नाम शेख फेजलुल्लाह था जिन्हें महान सूफ़ी संत के रुप में जाना जाता था। जमाली अपने दौर के प्रख्यात कवि थे। इतिहासकारों की मानें तो अपनी एक यात्रा के दौरान वह दिल्ली आए थे जहां लोधी वंश के शासनकाल में वह कवि बनकर रहने लगे। वह बाबर और हुमायूं के दरबारी कवि भी हुआ करते थे। शेख़ फेज़लुल्लाह को ज़माली नाम उनकी लोकप्रिय कविताओं की वजह से ही मिला था। इसी नाम से जमाली कमाली मस्जिद की स्थापना की गई। मस्जिद में दो कब्र स्थापित है एक जमाली की और दूसरी कमाली की, ऐतिहास के पन्नों में केवल जमाली का जिक्र किया गया है। कमाली कौन थे क्या उनका इतिहास रहा इस बात की जानकारी उपलब्ध नहीं है।
भूतिया होगयी है यह जगह
आज कई बातें सामने आ रही है।भूतिया अड्डो में शामिल जमाली कमाली मस्जिद के बड़े से आंगन में सुबह से लेकर शाम तक स्थानीय बच्चे खेलते है।लेकिन रात होते ही यहां कोई नहीं रुकता स्थानीय लोग से इसे भूतिया अड्डा मानते है जहां रात होते ही जिन्न की टोली लग जाती है। कुछ लोगों ने यहां रहस्यमयी आवाज़े सुनी है तो कुछ यहां अदृश्य रुह होने की बात कहते है।

