Thursday, October 10, 2019

महेन्द्रगढ़ का राजनीतिक इतिहास



महेन्द्रगढ़ जिले में 4 विधानसभा सीट आती हैं:- महेन्द्रगढ़, नांगल चौधरी, अटेली और नारनौल। 

बस स्टोप
महेन्द्रगढ़ विधानसभी सीट 1951-52 में अस्तित्व में आयी जिसके पहले दो विधानसभा चुनाव पेप्सू यानी पटियाला एंड ईस्ट पंजाब स्टेट ऑफ यूनियन के अंतर्गत हुए थे। 1952 में सबसे पहले यहां से कांग्रेस के ठाकुर मंगल सिंह ने निर्दलीय उम्मीदवार कुंदन लाल को हराया था। 1957 के चुनाव में राव निहाल सिंह यहां से विधायक चुने जाते हैं।

राव दान सिंह के नाम पर विधानसभा चुनाव में हैट्रिक है। इन्होंने लगातार तीन बार 2000, 2005 और 2009 में महेन्द्रगढ़ सीट से विधायक बने थे। वहीं पर रामबिलास शर्मा 1982, 1987, 1996 और 2014 में महेन्द्रगढ़ से विधायक बने। 2009 का चुनाव केवल 5,453 वोटों के मार्जिन से और 2005 के चुनाव 20,648 वोटों के मार्जिन से जीता गया था। 2014 का चुनाव इसलिए भी ऐतिहासिक था क्योंकि यह चुनाव 34,491 वोटों के मार्जिन से जीता गया। महेन्द्रगढ़ की चारों सीट पर कमल खिला था। अटेली से सन्तोष यादव ने 48,601 वोटों से जीत हासिल की थी, नारनौल हलके से ओमप्रकाश यादव ने 4573 के अंतर से, नांगल चौधरी से अभयसिंह ने 981 वोट के मार्जिन से और महेन्द्रगढ़ हलके से रामबिलास शर्मा ने 34,491 वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी। भाजपा की 47 सीट, कांग्रेस की 15, इनेलो की 19 और 9 सीट दूसरी पार्टियों की झोली में आई थी।
महेन्द्रगढ़ का एक चौक
'बिरादरी' की राजनीति के बीच रामबिलास का कद इसलिए भी इस क्षेत्र में और भी बढ़ जाता है क्योंकि वह आजतक के अकेले ऐसे 'ब्राह्मण' हैं जो 'अहीर बेल्ट' यानी यादवों के इलाके में जीते हैं। 

अहीर बेल्ट होने के कारण यहां यादवों का काफी दबदबा है। और 1857 की क्रांति में अग्रिम पंक्ति के सिपाही राव तुला राम के वंशज राव इंद्रजीत सिंह को काफी माना जाता है। 54 वर्षीय सूबेदार रघुवीर कहते हैं कि, 'यहां इंद्रजीत का दबदबा है। यादवों को बसाने वाले इंद्रजीत ही थे। जो पुराने लोग हैं वो इन्ही का वोट बैंक है लेकिन फिर भी प्रभाव कम हुआ है। आज के युवा अपने हिसाब से वोट देते हैं। अब प्रत्याशियों को देखकर वोट दिया जाता है।'

●मुद्दों की राजनीति बनाम राष्ट्रवाद:

ग्राम पंचायत ढ़ाणी
रेतीले और पहाड़ी इलाके की वजह से यहां की सबसे बड़ी समस्या सूखा है। राजस्थान बोर्डर से लगे होने के कारण यहां पानी की दिक्कत सबसे ज्यादा है। यूँ तो पानी इस इलाके में हमेशा से ही मुद्दा रहा है लेकिन अब हालात कुछ और भी बिगड़ते जा रहे हैं। हाल तो ये है कि 1000 फीट तक पानी निकालना पड़ता है। न खेती के लिए पानी मिलता है और न सिंचाईं के लिए। स्थानीय निवासी बताते हैं कि, 'पहले सिचाईं के लिए भी पानी नहीं होता था। बंसीलाल के समय में जो नहरें बनवाई गयी वो आज सुखी पड़ी हैं। हमे नहरों से केवल इतना ही पानी मिल पाता है जितना पीने के लिए प्रयोग किया जा सके।

भाजपा का दावा है कि उसने महेन्द्रगढ़ में दिन दुगनी रात चौगुनी तरक्की की है। दोहान नदी में से कच्ची नहर बनाकर पानी छुड़वाया है। 65 जोहड़ भरे हैं। वहीं पर कांग्रेस का कहना है कि पल, पाल, गड़ानिया, बैरावास, निहालावास, खेड़की में नहरें राव दान सिंह के कार्यकाल में बनी हैं और पिछले पांच सालों में यहां कोई शिक्षण संस्थान, स्वास्थ्य संस्थान और अन्य कोई बड़ी योजना नहीं लायी गयी है।

