Tuesday, January 28, 2020

दिल्ली का पहला 'आदर्श गांव'

भाटी गांव का द्वार
अपनी दिल्ली चुनावी यात्रा में हम पहुँचे दिल्ली के पहले आदर्श गांव में...
दिल्ली-हरियाणा के बॉर्डर से सटा ये गांव है भाटी खुर्द, भाटी माइंस। साउथ दिल्ली के मेन छतरपुर रोड के अंतिम कोने पर स्थित ये दिल्ली का पहला आदर्श गांव है। दिल्ली-हरियाणा बॉर्डर पर स्थित इस गांव के दाहिनी तरफ असोला गांव और बाईं ओर डेरा मांडी गांव हैं। ये छतरपुर मेट्रो स्टेशन से लगभग 40 मिनट के रस्ते पर है।
गांव की शुरुआत कुछ ऐसे नज़ारों से।

2014 में पीएम नरेंद्र मोदी की सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत भाटी माइंस दिल्ली का पहला मॉडल गांव बना। साउथ दिल्ली से बीजेपी सांसद रमेश बिधूड़ी ने इस गांव को गोद लिया था। गांधी जी के सपनों के आधार पर इस गांव को मॉडल गांव बनाया जाएगा ऐसा कहा जा रहा था।
भाटी माइंस को मॉडल गांव के रूप में विकसित करने के लिए दिल्ली बड़ी बड़ी टीमों द्वारा स्टडी करवाई गयी थी, तमाम सर्वे करवाये गए थे, ताकि यहां रहने वाले लोगों को हर तरह की जरूरी सुविधाएं मिल सकें।
मूलभूत सुविधाओं से वंचित है यह गांव।

सांसद रमेश बिधूड़ी के गोद लिए इस 'आदर्श' गांव में इलाज के लिए आज तक भी कोई डिस्पेंसरी नहीं है। अस्पताल गांव से लग 5-6 किलोमीटर की दूरी पर है। पढ़ने के लिए बच्चे आज भी गांव से दूर वाले स्कूलों में जाते हैं।
यहां ज्यादातर लोग बाहर के राज्यों से आकर बसे हैं। श्यामकली नाम की एक ग्रामीण महिला बताती हैं कि 'इस गांव में आधे से ज्यादा लोग किरायेदार हैं'। गांव की शुरुआत में ही घरों की टूट फुट हुई है। ये वही टूटे हुए घर हैं जिन्हें सरकार की ज़मीन कह कर तोड़ा गया है।
भाटी गांव की श्यामकली आंटी।

इस क्षेत्र को 1976 (छियत्तर) में भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पुत्र संजय गांधी द्वारा बसाया गया था। वहीं से इसका नाम संजय कॉलोनी पड़ा। तब यहां लगभग 200 घर बने थे। पहले ये केवल एक गांव था। यहां के लोग गांव सभा के मतदाता थे। फिर 1991(इक्यानवे)  में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर एक नोटिस जारी कर इसे रिज़र्व्ड फॉरेस्ट एक्ट के तहत वन विभाग के अधीन कर दिया गया।



Monday, January 6, 2020

युवाओं को बहकाना आसान है

इससे बुरा क्या ही होगा कि नेता/राजनेताओं द्वारा फैलाई गयी नफ़रतों के इस दौर में जब युवाओं को मोहोबत्त का झंडा उठा लेना चाहिए था, जिसे आज बिगड़ती व्यवस्था के खिलाफ आंदोलन खड़ा कर देना चाहिए था, जिन्हें अभी तक अपने देश-परिवार-समाज के लिए विकास की क्रांति ला देनी चाहिए थी, जिन्हें अभी तक नौकरियों, अच्छा लाइफस्टाइल, बेटर अर्थव्यवस्था और एक सुरक्षित समाज की मांग के लिए सड़कों पर आना था वही युवा आज दूसरे युवाओं को मारने के लिए हाथ में डंडे, भाले, चाकू-छुरी लेकर खड़ा है। बुरा है। बहुत बुरा है। 
राजनीतिक प्रक्रिया फिलहाल निष्क्रिय है, लकवाग्रस्त है।बेशक लोग सड़को पर हैं और उनकी सोच मजबूत है लेकिन यह सोच और आवाज़ अभी भी बिखरी हुई है। इस सोच को बटोरकर इकट्ठा करने की जरूरत है।
जरूरत है कि हम सभी बचकर रहें। युवाओं को बहकाया जाना आसान है और इसी लिए सबसे पहला टारगेट हम ही होते हैं/युवा होता है। अफवाहों और गलतबयानी की रेत उड़ रही है, किसी का चेहरा साफ दिखाई नही दे रहा। कुछ चेहरों पर रेत की परत है; कुछ आंखों पर रेत का पर्दा है। सबकुछ धुंधला है । सबकुछ। बचकर रहिये।

भारत के मेले: छत्तीसगढ़ का 'मड़ई मेला' जहां मिलता है औरतों को संतान प्राप्ति का आशीर्वाद

ये छत्तीसगढ़ में लगने वाला एक मेला है, गंगरेल मड़ई। दीवाली के बाद पहले शुक्रवार को यह मड़ई मेला आयोजित करवाया जाता है। इस साल भी लगा था। जो इन ...