Wednesday, June 12, 2019

मालचा महल : एक अनसुना सच


चित्र साभार: गुगल
महल चाहे किस भी हाल में हो अपना बखान करने से कभी नही चूकता। ऐसा ही है मालचा महल कहा जाता है वहां भूतों का वास है, आस पास के लोग तो यह भी कहते हैं कि रात में उस महल से न जाने कैसी कैसी डरावनी आवाज़ें आती हैं। इसके पीछे का सच क्या है यह तो बस वो खंडर हो चुका महल जानता है।
तो क्या थी कहानी मालचा की?
दिल्ली के दक्षिण रिज़ के बीहड़ों में छुपा ‘मालचा महल’। कहते हैं अवध राजघराने की बेगम विलायत महल के आग्रह पर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा ये महल उन्हें आवास के रूप में दिया गया था। बेगम विलायत महल अपने दो बच्चो प्रिंस रियाज़ और बेटी  व 9 कुत्ते और 7 नौकरों के साथ यहां आकर बस गयी थी। कुछ दिन बाद सभी नौकर उन्हें छोड़कर चले गए कहते हैं नौकरों द्वारा चोरी के कारण बेगम विलायत महल बेहद आहत हुई। आस पास के गाँव वालों द्वारा काफी परेशान किये जाने पर बेगम विलायत महल ने आत्महत्या कर ली अभी माँ के जाने का दुःख खत्म भी नही हुआ था कि कुछ साल बाद बहन भी गुज़र गयी। आस पास के लोगों द्वारा काफी परेशान किये जाने पर प्रिंस को एक पिस्तौल भी दी गयी थी जिससे उन्हें शूट-एट-साइट के आर्डर दिए गए थे।
समाज के प्रति रवैया?
कहते हैं बेगम विलायत महल द्वारा केवल एकबार ही इंटरव्यू दिया गया है वह भी किसी विदेशी चैनल को। उनका मानना था कि हम शाही लोग हैं हमें आम इंसानो से बात करना उनकी तरह रहना या उनसे मिलना मिलाना शोभा नही देता। आज के ज़माने में न नौकरी, न गुज़ारे के लिए कोई भत्ता, न कोई दोस्त (हालांकि भारत सरकार द्वारा कुछ पैसे दिए जाते थे) समाज में रह कर समाज से भला कहाँ कटा जा सकता है।

https://www.scoopwhoop.com/Malcha-Mahal-haunted-tragic-story/

आस पास वालों का कहना है कि प्रिंस काफी कम लोगो से बातें करते थे। न ही वो मिलनसार थे और न ही उनके कोई दोस्त, हालांकि सब्जी,दूध और रोज़मर्रा की चीज़ों के लिए वह अपनी साईकल से ही बाहर निकलते थे। परिवार का न होना इंसान को बहुत अकेला करदेता है। 2016 में प्रिंस भी चल बसे अब यह महल सरकार के अधीनस्थ है।
ऐसे में सवाल क्या बनता है?
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या हम इतने असंवेदनशील हैं कि एक परिवार जो अपने हिसाब से ज़िन्दगी जीना चाहता है हम उसे भी इस हद तक परेशान करदें की वह आत्महत्या कर ले? या क्या हम समाज मे ही रहकर समाज से कट सकते है? आखिर क्या मजबूरी थी बेगम विलायत महल की कि उन्हें एक आम ज़िन्दगी तो जीना मंजूर थी लेकिन किसी से मदद लेना मंजूर नहीं था।
दिल्ली में ऐसे न जाने कितने महल, किले, हवेली, रोड़ हैं जो अजीबों गरीबों चीज़ो के लिए जाने जाते है। कुछ लोग इन्हें भूतियां कहकर पीछे हट जाते हैं और कुछ लोग तांत्रिक चीज़ो से सरोबार कहकर।
आखिर किसी महल का भूतियां हो जाना क्या दर्शाता है? या कोई जगह जब खुद अपने बारे में चिल्ला चिल्लाकर बताती है तब उसे भूतियां कहा जाता है?

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