Saturday, February 22, 2020

यहां एक नदी हुआ करती थी.....


दिल्ली, यमुना और मेट्रो
हिमालय को अपना पालना बना बलखाती लहराती नहरें अपने नन्हे कदम सम्भाल पहाड़ो की तलहटी से उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में उतरती हैं। आगे चलकर ये एक ऐसे नदी का रूप ले लेती हैं जिसने अपनी बहाव की डोर से  उत्तर भारत की हज़ारों साल पुरानी सांस्कृतिक विरासत को बांधकर रखा है। 'यमुना'- ये सिर्फ एक नदी नहीं बल्कि गंगा जमुनी द्वाब में रहने वाले करोड़ो लोगो के लिए एक जीवनदायिनी शक्ति है, जननी है।
इसके बहाव में बहती है कहानियां बृज में कृष्ण लीला की, इसकी लहरों की ध्वनि में मिठास है कान्हा की बासुंरी की और इसके घाटों की खूबसूरती में अदा है राधा की। ये वो नदी है जो ताज का आईना है। ये नदी ग़ालिब की नज्मों की तरह दिल्ली के इतिहास को अपने अंदर समेटे हुए है।
दिल्ली का यमुना घाट
दिल्ली के लाल किला मेट्रो स्टेशन से लगभग ड़ेढ किलोमीटर की दूरी पर यमुना घाट है। यमुना किनारे कई जगह लोगों को पूजा सामग्री, पॉलिथीन और अन्य बेकार चीज़े फेंकते देखना अब आम बात हो चली है।
घाट की सीढ़ियां और कचरा
यमुना घाट पर रहने वाले सुरेंद्र के अनुसार यहां सफाई के लिए कोई नहीं आता है। उनके घर के बाहर यमुना की सीढ़ियों पर कुछ हिन्दू देवी देवताओं की मूर्तियां, शराब की बोतलें, पॉलीथीन, दवाई की बोतलें और कुछ साबुन के पैकेट पड़े हैं। सीढियों के बराबर में ही एक नाली जा रही है जिसमें वहां रहने वाले लोगों के घरों का कूड़ा-कचरा निकलकर नदी में मिल रहा है। पॉलीथीन का ढ़ेर और फूलों की सड़न साफ दिखाई दे रही है। उसी गली में रहने वाली एक आंगनबाड़ी महिला बताती हैं कि 'वह कुछ दिन पहले ही यहाँ आयी हैं, यमुना में पानी का स्तर बढ़ने के कारण उन्हें 15 दिन के लिए मकान खाली करने पड़े थे। अब स्तर कम हुआ है तो वह वापिस अपने घर में आ गये हैं। मानसून के समय यमुना का जलस्तर हर साल बढ़ जाता है जिसके कारण पूरी कॉलोनी को टेंट में कहीं और जाकर रहना पड़ता है।
 गलियों के घरों पर लगे पेम्पलेट
यहां 32 घाट हैं जहां पहलवानी के लिए अखाड़े भी हैं। अखाड़े नम्बर 2 पर रामनाथ पहलवान का अखाड़ा है और उसी के आगे धर्मपाल यादव का अखाड़ा है। धर्मपाल के नाम दंडबैठक मारने का विश्व रिकॉर्ड भी है। कुछ साल पहले तक चांदनी चौक के बड़े बड़े व्यापारी यहां पहलवानी और तैराकी के लिए आते थे। वे वज़ीराबाद से कूदकर 7 मील तैरते हुए वे यहां तक आते थे। लेकिन तकरीबन 20 साल पहले एक कश्मीरी लड़के की डूबकर मौत हो जाने के बाद सरकार ने तैराकी बन्द करवा दी है। छुआरों के कारोबारी मुकेश गुप्ता जो सीताराम बाजार में रहते हैं बताते हैं, 'इन घाटों पर एक समय में दौड़ भी हुआ करती थी लेकिन वो भी कुछ 4 या 5 सालों से बन्द है'।
घाट नम्बर 25 के लाल बलुआ पत्थरों पर बैठे दो अघोड़ी बीड़ी के कश लगाते हुए बातें कर रहे हैं। बीच बीच में वो अपनी टकटकी हमपर भी लगाते हैं। हम जैसे ही घाट नम्बर 27 की ओर बढ़ते हैं वो हमे रोक देते हैं। घाट नम्बर 27- निगमबोध घाट पर एक बच्ची का अन्तिमसँस्कार किया जा रहा है। निगमबोध घाट पर दूर दूर से लोग आकर अपने सगे सम्बन्धियों का अन्तिमसँस्कार करते हैं। उसके बाद अस्थियां, फूल, हड्डियां जो भी कुछ बचता है उसे यहीं यमुना में ही फेंक दिया जाता है।

