Monday, October 21, 2019

हरियाणा चुनावी घोषणापत्र

घोषणापत्र या दीवाली ऑफर?

चुनावों में घोषणापत्र दीवाली ऑफर की तरह होते हैं। एक के साथ एक फ्री। हरियाणा में भी सभी राजनीतिक पार्टियों ने हर बार की तरह अपने घोषणापत्र में वादों की लड़ी लगाई है। हर पांच बाद किये जाने वाले वादों को लेकर एक दूसरे को पछाड़ने की होड़ में एक से एक लोकलुभावने वादे किये गए हैं। हालांकि पिछले वादों का जिक्र इनमें कोई नहीं कर रहा है। इन दीवाली ऑफर वाले घोषणापत्रों के नाम या थीम भी दिए गए हैं। मनोहर लाल खट्टर की पार्टी भाजपा ने इसबार अपने घोषणापत्र का थीम 'म्हारे सपनों का हरियाणा' रखा है, वहीं हुड्डा की कांग्रेस ने 'संकल्प हमारा, खुशहाल हरियाणा' थीम रखा है। इसी तरह क्षेत्रीय दल इनेलो (INLD) और जजपा(JJP) भी पीछे नहीं हैं। 9 महीने पहले बनी दुष्यंत चौटाला की नई नवेली पार्टी जजपा(JJP) ने अपने घोषणापत्र को 'जनसेवा पत्र' नाम दिया है। 'प्रतिज्ञा पत्र' और 'ईमान पत्र' के नाम से आम आदमी पार्टी और स्वराज इंडिया पार्टी भी अपने आपको चुनावी लड़ाई में लाने के लिए भरपूर कोशिश की है।

भाजपा का घोषणापत्र- 'म्हारे सपनों का हरियाणा'
भाजपा के 15 चैप्टर, 258 वादों के 'म्हारे सपनों का हरियाणा' में भर-भरकर वादे किये गए हैं। कोशिश की गयी है की हर वर्ग को छुआ जाए। स्मार्ट सिटी, ब्याज माफी, कर्ज माफी, दुगुनी आय, डबल पेंशन व अन्य योजनाओं के साथ इसबार पर्यावरण को फोकस किया गया है। जैविक खेती, साईकल के प्रयोग को बढ़ाने, कूड़े को बिजली में परिवर्तित करने के साथ सीवर सफाई में मानव का घुसना प्रतिबंधित करने और हरियाणा स्टार्टअप मिशन जैसे आमतौर पर किये गए वादों की लिस्ट से हट चुनावी लीग से इतर वादे किये गए हैं।
इन सभी वादों का अगर अनुमानित खर्च लगाया जाए तो लगभग 32 हज़ार करोड़ बैठता है। 28 फीसदी बेरोजगारी वाले प्रदेश में ये वादे सतही ही नज़र आते हैं।
पिछली बार भाजपा ने अपने घोषणापत्र में एसवाईएल में हरियाणा के हिस्से का पानी लाया जाएगा लेकिन इसबार के विधानसभा चुनाव में इस मुद्दे पर ज्यादा ज़ोर नहीं दिया गया।

जजपा का 'जनसेवा पत्र'
नई नवेली पार्टी जजपा ने भी अपने 'जनसेवा पत्र' नाम के घोषणापत्र में चमकते धमकते वादों की लड़ी लगाई है। 'ताऊ का ज़माना, वापस है लाना' के नारे के साथ चौधरी देवीलाल की विरासत को संजोय इस घोषणापत्र में प्रथम पृष्ठ पर चौ. देवीलाल के बाजू में डॉ भीमराव अम्बेडकर की भी फ़ोटो लगाई गयी है। गांवों में शराब ठेके बन्द करवाने और कैंसर व काला पीलिया की बीमारी का मुफ्त इलाज पर भी जोर दिया गया है। यह चुनावी घोषणापत्र जजपा के राष्ट्रीय महासचिव डॉ. केसी बांगड़ और घोषणापत्र कमेटी के संयोजक पूर्व वाईस चांसलर डॉ. अभय सिंह ने जारी किया। अन्य पार्टियों के घोषणापत्र की तरह ही इसमें भी महिलाओं, कर्मचारियों के साथ व्यापारियों तथा सैनिकों के की बात की गयी है। जींद में शहीद भगत सिंह की सबसे बड़ी प्रतिमा और कुरुक्षेत्र में संत रविदास का भव्य मंदिर भी इन्ही लम्बी चौड़ी वादों की लिस्ट के 2 वादे हैं। 