'राष्ट्रवाद' यहां एक बहुत बड़ा फैक्टर है। आसान भाषा में कहा जाए तो ये चुनाव ही राष्ट्रवाद के मुद्दे पर लड़ा जा रहा है। और तो और आमजन के मुद्दों से इतर अब राष्ट्रवाद की राजनीति ही लोगों के दिल में घर कर गई है और चूंकि हरियाणा एक छोटा राज्य है और यहां के हर दूसरे घर का बच्चा सेना में है तो ज़ाहिर सी बात है कि राष्ट्रीय मुद्दे यहां काफी चोट करते हैं। 

●राजनीतिक उथल-पुथल क्या है?

शुरू में भूपिंदर सिंह हुड्डा जब हरियाणा के मुख्यमंत्री थे तब राव इंद्रजीत कांग्रेस में थे लेकिन कुछ पार्टी कॉन्फ्लिक्टस के कारण राव इंद्रजीत ने कुछ समय पहले भाजपा का दामन थाम लिया। कांग्रेस से भाजपा में जाने के पीछे का कारण यह बताया गया कि, 'हुड्डा ने केवल अपने क्षेत्रों में काम किया है हमारे क्षेत्र में नही।' हालांकि ये लगभग पूरे अहीर क्षेत्र के लोगों का आरोप है कि हुड्डा राज में केवल जाट बाहुल्य क्षेत्रों पर ही काम किया गया था और अहीर बाहुल्य क्षेत्र पर किसी ने ध्यान नहीं दिया।

●आने वाले चुनाव पर क्या असर पड़ेगा?

विपक्ष की अगर बात की जाए तो राव दानसिंह को यहां से विपक्ष के सबसे मजबूत नेता के रूप में देखा जा रहा है। परेशानी सबसे बड़ी ये है कि कांग्रेस के पास बड़े नेता के रूप में कोई चेहरा नहीं है। बीजेपी ने बड़ी ही आसानी से कांग्रेस उम्मीदवारों की घेराबन्दी कर ली है। और चौधरी देवीलाल के परिवार का दो धड़ों में बट जाने के बाद तो मानो भाजपा अकेली पिच पर खेल रही है। यहां बैट्समेन भी वही है और बॉलर भी वही। 
इस बार 2019 विधानसभा चुनाव में छठी बार राव दान सिंह और रामबिलास शर्मा आमने सामने होंगे। पिछले 23 सालों से ये दोनों ही एक दूसरे को इसी सीट पर टक्कर देते आ रहे हैं। सीधे शब्दों में कहा जाए तो हरियाणा में राजनैतिक दलों की लम्बी कतार और परिवारवाद की राजनीति के बीच बीजेपी ने यहां एक अलग मुकाम तय किया है। चौमुखी विकास का झंडा लिए, राष्ट्रवाद के रथ पर सवार भाजपा तेज़ी से दौड़ी जा रही है। उन्होंने नॉन जाट को मोबिलाइज़ किया और इसी का फायदा हरियाणा के आने वाले चुनाव में मिलेगा। 

हालांकि राजनीति में कुछ कहा नहीं जा सकता यहां जनता अगर किसी नेता के लिए स्वर्ग की सीढ़ी का निर्माण कर सकती है तो बिगड़ने पर उसे ज़मीन पर भी पटक सकती है। अब सरकार किसकी होगी ये तो 24 अक्टूबर को ही पता चलेगा।

●महिलाओं की बात:
महेन्द्रगढ़ की महिलाएं
बात की जाये महिलाओं की तो राजस्थान से जुड़ा होने के कारण इस इलाके की महिलाओं का पहनावा, रहन-सहन, और यहां तक बोली में भी राजस्थानी टच दिखता है। जहां रोहतक, हिसार, झज्झर या कहें कि जाट लैंड वाले इलाके की महिलाओं में एक प्रॉपर हरियाणवी लुक है। यहां की महिलाएं जाट लैंड वाली महिलाओं से हर तरीके से अलग लगती हैं। जाट लैंड में महिलायें अमूमन घूँघट में ही दिखती हैं वहीं इस क्षेत्र में घूँघट का कोई 'कम्पुलशन' नज़र नहीं आता। महिलाएं बगैर घूँघट के घूमती नजर आती हैं। सामाजिक तौर पर यहां एक स्वछंदता देखने को मिलती है। 
यादव धर्मशाला के सूबेदार अंकल

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