Friday, March 27, 2020

उत्तर प्रदेश के गन्ना किसान छोड़ देंगे खेती?

महंगाई डायन खाई जात है.....
बुआई करता गन्ना किसान।
मुज़फ्फरनगर जनपद के खेड़ा गांव में रहने वाले 46 वर्षीय राहुल कहते हैं कि 'इस बार नवंबर में मिल शुरू हुआ था और अभी तक चल रहा है। जिसमें अभी तक केवल 12 दिन का ही भुगतान किया गया है। मेरा 75 फीसदी गन्ना चला गया है जिसमें से केवल 15 प्रतिशत का ही भुगतान किया गया है। जो 15 प्रतिशत गन्ना अब बचा है न जाने कब जाएगा। गर्मी की वजह से जो गन्ना 80 निकलता है वो अब 50 निकलेगा। बुआई में भी देरी होगी। किसान की किस्मत में मरना ही लिखा है। कोई भी सरकार आये किसान हमेशा घाटे में ही रहा है।'
उत्तर प्रदेश की सबसे बड़े गन्ना उत्पादक क्षेत्रों में गिनती होती है लेकिन यहां स्थिति और खराब है। शुगर मिल्स एसोसिएशन के अनुसार 2 सितम्बर 2019 तक उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों का चीनी मिलों पर 6480 करोड़ रुपये बकाया था। जबकि योगी सरकार ने यह वादा भी किया था कि प्रदेश के गन्ना किसानों को भुगतान हर हाल में 14 दिनों के अंदर-अंदर कर दिया जायेगा और नहीं करने पर ब्याज के साथ मूल राशि दी जाएगी। 
अपने खेत मे बुआई करते सोमपाल।
भसाना मिल में अपना गन्ना देने वाले सोमपाल बताते हैं कि 'अभी तक केवल 12 दिन का ही पेमेंट आया है। नवम्बर 2019 में उन्होंने अपना गन्ना देना शुरू किया था। जिसके बाद फरवरी तक वो लगभग 300 क्विंटल गन्ना दे चुके हैं। जनवरी में भी गन्ने का भुगतान किया गया था लेकिन वो भुगतान पिछले साल का था। यानी लगभग 9 महीने बाद भुगतान किया गया था। हम रातभर मिल में खड़े रहते हैं। 11 बजे घर से निकलते हैं और सुबह 4 बजे घर आते हैं। खेती करना घाटे का सौदा है।'
साथ में खड़े भसाना मिल में ही अपना गन्ना देने वाले जयदेव भी कहते हैं कि 'किसानों को 10-10 घण्टे का भी इंतज़ार करने पड़ता है सहकारी मिलों को छोड़ दिया जाए तो लगभग सभी प्राइवेट मिलों का यही हाल है'। 
भसाना मिल की पर्ची।
भसाना मिल बजाज हिंदुस्तान का मिल है। 2018-2019 में 94 निजी, 24 सहकारी और उत्तर प्रदेश राज्य चीनी निगम की एक इकाई समेत 119 राज्य मिलों ने पेराई परिचालन में भाग लिया था। इन 94 निजी मिलों में से 31 मिल बजाज हिंदुस्तान शुगर लिमिटेड के अंतर्गत आते हैं। बिज़नेस स्टैण्डर्ड के अनुसार सितम्बर 2019 में बजाज हिंदुस्तान पर 5,580 करोड़ रुपये बकाया थे जिसके कारण उत्तर प्रदेश सरकार ने पुलिस केस दर्ज करवाया था। यूपी के टॉप प्रोड्यूसर मिलों में मवाना शुगर लिमिटेड, बजाज हिंदुस्तान शुगर लिमिटेड, मोदी शुगर मिल, वेव इंडस्ट्रीज और यादव शुगर लिमिटेड आते हैं। 

