· मीटू से केवल बदनामी?
सबसे पहले मीटू मूवमेंट इस
मिथक
को
तोड़ेगा
कि 'इससे
कुछ
फायदा
नहीं
है
सिर्फ
बदनामी
मिलेगी'।
लेकिन
इस
बात
से
भी
कोई
नहीं
नकार
सकता
कि 15 मिनट
में
एक
रेप
होने
वाले
देश
में
अनेकों
रेप, मौखिक
या
शारीरिक
बदतमीजी, यौन
उत्पीड़न
सिर्फ
इस 'बदनामी' के
डर
से
रिपोर्ट
नही
होते।
और
जिस
महिला
पर
अपराध
हुआ
उसके
चरित्र, कपड़े, विचार, दोस्ती, रिश्ते, रहन
सहन, व्यवहार
जैसे
टुच्चे
कारणों
को
जिम्मेदार
ठहराए
जाने
वाली
जो
सामाजिक
प्रवृति
है
मीटू
हर
उसका
जवाब
है।
यह
एक
प्रकार
का
विद्रोह
है
कि 'लगाओ
जो
हम
पर
लांछन
लगाना
है, हम
तो
कहेंगे
कि
कौन
अपराधी
है।
और
यह
कोई 1 या
दो
दिन
का
विद्रोह
नहीं
है
यह
सालों-साल
तक
पका
हुआ
विद्रोह
है, यह
वह
खोलता
लावा
हो
जो
अब
ज्वालामुखी
बनकर
फटा
है।
यहां
महिला
को
उसके
चरित्र
हनन
की
परवाह
नहीं
है।
तनुश्री को न
जाने
कितने
ही
लोगों
ने
चरित्रहीन
साबित
करने
की
कोशिश
की।
चाहे
इमरान
हाशमी
के
साथ
एक
फ़िल्म
के
इंटिमेट
सीन
वायरल
करना
हो, या
उसे
पोर्न
स्टार
कहना
हो।
लेकिन हमें समझना
होगा
कि
महिला
चाहे
अनेकों
रिश्ते
रखने
वाली
हो, पोर्न
मूवी
करने
वाली
हो, छोटे
कपड़े
पहनने
वाली
हो .....चाहे
कुछ
भी
हो
लेकिन
उसके
मन
और
शरीर
से
जबरदस्ती
करने
का
अधिकार
किसी
को
नहीं
है।
महिला
की
मंशा
को
सम्मान
दिया
जाना
नैतिक
रूप
से
तो
आवश्यक
है
ही
कानूनों
रूप
से
भी
है।
1000 म्यूच्यूअल सम्बन्ध
अपराध
नहीं
माने
जायंगे
लेकिन
एक
भी
जबरदस्ती
का
सम्बंध
अपराध
है
और
यही
हमारा
संविधान
भी
कहता
है।
· जिस वक्त
यह घटना
हुई उसी
वक़्त क्यों
नही बोला
गया?
आज से 15 वर्ष
पहले, न
सोशल
मीडिया
जैसे
प्लेटफार्म
थे
और
न
ही
लोग
इतने
जागरूक।
पुलिस
जैसी
इन्वेस्टिगेशन
एजेंसी
इत्यादि
को
भी
प्रभावित
करने
आज
की
तुलना
में
बेहद
आसान
था।
तनुश्री भी यही
कहती
हैं
कि
उन्होंने
इसका
ज़िक्र
तब
भी
किया
था
लेकिन
उस
वक़्त
यह
लाइमलाइट
में
नही
आ
पाया
और
न
ही
इसपर
किसी
ने
ध्यान
दिया।
और
फिर
जब
करियर
दांव
पर
हो, परिवार
की
ज़िम्मेदारियां
हों, शादी
होने
वाली
हो
व
ऐसी
ही
दिक्कतें
होती
हो
तो
उसे
न
चाहते
हुए
भी
चुप
होना
पड़
जाता
है।
यह
हमारे
समाज
के
ही 'संस्कार' है
जो
किसी
लड़की
का
रेप
तक
हो
जाये
तो
लोग
शादी
तक
तोड़
देते
हैं।
आखिर कितने लोग
ऐसे
हैं
जो
रेप
की
शिकार
लड़की
से
शादी
करना
चाहेंगे? यह
भी
छोड़िए
चलिए
यह
सोचिए
कि
पत्नी
का
ही
रेप
होजाने
पर
आखिर
उसे
वैसे
ही
कितने
लोग
स्वीकार
करेंगे, सम्मान
देंगे.... कितने
लोग?