इनेलो ने भी लगाई वादों की लड़ी
चौधरी ओमप्रकाश चौटाला की पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल ने भी किसानों एवं छोटे व्यापारियों को 10 लाख तक के कर्ज माफ का वादा किया है। जजपा की तरह इनेलो ने भी ट्रैक्टर के निशुल्क पंजीकरण पर जोर दिया है। स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुसार 50 प्रतिशत के मुनाफे के आधार पर फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य देने की बात की गयी है। युवाओं को जोड़ते हुए बेरोजगारों को 15 हज़ार रूपये प्रतिमाह और बुढापा पेंशन में 5000 की रकम का वादा किया गया है। 8 पेजों के इस घोषणा पत्र में INLD 13 एजेंडों के अंतर्गत जनता से 111 वादे किए हैं। इसमें 25 वादों को इनेलो अपने प्रमुख वादे मान रही है।

कांग्रेस का 'संकल्प पत्र'
कांग्रेस ने अपने 20 पन्नो के इस 'संकल्प पत्र' में खुशहाली के जो 17 प्रमुख एजेंडे रखे हैं वो सच्चाई से कोसों दूर हैं। सरकार बनते ही 24 घण्टे में किसान कर्ज माफी का बड़ा वादा किया गया है। बेरोजगारों को 7 से 10 हजार  का बेरोजगारी भत्ता देने की बात भी कही गयी है। लेकिन राज्य सरकार के संसाधन और वित्तीय हालात को देखा जाए तो सभी को ये मालूम है कि ये वादे पूरे नहीं हो सकते हैं। हालांकि मॉब लिनचिंग और इंदिरा रसोई के तहत 10 रूपये प्रति थाली वाले वादे दूसरे घोषणापत्रों में देखने को नहीं मिलते। 

इतने पैसे कहां से आएंगे?
कांग्रेस, इंडियन नेशनल लोकदल और जननायक जनता पार्टी जैसे दलों ने अपने घोषणापत्र में भाजपा के बराबर वादें करने की कोशिश तो की है। लेकिन इन चारों पार्टियों में से फिर चाहे वह बीजेपी हो, इनेलो हो, जजपा हो यह नहीं बताया है कि आखिर घोषणाओं को पूरा करने के लिए इतने पैसे कहां से आएंगे? कांग्रेस ने जहाँ लगभग 1 लाख 26 हज़ार करोड़ रूपये, इनेलो ने 60 हज़ार करोड़ और बीजेपी ने तकरीबन 32 हज़ार करोड़ रूपयों के वादे अपने घोषणापत्र में किये हैं।
एक रिपोर्ट के अनुसार पता चलता है कि हरियाणा में पिछले पांच सालों में कुल कर्ज में 115 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। 2013-14 में राज्य पर 76,263 करोड़ का कर्ज था। यह अब बढ़कर 1,64,076 करोड़ हो गया है। हरियाणा के प्रति व्यक्ति पर जो कर्ज 2013-14 में 27,700 रुपये था वो अब बढ़कर 63,000 रुपये हो गया है। भला ऐसे में इन बड़े बड़े वादों को पूरा करने के लिए पैसा कहां से लाया जाएगा?
20 अक्टूबर को आम आदमी पार्टी ने अपना मेनिफेस्टो जारी कर यह दर्शाया है कि वह भी अपनी किस्मत आज़माना चाहती है। 'आप' ने अपने 'प्रतिज्ञा पत्र' में टॉल मुक्त हरियाणा, बलात्कारियों को फांसी की सजा, कलाकारों और कवियों के लिए अलग से विभाग और ई-गवर्नेंस जैसे मुद्दों की बात की है।