मिलों पर किसानों का बकाया पैसा:
25 जून 2019 की बात की जाए तो गन्ना किसानों के 18143 करोड़ रुपये बकाया थे वहीं पर केवल उत्तर प्रदेश किसानों की अगर बात की जाए तो यह राशि 10134 करोड़ थी, 2018-19 में 17,840 करोड़ रुपये और 2017-18 में यह बकाया मूल्य 303 करोड़ रुपये था। 
उत्तर प्रदेश शुगर मिल एसोसिएशन के अनुसार एक अक्टूबर से 20 फरवरी 2020 तक राज्य की चीनी मिलों पर किसानों का बकाया बढ़कर 7,392.47 करोड़ रुपए पहुंच गया है ।जबकि पेराई सीजन 2018-19 का 515.55 करोड़ रुपए बकाया है, 2017-18 का 40.45 करोड़ रुपए और 2016-17 का भी 22.29 करोड़ रुपए चीनी मिलों पर अभी तक बकाया है। 
यूपी केन की वेबसाइट (UPCANE) के अनुसार पेराई सत्र 2019-2020 में 19 मार्च 2020 तक 13,725 करोड़ रुपये का भुगतान हो चुका है। वहीं पर पेराई सत्र 2018-2019 में कुल देय गन्ना मूल्य 33,048 करोड़ रुपये के सापेक्ष 32,798 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया है।
यूपी केन कि वेबसाइट के ही अनुसार 2011 से लेकर 2019 तक हर साल मिल नवंबर में शुरू होकर मार्च तक चली है जिसमें हर बार किसानों का भुगतान 8-9 महीने के अंतराल पर ही किया गया।

इस साल के बजट में कहां है किसान? 
उत्तर प्रदेश के आज तक के सबसे बड़े बजट में इस साल कृषक कल्याण के तहत 36,000 करोड़ से 86 लाख लघु एवं सीमांत किसानों का फसल ऋण मोचन किया गया। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना में प्रदेश के सभी किसान आच्छादित, 2 करोड़ 4 लाख किसानों के खाते में 12 हज़ार करोड़ रुपये हस्तांतरित, 4 करोड़ मृदा स्वास्थ्य कार्ड एवं 1.11 करोड़ किसान क्रेडिट कार्ड वितरित की बात कही गयी है। सरकारी आंकड़ों की ही माने तो सूचना एवं जनसंचार विभाग, उत्तर प्रदेश के अनुसार पिछले 3 सालों में किसानों का 92,522 करोड़ रुपयों का गन्ना मूल्य भुगतान हो चुका है।
सरकार ने 2016 में किसानों की आय 2022 तक दोगुनी करने की बात भी कही थी। लेकिन मूल धन तो मिल नहीं पा रहा है फिर दोगुनी आय का सवाल ही कहाँ से आया? इसबार हालांकि कृषि क्षेत्र के लिए 283 लाख करोड़ रुपये आवंटित किये गए हैं।