· मीटू हर
किसी के
साथ नही
होता:
मीटू की शुरुवात
करने
वाली
अफ्रीकन
महिला
तराना
की
तस्वीरों
को
वायरल
कर, उसपर
हास्यविनोद
और
भद्दे
कमेंट्स
करना
कहा
तक
जायज़
है? सिर्फ
इसलिए
की
वह
समाज
के 'सुंदर' लोगो
की
परिभाषा
में
फिट
नहीं
बैठती।
सुंदरता एक नितांत
सब्जेक्टिव
चीज़
है।
किसी
व्यक्ति
को
कोई
सुंदर
लग
सकता
है
और
किसी
को
नहीं।
सभी
के
सुंदरता
मापने
के
मायने
अलग
अलग
हो
सकते
हैं।
उन तस्वीरों पर
सबसे
ज्यादा
दुख
महिलाओं
के
रिएक्शन
देखकर
हुआ।
मजाक
उड़ाते
हुए....."इसके
साथ
कौन
मीटू
करेगा?" जिन
महिलाओं
ने
यह
कमेंट्स
किये
उनमें
से
कुछ
महिलाओं
को
पहले
स्वयं
पर
हुए
ट्रोल
गाली
बाजों
का
शिकार
होकर
टेसुएँ
बहाती
पोस्ट
भी
डालते
देखा
गया।
एक तीन साल
की
बच्ची
से
लेकर
एक
नब्बे
साल
की
बूढ़ी
और
एक
मिनी
स्कर्ट
वाली
लड़की
से
लेकर
एक
ऊपर
से
नीचे
तक
ढकी
हिजाब
वाली
लड़की
भी
यौन
उत्पीड़न, रेप
जैसे
अपराधों
का
शिकार
होती
है।
किसी भी भीड़
भाड़
वाली
बस
में
जाइये, ऑफिस
में, ट्रेनों
में
जाइये
कभी
और
देख
आइए
चुप
रहती
महिलाओं
को
कुछ
करिए
मत
बस
ध्यान
से
देखिए।
· हर आरोपित
पुरुष अपराधी
है:
एक आरोपित पुरुष
को
अपराधी
घोषित
करदेना
बिना
किसी
सबूत
के
उतना
ही
गलत
होगा
जितना
ऊपर
लिखे
ये
सभी
पॉइंट्स।
तनुश्री गलत है
या
नाना
पाटेकर, विकास
बहल
गलत
है
या
उनपर
आरोप
लगाने
वाली
महिलाएं, एम
जे
अकबर
गलत
है
या
प्रिया
रमानी
सच
वे
ही
जानते
होंगे।
केवल
इस
आधार
पर
किसी
का
मीडिया
ट्रायल
करना
सरासर
गलत
होगा।
लेकिन
जब
कोई
स्त्री
या
कोई
भी
अपना
दर्द
बता
रही
है, हिम्मत
जुटा
रही
है
फिर
चाहे
वह
दर्द
नया
हो
या
पुराना
मायने
नही
रखता
उसे
शांति
से, हमदर्दी
से
सुनना
चाहिए।
उसपर
लांछन
लगाना
उचित
नही
है।
कुछ भी नहीं
बदलेगा
तो
कम
से
कम
यह
होगा
कि
अगली
बार
किसी
महिला
या
पुरुष
को
अपना
दर्द
बांटने
के
लिए
किसी
अभियान
की, माध्यम
की
या
सपोर्ट
की
जरुरत
नही
पड़ेगी।
· लाइमलाइट में
आने के
लिए आरोप
लगाए जा
रहे हैं:
जो लोग कह
रहे
हैं
कि
बूढ़ी
हो
चली
है
काम
नही
है, फेमस
होने
के
लिए
कर
रही
है
आरोप
लगा
रही
है, तो
यह
बेहद
ही
असंवेदनशील
वाक्य
है।
वे
बूढ़ी नहीं
परिपक्व
हुई
हैं।
कुछ महिलायें कहती
हैं
कि
अगर
वे
होती
तो
वहीं
थप्पड़
मार
देती.....बिल्कुल
ऐसा
हो
सकता
था
लेकिन
हर
महिला, हर
पुरुष
का
व्यक्तित्व
अलग
होता
है।
फेसबुक
पर
यदि
चार
महिलाओं
को
एक
व्यक्ति
एक
ही
गली
दे.....तो
उनमें
से
हो
सकता
है
एक
उसका
वहीं
बैंड
बजा
दे, वहीं
दूसरी
पोस्ट
डालकर
रोये, तीसरी
डीएक्टिवेट
कर
चले
और
चौथी
मात्र
रिपोर्ट
और
ब्लॉक
कर
शांत
हो
जाये।
सभी
एक
जैसे
व्यक्तित्व
की
ही
जरूरी
नहीं
होता।
·
यह कानूनी
रूप से
व्यर्थ आंदोलन:
सीधे तौर पर
हो
सकता
है
यह
एक
कानूनी
रूप
से
व्यर्थ
अभियान
हो।
कुछ
निर्दोष
लोगों
को
फसाने
की
साजिश
वाला
मूवमेंट
हो, किंतु
साथ
ही
विक्टिम
को
हर
बार
हीन
नजरों
की
प्रवृत्ति
को
रोकने
का
माध्यम
है।
या
लांछन
लगने
के
डर
के
होते
हुए
भी
पूरी
हिम्मत
से
सामने
आने
वाला
मूवमेंट
है।
यह 'बदनामी' नाम
की
चिड़िया
को
उड़ाने
का
मूवमेंट
है
यह
इसी 'बदनामी' के
विरुद्ध
विद्रोह
वाला
मूवमेंट
है।
एक समाज में
स्त्री, पुरुष
दोनों
की
बराबर
की
भागीदारी
होती
है।
इस
सुंदर
प्राकृतिक
रिश्ते
को
एक
दूसरे
पर
आरोप, प्रत्यारोप
लगा
कर
बर्बाद
नहीं
किया
जा
सकता।
ज्यादातर
पुरुष
बेहद
साथ
देने
वाले
होते
हैं, सम्मान
देने
वाले
होते
हैं।
और
जो
पुरुष
दिल
जीतने
जानते
हैं, उन्हें
किसी
भी
प्रकार
के
शारीरिक
दबाव, शक्ति
की
आवश्यकता
नहीं
होती।
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