स्वराज इंडिया पार्टी का मॉडल
इन सभी घोषणापत्रों से इतर पहली बार हरियाणा विधानसभा चुनाव में अपना हाथ आजमा रही योगेंद्र यादव की स्वराज इंडिया पार्टी ने घोषणापत्र न जारी करके एक मॉडल जारी किया है। जिसमें वादों के साथ साथ उसका खर्चा, इससे कितने लोगों को रोजगार मिलेगा, पांच साल के लक्ष्य और कार्ययोजना तक बताई गयी है। शराब बन्दी और ठेका बन्दी कैसे होगी उसका एक पूरा ड्राफ्ट बताया गया है, जो सभी घोषणापत्रों से इसे एक बेहतर और सटीक घोषणपत्र बनाता है। इसमें पूरा कर्ज माफी, 1 साल में बेरोजगारी खत्म जैसे बड़े बड़े वादे नहीं किये गए हैं।
एक तरफ कुआं और दूसरी तरफ खाई कहकर टोंट कसते हुए योगेंद्र यादव कहते हैं कि, 'हमने एक सुलझा और सटीक घोषणापत्र दिया है। योजना या वादों को कैसे पूरा किया जाएगा बताया है'।


Sunday, October 13, 2019

पत्र: लड़कियों समझौता मत करना

मेरी साथ सबसे बड़ी परेशानी ये है कि मैं समझौते नहीं कर पाती..खुद के साथ, खुद के सपनों के साथ। मैं अपनी चीज़ों को लेकर काफी रिज़र्व हूँ। मुझे चॉकलेट में मंच पसन्द है तो मैं वही खाऊँगी, मुझे प्रेमचंद नहीं हैं पसन्द तो नहीं हैं, मुझे हर किताब नहीं पसन्द आती तो नहीं आती, मुझे सोशल रिफार्म टाइप सिनेमा नहीं पसन्द आता तो नहीं आता तुम चाहकर भी मुझे नहीं पसन्द करवा सकते। मुझे कोई भी चीज़ परेशान करती है तो मैं छोड़ देती हूं उसे। मुझे किसी किताब की एक लाइन भी परेशान करती है तो मैं उसे तुरंत बन्द करके किसी कोने में पटक देती हूँ और फिर कभी उसे उठाकर नहीं देखती। मेरे पास ऐसी कितनी किताबें हैं जो बस रखी हैं किसी कोने में.....आधी अधूरी....किसी के दो पन्ने पलटे हैं तो किसी के तीन। जब चीज़े उलझ जाती हैं तो मैं ज्यादा कोशिश नहीं करती उन्हें सुलझाने की, मेरा मानना है छोड़ देना चाहिए चीज़ों को। 
लेकिन मैने अपने आस पास कई लड़कियों को देखा है समझौता करते हुए। मैने अपनी कॉलेज की लड़कियों को देखा है अपनी सुरक्षा के साथ समझौता करते हुए, मैने अपनी बहनों को देखा है अपने सपनों के साथ समझौता करते हुए, मैने अपनी माँ को देखा है अपने स्वास्थ्य के साथ समझौता करते हुए, मैने अपनी दादी को देखा है अपनी खुशियों के साथ समझौता करते हुए, मैने अपनी स्कूल की दोस्तों को देखा है अपनी स्वच्छता के साथ समझौता करते हुए। उन्होंने अपने आगे हमेशा चुना है अपने प्रेमी को, अपने पति को, अपने पिता को, अपने समाज को और कभी कभी अपनी मौत को भी।

