Thursday, September 26, 2019

हरियाणा चुनाव: राजनैतिक रैलियां

#HARYANA_ELECTION_2019

मनोहर लाल खट्टर (भाजपा), दुष्यंत चौटाला (जेजेपी) और ओमप्रकाश चौटाला (इनेलो) तीनों रैलियों में जाना हुआ तीनों की रैलियां एक दूसरे से बहुत अलग थी........

1. भाजपा की रैली: सुसज्जित, सुव्यवस्थित, अनुशासन, अधिकतर लोग एकदम tip-top, महंगी गाड़ियां, उन्हें पार्क करने के लिए एक प्रॉपर जगह, ड्रोन, कैमरे, हेलीकॉप्टर (प्रधानमंत्री जो पधारे थे), हरियाणा में घुसते ही ये बड़े बड़े पोस्टर, toll free day...और एक बढ़िया इवेंट मैनेजमेंट का नमूना।

2. इनेलो की रैली: पुराने ज़माने वाले एम्पलीफायर, पंखे(वो खम्बों पर लगने वाला 2 पंखों का जोड़ा), एकदम सिंपल, लोग भी सिंपल, महिलाओं की संख्या दोनों रैली(BJP और JJP) के अपेक्षा कम, ड्रोन भी बाद में आया, मीडिया मैनेजमेंट की कमी, एकदम घर वाला माहौल, कोई लीपापोती नहीं, कोई बनावट नहीं, कोई फालतू के झमेले नहीं, सीधी-साधी 'रैली' type रैली और हां पंजाबी लोगों की संख्या दोनों रैलियों की अपेक्षा ज्यादा रही।

3.जेजेपी की रैली: ट्रैक्टरों की भीड़ और उसमे बैठकर हुक्का गुड़गुड़ करते लोग, ढोल, नाच, गाना, हरियाणा का कल्चर समेटे हुए, इसमे दोनों रैलियों के गुण थे, ये एडवांस भी थी और सिंपल भी, रंगारंग कार्यक्रम, 1 मिनट को भी कोई बोर न हो पाए ऐसी रैली, कुलमिलाकर एक बढ़िया रैली का नमूना।

भाजपा की रैली एकदम VIP रैली थी सब बहुत बनावटी था, भीड़ थी बेशक भीड़ थी लेकिन वो हरियाणा नहीं था (जहां तक मुझे लगा)....वहीं इनेलो की रैली सिंपल काफी सिंपल, बनावट से कोसों दूर...इसका कारण क्या रहा पता नहीं ..एकदम पुराने ज़माने वाली 'रैली' टाइप रैली, लोग थे लेकिन ऐसा लग रहा था मानो formality पूरी करने आएं हो....वहीं पर जेजेपी की रैली मज़ेदार काफी मज़ेदार ...ट्रैक्टरों की भीड़ के साथ हरियाणा का पूरा कल्चर समेटे हुए, लोग अपनी मस्ती में मस्त थे, ऐसा लग रहा था की मानो दिल से दुष्यंत को प्यार देने आएं हो...कोई formalities नहीं इसका कारण शायद लोगो के बीच दुष्यंत का प्यार भी हो सकता है। 

लेकिन कुछ भी कहो ...यारररररर....ये हरियाणा के लोग बड़े प्यारे हैं❣️

Sunday, September 15, 2019

रानी की छतरी, बल्लभगढ़।


"जनाब तब क्यूँ सूरज की ख़्वाहिश करते हैं लोग, जब बारिश में सब दीवारें गिरने लगती हैं।"- सलीम कौसर। 
रानी की छतरी
वायलेट लाइन वाले राजा नाहर सिंह मेट्रो स्टेशन के गेट नंबर 4 से एग्जिट करते ही सीधी रोड जाती है। रोड से सटे अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान हॉस्पिटल में घुसते ही सीधे आखिर तक जायँगे तो एक महल जैसी इमारत दिखेगी। इसके बाहर एक छोटा सा जंग लगा बोर्ड खड़ा है जिसपर आवश्यक सुचना लिखकर "इस धरोहर (रानी की छतरी) के अंदर प्रवेश व् आसपास जाना सख्त मना है" लिखा है। 

           
 ये इमारत है - रानी की छतरी। सामने एक खंडहर हो चुका तालाब है जहाँ पानी की एक बूँद तक भी नही है। यह तालाब चारों ओर से सीढ़ियों से घिरा है जिनपर अब घास उग आई है, दीवारों से ईट निकल रही है। और रानी की छतरी के गेट के ठीक सामने मिटटी का अंबार लगा हुआ है इमारत का प्लास्टर निकल चुका है और रंग फीका पड़ चुका है। कुछ मजदूर ईट, पत्थर, तसले, फावड़े लिए हैं। कंस्ट्रक्शन चल रहा है। 


कंस्ट्रक्शन का काम चलता हुआ।
 गुमनामी के अँधेरे में कैद इस रानी की छतरी में अब कोई रानी नही रहती। अब यह महलनुमा छतरी ढहते हुए खण्डर से कम नही लग रही है।
इमारत के सामने मिट्टी का अंबार।

हसरत से ताकती, अरमान भरे इशारे करती ये इमारत हमें तरसती हुई नजरों से घूर रही है। दबे छुपे लब्ज़ो में 'विकास' की शिकायत लिए इस उदास सोई हुई गुम्बद पर जमहाइयां लेते कुछ कबूतर बैठे हैं। 1857 की क्रांति में सबसे पहली पंक्ति के योद्धा नाहर सिंह बल्लभगढ़ के राजा ने इसका निर्माण अपनी रानी के लिए करवाया था। यहाँ रानी स्नान किया करती थी और उसके बाद छतरी के ऊपर जाकर पूजा अर्चना करती थी। बताया जाता है कि इस तालाब में आगरा नहर से पानी भरा जाता था। 1858 में राजा नाहर सिंह को अंग्रेजो ने फांसी पर लटका दिया था जिसके बाद से ही यह इमारत सरकार के अधिकार क्षेत्र में आ गयी थी। अब यहाँ का पानी भी बंद है। 

इमारत के ऊपर।

वापिस आते हुए एक और बोर्ड लगा है जिसपर लिखा है कि "सौन्दर्यकरण के कार्य की शुरुवात 29/7/2019 से कर दिया गया है"। 
रानी की छतरी का फ्रंट व्यू 

लेकिन इसके तबाह होने का कारण क्या है? विकास? सरकारी उपेक्षा या जमीन हड़पने का लालच?
दबी हुई ख़ौफ़ज़दा चींख के साथ, सब्र की सिल कलेजे पे धरे ये इमारतें चुप हैं। इनके तालाब अब खामोश हैं। सचमुच हम जो हिंदुस्तानी नस्ल है न बिलकुल मकड़ी की तरह हैं, जो हसीन से हसीन परवाने को भी अपने जाले में लथेड़कर फ़ना कर देते हैं।



भारत के मेले: छत्तीसगढ़ का 'मड़ई मेला' जहां मिलता है औरतों को संतान प्राप्ति का आशीर्वाद

ये छत्तीसगढ़ में लगने वाला एक मेला है, गंगरेल मड़ई। दीवाली के बाद पहले शुक्रवार को यह मड़ई मेला आयोजित करवाया जाता है। इस साल भी लगा था। जो इन ...