"जनाब तब क्यूँ सूरज की ख़्वाहिश करते हैं लोग, जब बारिश में सब दीवारें गिरने लगती हैं।"- सलीम कौसर।
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रानी की छतरी |
वायलेट लाइन वाले राजा नाहर सिंह मेट्रो स्टेशन के गेट नंबर 4 से एग्जिट करते ही सीधी रोड जाती है। रोड से सटे अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान हॉस्पिटल में घुसते ही सीधे आखिर तक जायँगे तो एक महल जैसी इमारत दिखेगी। इसके बाहर एक छोटा सा जंग लगा बोर्ड खड़ा है जिसपर आवश्यक सुचना लिखकर "इस धरोहर (रानी की छतरी) के अंदर प्रवेश व् आसपास जाना सख्त मना है" लिखा है।
ये इमारत है - रानी की छतरी। सामने एक खंडहर हो चुका तालाब है जहाँ पानी की एक बूँद तक भी नही है। यह तालाब चारों ओर से सीढ़ियों से घिरा है जिनपर अब घास उग आई है, दीवारों से ईट निकल रही है। और रानी की छतरी के गेट के ठीक सामने मिटटी का अंबार लगा हुआ है इमारत का प्लास्टर निकल चुका है और रंग फीका पड़ चुका है। कुछ मजदूर ईट, पत्थर, तसले, फावड़े लिए हैं। कंस्ट्रक्शन चल रहा है।
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कंस्ट्रक्शन का काम चलता हुआ। |
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इमारत के सामने मिट्टी का अंबार। |
हसरत से ताकती, अरमान भरे इशारे करती ये इमारत हमें तरसती हुई नजरों से घूर रही है। दबे छुपे लब्ज़ो में 'विकास' की शिकायत लिए इस उदास सोई हुई गुम्बद पर जमहाइयां लेते कुछ कबूतर बैठे हैं। 1857 की क्रांति में सबसे पहली पंक्ति के योद्धा नाहर सिंह बल्लभगढ़ के राजा ने इसका निर्माण अपनी रानी के लिए करवाया था। यहाँ रानी स्नान किया करती थी और उसके बाद छतरी के ऊपर जाकर पूजा अर्चना करती थी। बताया जाता है कि इस तालाब में आगरा नहर से पानी भरा जाता था। 1858 में राजा नाहर सिंह को अंग्रेजो ने फांसी पर लटका दिया था जिसके बाद से ही यह इमारत सरकार के अधिकार क्षेत्र में आ गयी थी। अब यहाँ का पानी भी बंद है।
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इमारत के ऊपर। |
वापिस आते हुए एक और बोर्ड लगा है जिसपर लिखा है कि "सौन्दर्यकरण के कार्य की शुरुवात 29/7/2019 से कर दिया गया है"।
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रानी की छतरी का फ्रंट व्यू |
लेकिन इसके तबाह होने का कारण क्या है? विकास? सरकारी उपेक्षा या जमीन हड़पने का लालच?
दबी हुई ख़ौफ़ज़दा चींख के साथ, सब्र की सिल कलेजे पे धरे ये इमारतें चुप हैं। इनके तालाब अब खामोश हैं। सचमुच हम जो हिंदुस्तानी नस्ल है न बिलकुल मकड़ी की तरह हैं, जो हसीन से हसीन परवाने को भी अपने जाले में लथेड़कर फ़ना कर देते हैं।
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