2.मालचा महल
दिल्ली के दक्षिण रिज़ के बीहड़ों में छुपा ‘मालचा महल’ जिसमे पिछले 28 सालो से अवध राजघराने के वंशज राजकुमार ‘रियाज़’ (Prince Riaz) और राजकुमारी ‘सकीना महल’ (Princess Sakina Mahal) रह रहे है।   पहले इनके साथ इनकी माँ ‘विलायत महल’ भी रहा करती थी जिन्होंने 10 सितंबर 1993 को आत्महत्या कर ली थी।  इस महल तक जाने का रास्ता सरदार पटेल मार्ग से जाता है। लेकिन इस महल में अंदर जाने की इज़ाज़त किसी को नहीं है। उस महल तक पहुंचने के एक मात्र रास्तेल पर लगा है लोहे का ग्रिल, जिस पर हल्की-सी आहट होते ही  कुत्तेा भौंकना  शुरु कर देते हैं । चारों ओर कंटीली तार के बाड़े से घिरे उस महल के प्रवेश द्वार पर लगे पत्थर पर लिखा है, रूलर्स ऑफ अवध: ‘प्रिंसेस विलायत महल’  ।
जब 1985 में विलायत महल यहाँ रहने आई थी तो उनके साथ उनके बच्चो के अलावा 12 कुत्ते और पाँच नेपाली नौकर साथ थे। लेकिन आज यहां कोई नही है । पिछले ही साल सितंबर 2017 में प्रिंस ऑफ अवध की गुमनाम मौत होगयी।
फ़िरोज़ शाह तुगलक ने कराया था निर्माण ( Built by Feroz Shah Tughlaq) :
अब लगभग खंडहर हो चुके इस महल का निर्माण आज से 700 साल पूर्व फ़िरोज़ शाह तुगलक ने कराया था। यह महल उसकी शिकारगाह था। पहाड़ी पर बने इस महल में करीब 10 खिड़की और दरवाज़े है पर इनमे से एक किवाड़ नहीं है। इस चौकोर रूप के महल के हर ओर 6 यानी कुल 24 मेहराब (आर्च) हैं।
कैसे पहुँची विलायत महल मालचा
इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री बनने से पूर्व सभी राजा – महाराजाओं को सरकार की तरफ से पेंशन मिला करती थी पर जब इंदिरा गांधी, प्रधानमन्त्री बनी तो उन्होंने पेंशन बंद कर दी।  इससे उन राजा – महाराजाओं के तो कुछ फर्क नहीं पढ़ा जिनके पास या तो पुश्तैनी दौलत थी या फिर कमाई के अन्य स्रोत थे।  लेकिन जिनके पास दोनों में से कुछ नहीं था उनके सामने संकट खड़ा हो गया।  इनमे से ही एक थी विलायत महल, जिनके पति कि मृत्यु हो चुकी थी  और कमाई का कोई स्रोत नहीं था। कोई उपाय न देखकर विलायत महल ने सन 1975 में अपने दोनों बच्चेl रियाज व सकीना सहित , 12 कुत्तों और और पांच नौकरों के साथ लखनऊ से दिल्ली की ओर रुख किया और यहां के नई दिल्ली रेलवे स्टे शन के एक प्लेोटफॉर्म पर डेरा डाल दिया। बाद में वह अपने कुनबे के साथ प्लेईटफॉर्म से उठकर वीआईपी वेटिंग लांज पहुंची और वहां कब्जा कर लिया। लगातार धरना और मांग के चलते इंदिरा गांधी ने उन्हें कहीं और रहने के लिए ठिकाना उपलब्ध कराने का वचन दिया। विलायत महल की मांग थी कि उन्हें रहने के लिए ऐसी जगह मुहैया कराई जाए, जहां आम आदमी उनकी जिंदगी में ताक-झांक न कर सके। जगह की तलाश खत्म हुई सरदार पटेल मार्ग स्थित सेंट्रल रिज एरिया में ।
10 सितम्बर 1993 को विलायत महल ने आत्महत्या कर ली थी
कहते है की वो गुमनामी से डिप्रेसन में चली गई थी इसलिए उन्होंने अपनी अंगूठी के हीरे को तोड़कर खा लिया था। उनके बच्चो ने पहले उन्हें दफना दिया था, लेकिन 1994 में खजाने के लिए उनकी कब्र को खोदने की घटना के बाद उनके बेटे ने उन्हें निकालकर जला दिया।
राजकुमार की भी मौत होगयी
अवध राजघराने के राजकुमार अली रजा (साइरस) की गुमनामी में मौत हो गई। 2 नवंबर को पुलिस ने उनका कंकाल सेंट्रल रिज एरिया स्थित मालचा महल से बरामद किया था। 58 वर्षीय राजकुमार वहां 25 वर्ष से रह रहे थे। मां और बहन की मौत के बाद अली रजा महल में अकेले थे। उनका बाहर की दुनिया से ज्यादा संपर्क नहीं था।
दिल्ली के टॉप मोस्ट हॉन्टेड प्लेस में होता है शुमार
लोगो का मानना है की बेगम विलायत महल की आत्मा आज भी इसी महल में भटकती है और इसलिए इस जगह को दिल्ली के टॉप हॉन्टेड प्लेस में शामिल किया जाता है।  अब ये हॉन्टेड है या नहीं, पता नहीं, लेकिन इतना जरूर यह जगह रात को डरावनी और दिन में रहस्यमयी नज़र आती है।

3.खूनी दरवाज़ा
खूनी दरवाजा बहादुरशाह जफर मार्ग पर दिल्ली गेट के निकट स्थित है
 मुस्लिम शूर साम्राज्य के संस्थापक शेरशाह सूरी द्वारा बनवाये गये फिरोज़ाबाद के लिये इस द्वार को बनवाया गया था जिसे काबुली बाज़ार के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि अफ्गानिस्तान से आने वाले लोग इस द्वार से गुजरते थे। यह 15.5 मीटर ऊँचा दरवाजा दिल्ली के क्वार्टज़ाइट पत्थर का बना है। खूनी दरवाजे में तीन स्तर हैं जिनपर इसमें स्थित सीढ़ियों के माध्यम से पहुँचा जा सकता है।
22 सितम्बर 1857 को बहादुरशाह जफर के आत्मसमर्पण के बाद ब्रिटिश नेता विलियम हडसन द्वारा मुगल वंश के तीन राजकुमारों का कत्ल कर दिया गया था जिसमें बहादुरशाह जफर के बेटे मिर्जा मुगल और खिज्र सुलतान और पोता मिर्जा अबू बख्र शामिल थे। इसलिये इस गेट का नाम खूनी दरवाजा पड़ा। हलाँकि इसके अलावा इस गेट के नाम के बारे में कई अन्य किंवदन्तियाँ प्रचलित हैं।
जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं-