मौसम की मार और किसान: 
इस साल बारिश की वजह से कोल्हू बन्द हुए हैं। जिससे गन्ना मंदा हो गया है और गुड़ महंगा। अभी गन्ने का रेट 325 रुपये प्रति क्विंटल चल रहा है। मायावती सरकार के दौरान ही 40 रुपये प्रति वर्ष यह बढ़ाया जाता था लेकिन उसके बाद आने वाली सभी सरकारों ने गन्ना किसानों के लिए कोई खास सुविधा नहीं की।
कोल्हू।
वरिष्ठ पत्रकार अखिलेश आर्येन्दू लिखते हैं कि 'सरकारी नौकरी पेशा वाले लोगों के वेतन में 120-150 गुने की वृद्धि हुई है जबकि किसानों की मुश्किल से 19 प्रतिशत। सरकारी कर्मचारियों को स्वास्थ्य भत्ता चार लाख अस्सी हज़ार मिलता है, सर्वोच्च न्यायालय के अधिकारियों, जजों, कर्मचारियों को इक्कीस हज़ार अतिरिक्त भत्ता मिलता है। लेकिन किसानों के लिए न कोई भत्ता है न कोई योजना।'
किसान नेताओं के बारे में बताते हुए रामभूल कहते हैं कि 'हम 40 साल से खेती कर रहे हैं हमे कभी कोई फायदा नहीं मिला। लोग किसान नेता बने बैठे हैं, 4 दिन धरने पर बैठते हैं फिर सुलह हो जाने पर उठ जाते हैं। सब अपनी जेब भरना चाहते हैं। गरीब किसान का तो नुकसान होना ही है चाहे कुछ भी करें'।
62 वर्षीय बीरसिंह नहीं चाहते उनके बच्चें या पोते खेती करें। वो कहते हैं कि 'मेरी पूरी ज़िंदगी खेती करने में बीत गई। किसान को मरना ही है, इससे अच्छा है कि 10-12 हज़ार की नौकरी कर लें कम से कम पैसे तो समय से मिलते हैं। 1 बीघा खेत में 5000-6000 तक का खर्च आता है। मिल पेमेंट नहीं करता तो हमे लोन लेना पड़ता है और फिर न चुकाने पर बैंक वाले भी हमे डंडा करते हैं। महंगाई इतनी है। अब अगर लोन नहीं लेंगे और अगले सत्र की बुआई कैसे करेंगे? हम खाएंगे क्या?'
62 वर्षीय बीरसिंह।
किस सरकार ने कितना फायदा दिया?
राजनीतिक महत्व की अगर बात की जाए तो लोकसभा की 545 सीटों में से लगभग 164 सीटों पर गन्ना किसानों का सीधा असर पड़ता है। प्रदेश के 44 जिलों में गन्ना उत्पादन होता है और 28 जिलों की तो पहचान ही गन्ना किसानों के तौर पर होती है। वित्त मंत्री के द्वारा पेश किये गए बजट के अनुसार यह बजट इन करोड़ों भारतीय किसानों की आकांक्षा पूरी करने का लक्ष्य निर्धारित करता है, जो भारतीय अर्थव्यवस्था की धुरी है। 
2000 से 2002 के बीच में भाजपा ने दो बार गन्ने का समर्थन मूल्य 5 रुपए बढ़ाया था। वहीं पर सपा सरकार ने 2004 से 2007 के बीच 13 से 10 रुपए तक का इजाफा किया था और बसपा ने 2008 से 2011 के बीच इसमें 10 से 35 रुपए तक की बढ़ोतरी की थी। सपा सरकार दोबारा जब 2012 में आई तो उसने गन्ना समर्थन मूल्य में 40 रुपए की बढ़ोतरी की। 2017 में चुनाव से ठीक पहले सपा सरकार ने 25 रुपए एकबार फिर बढ़ाए। फिर इसके बाद योगी सरकार ने 10 रुपए का इजाफा किया। हालांकि, हर साल बढ़ती महंगाई के चलते किसानों को बढ़ी हुई दर खाद, बीज, सिंचाई और लेबर चार्ज आदि के हिसाब से कम ही रहती है।
कांटे पर गन्ना तोलवाते किसान।
नेशनल स्कीम पालिसी कहती है कि कृषि से देश की अर्थव्यवस्था को कोई खास फायदा नहीं हो रहा है। इसलिए उन क्षेत्रों को बढ़ावा देने की जरूरत है, जिनसे अर्थव्यवस्था को मजबूत आधार मिले। लेकिन यहां सरकार को समझना होगा कि मुद्दा ये नहीं है कि फायदे का सौदा क्या है बल्कि परेशानी ये है कि किसानों पर कुदरत भी कहर ढाती रहती है। राहत देकर कबतक मरहम लगाया जाएगा? आज़ादी के बाद से कोई भी ऐसी सरकार नही आयी जिसने सरल और निश्चित आय बनाने के सन्दर्भ में काम किया हो। घाटे वाली कृषि का सबसे बड़ा कारण उनसे जुड़ी सरकारी योजनाएं ही होती हैं। जरूरी है आला अधिकारी अपने निजी हितों को छोड़कर इन छोटे-बड़े किसानों के बारे में सोचे। नहीं तो वो दिन दूर नहीं जब ये सभी किसान खेती छोड़ अन्य नौकरियों की तरफ रुख करेंगें।

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