तो सुनो बे लड़कियों,

हम असमर्थताओं से नहीं सम्भावनाओं से घिरे हैं। तुम चाहो तो सब कुछ कर सकती हो। कोई सोचता है तुम नहीं कर पाओगी तो सोचने दो। मत लो किसी से वो बेफिजूल का ज्ञान जो तुम्हे 'तुम लड़की हो' कहकर दिया जा रहा है। मत करो वहां काम जहां तुम्हें बस 'तुम लड़की हो' कहकर देवी मईया जैसे बिठा दिया गया हो किसी बड़ी पोस्ट पर। मत पैदा करो ऐसी धार्मिक आस्था जो तुम्हें दूर कर रही हो खुद से। नहीं तुम नहीं भोग रही हो अपने किसी पिछले जन्म का फल। तुम्हारी वर्तमान ज़िन्दगी तुम्हारे किसी अतीत का विस्तार नहीं है। तुम्हारे पास नहीं है कोई ऐसी खूँटी जिसपर तुम अपनी चिंताओं और शंकाओ को टांग पाओ। मत बनो बिना पतवार की नौका की तरह। 
क्योंकि एकदिन आएगा जब तुम्हे ज़िन्दगी भर यही फैसला कचोटता फिरेगा जिसे तुमने 'आखिरी दफा' समझकर ले लिया था। और फिर तुम इन्हें जितनी दूर धकेलोगी उससे दुगनी ताकत से ये तुम्हारे पास फिरसे आ जाएंगे। तुम्हे सदियों की ठोकरखोरी ने जो ये बेहिस चट्टान बना दिया है न बस इसी से तुम कर ले जाओगी सबकुछ। तुम बना सकती हो पहाड़ के बीच से भी मार्ग। तुम सदियों से बनाती तो आयी हो। सीता, दुर्गा, काली, अहिल्या, अरे कितने तो रूप लिए हैं तुमने हर बार। 
तुम सबकुछ कर लोगी....

बस समझौता मत करना। ❣️

Thursday, October 10, 2019

महेन्द्रगढ़ का राजनीतिक इतिहास



महेन्द्रगढ़ जिले में 4 विधानसभा सीट आती हैं:- महेन्द्रगढ़, नांगल चौधरी, अटेली और नारनौल। 

बस स्टोप
महेन्द्रगढ़ विधानसभी सीट 1951-52 में अस्तित्व में आयी जिसके पहले दो विधानसभा चुनाव पेप्सू यानी पटियाला एंड ईस्ट पंजाब स्टेट ऑफ यूनियन के अंतर्गत हुए थे। 1952 में सबसे पहले यहां से कांग्रेस के ठाकुर मंगल सिंह ने निर्दलीय उम्मीदवार कुंदन लाल को हराया था। 1957 के चुनाव में राव निहाल सिंह यहां से विधायक चुने जाते हैं।

राव दान सिंह के नाम पर विधानसभा चुनाव में हैट्रिक है। इन्होंने लगातार तीन बार 2000, 2005 और 2009 में महेन्द्रगढ़ सीट से विधायक बने थे। वहीं पर रामबिलास शर्मा 1982, 1987, 1996 और 2014 में महेन्द्रगढ़ से विधायक बने। 2009 का चुनाव केवल 5,453 वोटों के मार्जिन से और 2005 के चुनाव 20,648 वोटों के मार्जिन से जीता गया था। 2014 का चुनाव इसलिए भी ऐतिहासिक था क्योंकि यह चुनाव 34,491 वोटों के मार्जिन से जीता गया। महेन्द्रगढ़ की चारों सीट पर कमल खिला था। अटेली से सन्तोष यादव ने 48,601 वोटों से जीत हासिल की थी, नारनौल हलके से ओमप्रकाश यादव ने 4573 के अंतर से, नांगल चौधरी से अभयसिंह ने 981 वोट के मार्जिन से और महेन्द्रगढ़ हलके से रामबिलास शर्मा ने 34,491 वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी। भाजपा की 47 सीट, कांग्रेस की 15, इनेलो की 19 और 9 सीट दूसरी पार्टियों की झोली में आई थी।
महेन्द्रगढ़ का एक चौक
'बिरादरी' की राजनीति के बीच रामबिलास का कद इसलिए भी इस क्षेत्र में और भी बढ़ जाता है क्योंकि वह आजतक के अकेले ऐसे 'ब्राह्मण' हैं जो 'अहीर बेल्ट' यानी यादवों के इलाके में जीते हैं। 