  • ऐसा माना जाता है कि अकबर के बेटे जहाँगीर ने अकबर के नवरत्नों में से एक, अब्दुल रहीम खानखाना के बेटों को इस गेट पर मरवा दिया था और उनके शरीर को सड़ने के लिये लटका दिया था क्योंकि अब्दुल रहीम ने अकबर के उत्तराधिकारी जहाँगीर के खिलाफ बगावत की थी।
  • ऐसा भी कहा जाता है कि औरंगज़ेब ने अपने बड़े भाई को राजगद्दी की दौड़ में पिछाड़ दिया था और उसके कटे हुये सिर को इसी गेट पर प्रदर्शनी के रूप में लटका दिया था।
  • ऐसा भी कहा जाता है कि जब 1739 में पारस के राजा नादिर शाह ने दिल्ली को लूटा था तब इस गेट पर बहुत रक्तपात हुआ था।
  • स्वतन्त्रता के पश्चात भी 1947 के दंगों में भी खूनी दरवाजे पर काफी रक्तपात हुआ था। पुराना किला स्थित कैंप की ओर जाते हुये कई शर्णार्थियों को यहाँ पर मौत के घाट उतार दिया गया था।

आज यह दरवाजा भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित स्मारक है। हलाँकि वर्ष 2002 में इस गेट पर घटी एक अप्रिय घटना के फलस्वरूप अब इसे पूरी तरह से सील कर जनता के प्रवेश के लिये प्रतिबन्धित कर दिया गया है।

4.भूली भटियारी
लोकेशन
ये महल दिल्ली के करोल बाग में ही है । बस भीड़ – भाड़ से दूर, दक्षिण की ओर बढ़ते एक वीराने में बना है ये ‘भूली भटियारी महल’ । करोल बाग स्थित बग्गा लिंक के बैक साइड से होती हुई एक सुनसान रोड इस वीरान जंगल तक जाती है ।
इतिहास
14 वीं शताब्दी में दिल्ली के तत्कालीन शासक फिरोज शाह तुगलक द्वारा इस शिकारगाह का निर्माण करवाया गया था। जो शिकार वगैरह के न होने के समय सराय के रूप में भी इस्तेमाल की जाती रही थी।
नाम के पीछे का कारण
इतिहासकार इसकी रखवालन  बु-अली-भट्टी के नाम पर इसका नामकरण मानते हैं तो कुछ भटियारा परिवार की महिला जो जंगल में गुम हो गयी थी, के नाम पर इसकी पहचान को मानते हैं, तो कुछ इसकी देख-रेख करने वाली भूरी के नाम पर इसका नाम रखे जाने को अहमियत देते हैं।
लेकिन तुगलक वंश के बाद ये जगह एक सूफी संत का निवास स्थान बनी । इन सूफी साहब का नाम था ‘बू अली बख्यितयारी’ । ये नाम बोलने में इतना कठिन था कि लोगों ने उसे कुछ ‘भूली भटियारी’ कहना शुरू कर दिया । और इसी नाम से महल का नाम ‘भूली भटियारी महल’ पड़ गया ।
नाम के पीछे ये है तीसरी कहानी
वहीं दूसरी कहानी है ये भटियारिन की । भटियारिन यानी राजस्थान के आदिवासी कबीलों की एक महिला जो अपना रास्ता भूल गई । उसे ही ये जगह मिली और वो यहीं की हो गई । इस महिला के बाद इस जगह को ‘भूली भटियारी’ कहा जाने लगा । ये नाम स्थानीय लोगों में प्रचलित हुअा और आज भी इसी नाम से ये जगह जानी जाती है ।
भूतिया कहे जाने वाले इस महल को कुछ समय पहले उन 18 स्मारकों की सूची में शामिल किया गया है, जिसका संरक्षण किया जाना है। दिल्ली पुरातत्व विभाग ने इस संबंध में एक विस्तृत रिपोर्ट भी तैयार की थी। ऐसा दावा किया जाता है कि संरक्षण के बाद इस महल का लुक बदल जाएगा फिर इसे कोई भी भूतिया महल नहीं कहेगा।

