राजस्थान के जंझुनू जिले का एक छोटा-सा कस्बा जहां होती है 'मूक रामलीला'
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मूक रामलीला की एक झलक |
अद्भुत, अनुपम, प्राचीन, वास्तुकला, काष्ट नक्काशी और आभूषण निर्माण कला में महारत रखने वाले कारीगरों का नगर बिसाऊ करीब 2 किलोमीटर के क्षेत्र में 30,000 जनसंख्या को आँचल में समेटे हुए है।
कला को समर्पित यह बिसाऊ आज भी लगभग 176 साल पुरानी अपनी धरोहर को बचाने में दिन रात व सुबह शाम प्रयासरत है। यह है 'मूक रामलीला'। जी हां आपने सही पढ़ा 'मूक'। इसका सबसे बड़ा आकर्षण यही है कि यह मूक होती है सभी पात्र मुखौटे का प्रयोग करते हैं, पात्रों की पहचान उनका मुखौटा होता है उनका नाम नही।
रामलीला का सबसे प्रथम मंचन कहाँ हुआ? कब हुआ? कैसे हुआ? किसने किया? इसका कोई प्रामाणिक दस्तावेज उपलब्ध नही है। भारत में रामलीला परम्परागत रूप से भगवान राम के चरित्र पर आधारित नाटक है।
झुंझुनू जिले के बिसाऊ में हो रही इस रामलीला का अगर इतिहास खंगाला जाए तो पता चलेगा कि 200 वर्ष पूर्व यहां एक साध्वी हुआ करती थी जिनका नाम जमना देवी हुआ करता था। गाँव के बड़े बुजुर्गों का मानना है कि वह गांव के सभी बच्चो को इकट्ठा कर उनसे यह रामलीला करवाया करती थी चूंकि बच्चों को संवाद याद करने में दिक्कत होती थी इसलिए वह मुखौटा पहनकर अपना अपना अभिनय करते थे। तबसे लेकर आज तक यह मूक रामलीला बिसाऊ में निरंतर होती आ रही है।
अलग-अलग तरीकों और अलग-अलग भाषाओं में रामलीला का मंचन पूरे देश में किया जाता है। हालांकि पूरे देश में रामलीला का मंचन विजयादशमी या दशहरा उत्सव पर किया जाता है। लेकिन बिसाऊ में होने वाली यह ऐतिहासिक रामलीला काफी अलग है जो इसकी विश्वसनीयता में चार चांद लगा देती है। श्राद्ध पक्ष की समाप्ति के तुरंत पश्चात 15 दिनों यानी प्रथम नवरात्रि से शुरू होकर पूर्णिमा तक यह रामलीला चलती है। इस बीच रामलीला प्रेमियों से यह पूरा क्षेत्र पटा हुआ होता है। इसमे न किसी प्रकार की संवाद अदायगी होती है और न ही कोई मंच होता है, बल्कि कलाकार विभिन्न पात्रों का स्वांग रचकर अपने अभिनय के जरिये सड़क पर नाच कर प्रस्तुत करते हैं। इस मूक रामलीला का समापन पूर्णिमा के दिन भरत मिलाप व रामचंद्र जी के राज्याभिषेक के रूप में होता है। आज भी वानर सेना के रूप में इसमे बिसाऊ के सभी बच्चे बारी बारी से अभिनय करते हैं।
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रामलीला देखते लोग |
अलग-अलग तरीकों और अलग-अलग भाषाओं में रामलीला का मंचन पूरे देश में किया जाता है। हालांकि पूरे देश में रामलीला का मंचन विजयादशमी या दशहरा उत्सव पर किया जाता है। लेकिन बिसाऊ में होने वाली यह ऐतिहासिक रामलीला काफी अलग है जो इसकी विश्वसनीयता में चार चांद लगा देती है। श्राद्ध पक्ष की समाप्ति के तुरंत पश्चात 15 दिनों यानी प्रथम नवरात्रि से शुरू होकर पूर्णिमा तक यह रामलीला चलती है। इस बीच रामलीला प्रेमियों से यह पूरा क्षेत्र पटा हुआ होता है। इसमे न किसी प्रकार की संवाद अदायगी होती है और न ही कोई मंच होता है, बल्कि कलाकार विभिन्न पात्रों का स्वांग रचकर अपने अभिनय के जरिये सड़क पर नाच कर प्रस्तुत करते हैं। इस मूक रामलीला का समापन पूर्णिमा के दिन भरत मिलाप व रामचंद्र जी के राज्याभिषेक के रूप में होता है। आज भी वानर सेना के रूप में इसमे बिसाऊ के सभी बच्चे बारी बारी से अभिनय करते हैं।
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रामलीला में अभिनय करता एक कलाकार |
कस्बे के चुरू लिंक रोड पर नीलकंठ महादेव की 132 फ़ीट ऊंची प्रतिमा भी श्रद्धालुओं व पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। प्रतिमा के साथ साथ यहां शिव परिवार, अष्ट विनायक, नवग्रह देवता, द्वादश ज्योतिर्लिंग तथा हरियाली चादर ओढ़े हुए बगीचा भी देखने लायक है।
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नीलकंठ महादेव की 132 फ़ीट ऊंची प्रतिमा |
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