अहीर बेल्ट होने के कारण यहां यादवों का काफी दबदबा है। और 1857 की क्रांति में अग्रिम पंक्ति के सिपाही राव तुला राम के वंशज राव इंद्रजीत सिंह को काफी माना जाता है। 54 वर्षीय सूबेदार रघुवीर कहते हैं कि, 'यहां इंद्रजीत का दबदबा है। यादवों को बसाने वाले इंद्रजीत ही थे। जो पुराने लोग हैं वो इन्ही का वोट बैंक है लेकिन फिर भी प्रभाव कम हुआ है। आज के युवा अपने हिसाब से वोट देते हैं। अब प्रत्याशियों को देखकर वोट दिया जाता है।'

●मुद्दों की राजनीति बनाम राष्ट्रवाद:

ग्राम पंचायत ढ़ाणी
रेतीले और पहाड़ी इलाके की वजह से यहां की सबसे बड़ी समस्या सूखा है। राजस्थान बोर्डर से लगे होने के कारण यहां पानी की दिक्कत सबसे ज्यादा है। यूँ तो पानी इस इलाके में हमेशा से ही मुद्दा रहा है लेकिन अब हालात कुछ और भी बिगड़ते जा रहे हैं। हाल तो ये है कि 1000 फीट तक पानी निकालना पड़ता है। न खेती के लिए पानी मिलता है और न सिंचाईं के लिए। स्थानीय निवासी बताते हैं कि, 'पहले सिचाईं के लिए भी पानी नहीं होता था। बंसीलाल के समय में जो नहरें बनवाई गयी वो आज सुखी पड़ी हैं। हमे नहरों से केवल इतना ही पानी मिल पाता है जितना पीने के लिए प्रयोग किया जा सके।

भाजपा का दावा है कि उसने महेन्द्रगढ़ में दिन दुगनी रात चौगुनी तरक्की की है। दोहान नदी में से कच्ची नहर बनाकर पानी छुड़वाया है। 65 जोहड़ भरे हैं। वहीं पर कांग्रेस का कहना है कि पल, पाल, गड़ानिया, बैरावास, निहालावास, खेड़की में नहरें राव दान सिंह के कार्यकाल में बनी हैं और पिछले पांच सालों में यहां कोई शिक्षण संस्थान, स्वास्थ्य संस्थान और अन्य कोई बड़ी योजना नहीं लायी गयी है।

'राष्ट्रवाद' यहां एक बहुत बड़ा फैक्टर है। आसान भाषा में कहा जाए तो ये चुनाव ही राष्ट्रवाद के मुद्दे पर लड़ा जा रहा है। और तो और आमजन के मुद्दों से इतर अब राष्ट्रवाद की राजनीति ही लोगों के दिल में घर कर गई है और चूंकि हरियाणा एक छोटा राज्य है और यहां के हर दूसरे घर का बच्चा सेना में है तो ज़ाहिर सी बात है कि राष्ट्रीय मुद्दे यहां काफी चोट करते हैं। 

●राजनीतिक उथल-पुथल क्या है?