5.करबला कब्रिस्तान
यहां आखिरी व्यक्ति को 1985 में दफनाया गया था। यह मध्य दिल्ली के बीके दत्त कॉलोनी में शिया बोरियल ग्राउंड करबाला, विशेष रूप से तज़ियास के अंतिम संस्कार के लिए आरक्षित है। इमाम हुसैन इब्न अली के ताबूत हैं जो प्रॉफेट के पोते हैं।  हर साल मुहर्रम के 10 वें दिन, शाहजहानाबाद के शिया शोक करने वाले, मेहरौली और निजामुद्दीन हुसैन की शहीद मनाने के लिए इकट्ठे होते हैं।
करबाला जमीन भूरी और शुष्क है; कब्र, एक दूसरे से कुछ और दूर, एक खूबसूरत महासागर में आधे-पत्थर वाले जहाजों की तरह दिखाई देती हैं। लेकिन इसमें नीलगिरी, शीशम, केकर, जामुन और ताड़ के पेड़ हैं।
कब्रिस्तान का एक हिस्सा एक नर्सरी में विकसित किया गया है। संलग्नक दीवार मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय (1759 -1806) के शासनकाल में बनाई गई थी। जमीन के केंद्र में सम्राट की पत्नी महा खानम की मकबरा है। यह एक चौकोर इमारत है, हल्का हरा चित्रित है। अंदर, एक सीढ़ी एक घुमावदार कक्ष में जाती है, जिसमें एक संगमरमर की कब्र है। मकबरे के प्रवेश द्वार में एक पानी कूलर है।

6. दिल्ली कैंटोनमेन्ट
पश्चिमी दिल्ली में स्थित दिल्ली कैंट की स्थापना सन 1914 में अँग्रेजों द्वारा करा गया था आज जो कंटोनमेंट बोर्ड दिल्ली,वही फरबरी 1938 तक ये कैंट अथॉरिटी से जाना जाता था।

  • दिल्ली कैंट एक उच्य स्तरीय छावनी बोर्ड है।
  • दिल्ली छावनी में भारतीय सेना मुख्यालय, दिल्ली क्षेत्र है; आर्मी गोल्फ कोर्स; रक्षा सेवा अधिकारी संस्थान; सैन्य आवास; सेना और वायुसेना पब्लिक स्कूल; और कई अन्य रक्षा-संबंधित प्रतिष्ठानों। छावनी में आर्मी रिसर्च और रेफरल अस्पताल और बेस अस्पताल भी भारत की सशस्त्र बलों के एक तृतीयक देखभाल चिकित्सा केंद्र हैं।

