इससे बुरा क्या ही होगा कि नेता/राजनेताओं द्वारा फैलाई गयी नफ़रतों के इस दौर में जब युवाओं को मोहोबत्त का झंडा उठा लेना चाहिए था, जिसे आज बिगड़ती व्यवस्था के खिलाफ आंदोलन खड़ा कर देना चाहिए था, जिन्हें अभी तक अपने देश-परिवार-समाज के लिए विकास की क्रांति ला देनी चाहिए थी, जिन्हें अभी तक नौकरियों, अच्छा लाइफस्टाइल, बेटर अर्थव्यवस्था और एक सुरक्षित समाज की मांग के लिए सड़कों पर आना था वही युवा आज दूसरे युवाओं को मारने के लिए हाथ में डंडे, भाले, चाकू-छुरी लेकर खड़ा है। बुरा है। बहुत बुरा है।
राजनीतिक प्रक्रिया फिलहाल निष्क्रिय है, लकवाग्रस्त है।बेशक लोग सड़को पर हैं और उनकी सोच मजबूत है लेकिन यह सोच और आवाज़ अभी भी बिखरी हुई है। इस सोच को बटोरकर इकट्ठा करने की जरूरत है।
जरूरत है कि हम सभी बचकर रहें। युवाओं को बहकाया जाना आसान है और इसी लिए सबसे पहला टारगेट हम ही होते हैं/युवा होता है। अफवाहों और गलतबयानी की रेत उड़ रही है, किसी का चेहरा साफ दिखाई नही दे रहा। कुछ चेहरों पर रेत की परत है; कुछ आंखों पर रेत का पर्दा है। सबकुछ धुंधला है । सबकुछ। बचकर रहिये।
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