Thursday, April 11, 2019

आज का वैलेंटाइन डे, कल का मीटू?


चित्र साभार :गुगल

भारत में महिलाओं की दशा क्या है?
राजनीति, कारोबार, कला तथा नौकरियों में पहुँचकर नए आयाम गढ़ रही हर 3 में से 2 महिलायें आज भी किसी न किसी मोड़ पर प्रताड़ना का शिकार होती हैं। स्त्री और मुक्ति आज भी नदी के दो किनारों की तरह हैं, जो कभी मिल नहीं सकती। जब-जब स्त्री अपनी उपस्तिथि दर्ज कराना चाहती है तब-तब न जाने कितने रीती-रिवाजों,परम्पराओं की दुहाई देकर उसे गुमनाम जीवन जीने पर विवश कर दिया जाता है और अगर इनसे भी वह न रुके तो दुराचार का सहारा लिया जाता है। आखिर इस बात से कैसे नकारा जा सकता है कि बचपन से लेकर जवानी तक लड़की के साथ होने वाले हर मजाक में शादी की गूंज शामिल होती है।

मी टू क्या था?
भारत में अक्टूबर 2018 में #metoo नाम से एक अभियान चला। तनुश्री दत्ता से शुरू हुआ यह मीटू देश के लगभग हर शहर तक गया जिसके माध्यम से न जाने कितनी लड़कियां सामने आई और खुलकर उनके साथ हुए दुराचारों को सोशल मीडिया पर लिखकर सबको बताया। जिसके चलते अर्श पर चमक रहे कई नाम, मिनटों में फर्श पर अपना नाम ढूंढते नज़र आएं। 
वहीं पर कुछ लोग इसे केवल भावनात्मक लहर मान रहे हैं। उनका मानना है कि आरोप लगाने वाले की जिम्मेदारी केवल आरोप लगाने की ही है उसे साबित करने की नही। इसपर विचार किया जाना आवश्यक है कि क्या मीडिया ट्रायल वाले इस ज़माने में अब सोशल मीडिया ट्रायल भी जन्म ले रहा है?

प्रश्न क्या है?
जिस दौर में आज महिला और पुरुष की बीच की बरसों से बनी बनाई खाई को पाटने का काम किया जा रहा है, सदियों से जेंडर टैबू माने जाने वाले विषय फिर चाहे वह पीरियड्स हो, सेक्स हो या अन्य कोई भी विषय हो सबपर खुलकर बात की जा रही है वहीं पर मीटू जैसी चीज़ो का उठना कहीं न कहीं इस खाई को और भी चौड़ा कर सकता है? या उनके बीच की यह खुलेपन वाली प्रक्रिया बाधित हो सकती है? आखिर इस बात क्या गारंटी है कि आज बनाया गया वैलेंटाइन डे कल को जाकर मीटू नहीं बन सकता है?

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