वर्तमान में, छावनी कैंटोनमेंट्स अधिनियम, 2006 और समय-समय पर जारी भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय (एमओडी) के विभिन्न नीति पत्रों और निर्देशों द्वारा चलता है।
भूत की कहानी
 इस छावनी में एक कहानी बहुत ज्यादा मशहूर है  ऐसा लोगो का  कहा मानना है कि एक औरत,खुले बाल और सफेद साड़ी में मुसाफिरों से लिफ्ट माँगती है । और जब तक वो नही देता है उसका अपने दायरे तक पीछा करती है लोगो का मानना है कि जिन लोगो ने लिफ्ट दिया इसने उसको मार दिया।
 बहोत लोगो का ये भी कहना है कि इस औरत का एक्सीडेंट हो गया था इसलिए  लोग ज्यादातर ये ही हिदायत देते है कि जब कभी ये भूतिया औरत आपके आगे आ जाए तो आप गाड़ी को रोकिये मत चलते चले जाइए। ऐसे में वो पीछे रह जाती है अपने दायरे को पर नही करती है
 कुछ लोगों का मानना है कि यह भूतनी द्वारका सेक्टर9 के आस-पास भी भटकती हुई नजर आती है।यह भूतनी कौन है और यह आने जाने वालों से क्यों लिफ्ट मांगती है इस बात का पता नहीं चल पाया है।
कुछ कहते हैं कि वह कई दुर्भाग्यपूर्ण लड़कियों में से एक थीं जो बीमार दिमाग की वासना का शिकार हो गईं, जिसे भारत की बलात्कार राजधानी कहा जाता है।

7.म्युटिनी हाउस
यह स्मारक 1857 में मारे गए सिपाहियों की याद में अंग्रेजों ने बनवाया था। हां, यादें और साए अभी भी इस इमारत के आसपास रहते हैं। इसलिए इसे डरावना माना जाता है।

8.फ़िरोज़ शाह कोटला किला
इतिहास
दिल्ली के पाँचवे शहर फ़िरोज़ाबाद के इस महल का निर्माण सुल्तान फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ ने करवाया था। कहा जाता है कि कभी ये भव्य किला हुआ करता था जिसमे कई बेशकीमती पत्थर लगे होते थे जिनका नामोनिशान आजकल इधर नहीं मिलता। समय के बीतने के साथ दक्षिण (दीनपनाह और शेरगढ़ ) और उत्तर(शाहजहाँनाबाद) में शहरों के निर्माण के लिए इधर से इन बेशकीमती पत्थरों को निकाल लिया गया था। वैसे फिरोजाबाद के निर्माण के लिए भी सामान पुराने शहरों जैसे सिरी, जहापनाह और लाल कोट से ही लाया गया था। अग्रेजी की कहावत व्हाट गोज अराउंड कम्स अराउंड इधर चरित्रार्थ होती है।
किले में देखने लायक हिस्से हैं :

  • किले के खंडहर जिन्हें कि अब तक  सुरक्षित रखा गया है।
  • बावली यानी एक कुआँ। यह कुआँ अब  खुला हुआ नहीं है। 2014 में इसमे कूद कर एक व्यक्ति ने आत्महत्या कर ली थी और इसी कारण इसे बंद रखा हुआ है। इसके चारो ओर एक धातु की फेंस का निर्माण कर दिया गया है जिसके कारण पर्यटक इसमें प्रवेश नहीं कर सकते हैं। इधर एक बोर्ड लगा हुआ था कि यह कभी किले के लिए पानी का मुख्य स्रोत हुआ करता था। यह अभी भी इधर के बागों को पानी देने के काम आती है।
  • एक पिरामिडीय इमारत  जिसके सबसे ऊपरी हिस्से पे एक अशोक स्तम्भ स्थापित किया हुआ है। इस इमारत का निर्माण इस स्तम्भ को स्थापित करने के लिए ही किया गया था। इस स्ट्रक्चर के हर हिस्से में कई कोठरियाँ बनी हुई हैं जिनके अन्दर लोग दिया बत्ती करते हैं।

