Sunday, October 13, 2019

पत्र: लड़कियों समझौता मत करना

मेरी साथ सबसे बड़ी परेशानी ये है कि मैं समझौते नहीं कर पाती..खुद के साथ, खुद के सपनों के साथ। मैं अपनी चीज़ों को लेकर काफी रिज़र्व हूँ। मुझे चॉकलेट में मंच पसन्द है तो मैं वही खाऊँगी, मुझे प्रेमचंद नहीं हैं पसन्द तो नहीं हैं, मुझे हर किताब नहीं पसन्द आती तो नहीं आती, मुझे सोशल रिफार्म टाइप सिनेमा नहीं पसन्द आता तो नहीं आता तुम चाहकर भी मुझे नहीं पसन्द करवा सकते। मुझे कोई भी चीज़ परेशान करती है तो मैं छोड़ देती हूं उसे। मुझे किसी किताब की एक लाइन भी परेशान करती है तो मैं उसे तुरंत बन्द करके किसी कोने में पटक देती हूँ और फिर कभी उसे उठाकर नहीं देखती। मेरे पास ऐसी कितनी किताबें हैं जो बस रखी हैं किसी कोने में.....आधी अधूरी....किसी के दो पन्ने पलटे हैं तो किसी के तीन। जब चीज़े उलझ जाती हैं तो मैं ज्यादा कोशिश नहीं करती उन्हें सुलझाने की, मेरा मानना है छोड़ देना चाहिए चीज़ों को। 
लेकिन मैने अपने आस पास कई लड़कियों को देखा है समझौता करते हुए। मैने अपनी कॉलेज की लड़कियों को देखा है अपनी सुरक्षा के साथ समझौता करते हुए, मैने अपनी बहनों को देखा है अपने सपनों के साथ समझौता करते हुए, मैने अपनी माँ को देखा है अपने स्वास्थ्य के साथ समझौता करते हुए, मैने अपनी दादी को देखा है अपनी खुशियों के साथ समझौता करते हुए, मैने अपनी स्कूल की दोस्तों को देखा है अपनी स्वच्छता के साथ समझौता करते हुए। उन्होंने अपने आगे हमेशा चुना है अपने प्रेमी को, अपने पति को, अपने पिता को, अपने समाज को और कभी कभी अपनी मौत को भी।

तो सुनो बे लड़कियों,

हम असमर्थताओं से नहीं सम्भावनाओं से घिरे हैं। तुम चाहो तो सब कुछ कर सकती हो। कोई सोचता है तुम नहीं कर पाओगी तो सोचने दो। मत लो किसी से वो बेफिजूल का ज्ञान जो तुम्हे 'तुम लड़की हो' कहकर दिया जा रहा है। मत करो वहां काम जहां तुम्हें बस 'तुम लड़की हो' कहकर देवी मईया जैसे बिठा दिया गया हो किसी बड़ी पोस्ट पर। मत पैदा करो ऐसी धार्मिक आस्था जो तुम्हें दूर कर रही हो खुद से। नहीं तुम नहीं भोग रही हो अपने किसी पिछले जन्म का फल। तुम्हारी वर्तमान ज़िन्दगी तुम्हारे किसी अतीत का विस्तार नहीं है। तुम्हारे पास नहीं है कोई ऐसी खूँटी जिसपर तुम अपनी चिंताओं और शंकाओ को टांग पाओ। मत बनो बिना पतवार की नौका की तरह। 
क्योंकि एकदिन आएगा जब तुम्हे ज़िन्दगी भर यही फैसला कचोटता फिरेगा जिसे तुमने 'आखिरी दफा' समझकर ले लिया था। और फिर तुम इन्हें जितनी दूर धकेलोगी उससे दुगनी ताकत से ये तुम्हारे पास फिरसे आ जाएंगे। तुम्हे सदियों की ठोकरखोरी ने जो ये बेहिस चट्टान बना दिया है न बस इसी से तुम कर ले जाओगी सबकुछ। तुम बना सकती हो पहाड़ के बीच से भी मार्ग। तुम सदियों से बनाती तो आयी हो। सीता, दुर्गा, काली, अहिल्या, अरे कितने तो रूप लिए हैं तुमने हर बार। 
तुम सबकुछ कर लोगी....

बस समझौता मत करना। ❣️

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