शुरू में भूपिंदर सिंह हुड्डा जब हरियाणा के मुख्यमंत्री थे तब राव इंद्रजीत कांग्रेस में थे लेकिन कुछ पार्टी कॉन्फ्लिक्टस के कारण राव इंद्रजीत ने कुछ समय पहले भाजपा का दामन थाम लिया। कांग्रेस से भाजपा में जाने के पीछे का कारण यह बताया गया कि, 'हुड्डा ने केवल अपने क्षेत्रों में काम किया है हमारे क्षेत्र में नही।' हालांकि ये लगभग पूरे अहीर क्षेत्र के लोगों का आरोप है कि हुड्डा राज में केवल जाट बाहुल्य क्षेत्रों पर ही काम किया गया था और अहीर बाहुल्य क्षेत्र पर किसी ने ध्यान नहीं दिया।

●आने वाले चुनाव पर क्या असर पड़ेगा?

विपक्ष की अगर बात की जाए तो राव दानसिंह को यहां से विपक्ष के सबसे मजबूत नेता के रूप में देखा जा रहा है। परेशानी सबसे बड़ी ये है कि कांग्रेस के पास बड़े नेता के रूप में कोई चेहरा नहीं है। बीजेपी ने बड़ी ही आसानी से कांग्रेस उम्मीदवारों की घेराबन्दी कर ली है। और चौधरी देवीलाल के परिवार का दो धड़ों में बट जाने के बाद तो मानो भाजपा अकेली पिच पर खेल रही है। यहां बैट्समेन भी वही है और बॉलर भी वही। 
इस बार 2019 विधानसभा चुनाव में छठी बार राव दान सिंह और रामबिलास शर्मा आमने सामने होंगे। पिछले 23 सालों से ये दोनों ही एक दूसरे को इसी सीट पर टक्कर देते आ रहे हैं। सीधे शब्दों में कहा जाए तो हरियाणा में राजनैतिक दलों की लम्बी कतार और परिवारवाद की राजनीति के बीच बीजेपी ने यहां एक अलग मुकाम तय किया है। चौमुखी विकास का झंडा लिए, राष्ट्रवाद के रथ पर सवार भाजपा तेज़ी से दौड़ी जा रही है। उन्होंने नॉन जाट को मोबिलाइज़ किया और इसी का फायदा हरियाणा के आने वाले चुनाव में मिलेगा। 

हालांकि राजनीति में कुछ कहा नहीं जा सकता यहां जनता अगर किसी नेता के लिए स्वर्ग की सीढ़ी का निर्माण कर सकती है तो बिगड़ने पर उसे ज़मीन पर भी पटक सकती है। अब सरकार किसकी होगी ये तो 24 अक्टूबर को ही पता चलेगा।

●महिलाओं की बात:
महेन्द्रगढ़ की महिलाएं
बात की जाये महिलाओं की तो राजस्थान से जुड़ा होने के कारण इस इलाके की महिलाओं का पहनावा, रहन-सहन, और यहां तक बोली में भी राजस्थानी टच दिखता है। जहां रोहतक, हिसार, झज्झर या कहें कि जाट लैंड वाले इलाके की महिलाओं में एक प्रॉपर हरियाणवी लुक है। यहां की महिलाएं जाट लैंड वाली महिलाओं से हर तरीके से अलग लगती हैं। जाट लैंड में महिलायें अमूमन घूँघट में ही दिखती हैं वहीं इस क्षेत्र में घूँघट का कोई 'कम्पुलशन' नज़र नहीं आता। महिलाएं बगैर घूँघट के घूमती नजर आती हैं। सामाजिक तौर पर यहां एक स्वछंदता देखने को मिलती है। 
यादव धर्मशाला के सूबेदार अंकल

भारत के मेले: छत्तीसगढ़ का 'मड़ई मेला' जहां मिलता है औरतों को संतान प्राप्ति का आशीर्वाद

ये छत्तीसगढ़ में लगने वाला एक मेला है, गंगरेल मड़ई। दीवाली के बाद पहले शुक्रवार को यह मड़ई मेला आयोजित करवाया जाता है। इस साल भी लगा था। जो इन ...