किले के ऊपर का अशोक स्तम्भ
किले के ऊपर जो अशोक स्तम्भ रखा हुआ है। इस स्तम्भ के विषय में कहा जाता है कि इसे राजा अशोक ने 273  से 236 ई.पू में अम्बाला हरयाणा में खड़ा किया था। फिर फ़िरोज़ शाह तुगलक इसे दिल्ली लाया था और इसे उसने इधर लगवाया था। पहले वो इसे तोड़कर इसका दोबारा उपयोग करना चाहते थे लेकिन फिर तुगलक ने इसे ऐसे ही मस्जिद के सामने लगवा दिया। इसमें ब्राह्मी में  कुछ सन्देश अंकित किये हुए हैं जिनका मतलब उस वक्तयानी 1356 में  उन्हें पता नहीं था। लगभग 500 साल बाद 1837 में जेम्स प्रिन्सेन नामक शख्स ने इनका अनुवाद किया बाकी मिली स्तंभों और शिलालेखों की मदद से किया।

9.खूनी नदी, रोहिणी
असल में उद्गम
रोहिणी अथवा रोहिणी नदी का उद्गम नेपाल के लुम्बिनी क्षेत्र के रूपनदेई और कपिलवस्तु जिलों में शिवालिक पर्वत की चौरिया पहाड़ियों से होता है और यह दक्षिण की ओर बहते हुए भातरीय राज्य उत्तर प्रदेश में प्रवेश करती है। गोरखपुर के पास यह राप्ती नदी में बायीं ओर से मिलती है जो इसके बाद गौरा बरहज में घाघरा में मिल जाती है तथा घाघरा बाद में गंगा में मिलती है।
लेकिन आज का माहौल
रोहिणी के कम शोर गुल वाले इस इलाके में यूं भी कम लोग आते हैं। नदी के आसपास कोई नहीं जाता है। कारण, नदी के किनारे लाश मिलना। हत्या, आत्महत्या, दुर्घटना कारण चाहे जो हो, यहां नदी किनारे लाशें मिलना आम बात हो गई है। यही कारण है कि लोग इसे डरावनी जगहों में शुमार करते हैं।

10.हाउस नंबर डब्ल्यू-3
कहा जाता है दिल्ली के सबसे पॉर्श इलाकों में से एक ग्रेटर कैलाश-1 के हाउस नंबर डब्ल्यू-3 पर जाने से हर कोई कतराता है। इस घर में एक बुजुर्ग दंपत्ति की हत्या कर दी गई थी और उनके शव को करीब एक महीन के बाद घर की टंकी से निकाला गया था। घर के आसपास रहने वाले लोगों का कहना है कि इस घटना के बाद से उन्हें यहां रोने और चीखने-चिल्लाने की आवाजें कई बार सुनाई देती हैं।

11.संजय वन
दशा
 संजय वन भारत के दिल्ली में वसंत कुंज और मेहरौली के पास एक विशाल शहरी  वन क्षेत्र है। यह लगभग 783 एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ है। यह शहर के ग्रीन लुंगस के सबसे मोटे तौर पर जंगली इलाकों में से एक है।
चिंता का विषय
 जंगल जो की मेहरौली दक्षिण मध्य रिज का हिस्सा है, इसमे हाल के दिनों में प्रोसोपिस जूलिफ्लोरा पेड़ के प्रसार में  गंभीर गिरावट आई है, जो अरावली रेंजसंद के लिए गैर-स्थानिक है, जिससे भूजल स्तर में कमी आई है, मूल वनस्पति की हत्या हुई है और अरवलिस की प्राकृतिक मिट्टी की विशेषताओं को बदलना। सीवेज पानी और प्रदूषण जिसे संजय वन में छोड़ा जाता है, इसने राजधानी में इस हरे रंग की बेल्ट को भी प्रभावित किया है।
जंगल की कहानी
इस जंगल में बहुत से पुराने बरगद के पेड़ हैं इसलिये यहां पर आने वाल कई शिकारी बताते हैं कि उन्होंने एक औरत को सफेद कपड़ों में बरगद के पेड़ के पीछे छुपते हुए देखा है।
बहुत से लोगों का कहना है कि यहां उन्होंने भूतों और चुड़ैलों को देखने के अलावा कई बार बच्चों के रोने की आवाजें भी सुनी हैं।

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