यमुना और कुछ पक्षी
सर्दियों का मौसम साइबेरियन पक्षियों का आने का समय होता है। हर साल सर्दियों की शुरुआत के साथ साइबेरियन पक्षी यहां आते हैं। इनका ज़िक्र करते हुए रविन्द्र शर्मा बड़े उदास होकर कहते हैं, कि अब लोग श्राद्ध करवाने नहीं आते। लोगों की सोच अब बदल चुकी है। महंगाई ज्यादा और कमाई कम होने के कारण अब लोग 500-700 रूपए श्राद्ध में नही देते। लोगों में आस्था खत्म हो रही है। पहले जहां 4 से 5 हज़ार लोग श्राद्ध करवाने आते थे इसबार केवल 40-50 लोग ही आएं हैं। इसके कारण व्यापार को काफी नुकसान हुआ है।

आस्था एक बहुत बड़ा एंगल

यमुना के किनारे रहने वाले लोगों का मानना है कि पिछले कुछ सालों से जलीय जीवन को भी प्रदूषण से काफी नुकसान हुआ है। आसपास के कुछ लोगों को छोड़ दिया जाए तो अब लोग डुबकी लगाने भी नहीं आते।
घाट पर नहाते कुछ क्षेत्रीय निवासी 
इंटरनेशनल जर्नल ऑफ इंजीनियरिंग साइंसेज एंड रिसर्च टेक्नोलॉजी में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है: “दिल्ली में यमुना नदी लगभग 'मर चुकी है ’ और इसके उपचार के कोई संकेत नहीं हैं यहां तक ​​कि महंगी जल उपचार तकनीकें प्रदूषित नदी के पानी के उपचार में असमर्थ हैं"।जल प्रदूषण का स्तर सिंचाई के लिए प्रदूषण नियंत्रण अधिकारियों द्वारा निर्धारित सीमा से कई गुना अधिक हो चुका है। यमुना का जल इस कदर प्रदूषित हो चुका है कि किसी अन्य उद्देश्य के लिए अब यह उपयुक्त नहीं है। यहां तक कि यमुना का पानी फसल की सिंचाई के लिए भी बेकार है और इसका सेवन नहीं किया जाना चाहिए।
सरकारी तन्त्र की सुस्ती और लोगों की लापरवाही यमुना के प्रदूषण को और ज्यादा बढ़ावा दे रही है। ताज्जुब की बात है कि पूरी नदी की केवल 2 प्रतिशत लंबाई ही दिल्ली से होकर गुजरती है, फिर भी अकेली दिल्ली नदी को 76 फीसदी प्रदूषित करती है। 

घाट नम्बर 23 पर अपनी पांच पीढ़ियां बिता चुके पुजारी रामकिशन बताते हैं कि, '1984 से पहले नदी साफ हुआ करती थी उसके बाद से ही गन्दी होनी शुरू होगई हालांकि अभी नदी थोड़ी साफ हुई है। एनजीटी ने अब इनटेक (INTACH) नाम की कम्पनी को इसकी देखरेख का जिम्मा दिया है। और अगर सुधार नहीं होगा तो हर महीने 5 लाख का जुर्माना कम्पनी को देना होगा'। अधिकांश घाटों में मुख्य रूप से पुजारियों के परिवार द्वारा बसे एक मंजिला मकान ही हैं जो सदियों से यहां रह रहे हैं। जन्म मृत्यु से सम्बन्धित पारंपरिक हिन्दू रीति-रिवाज़ ही आज भी इनके परिवार के लिए आय का मुख्य स्रोत बना हुए हैं। पिछले 45 सालों से रामकिशन खुद यहां पूजा कर्म-कांड कर रहे हैं।
घाट पर पूजा करती महिला
वक़्त का तकाज़ा है कि एक समय में ये हस्ती खिलखिलाती नदी दिल्ली के न जाने कितने लोगों की ज़िन्दगी का हिस्सा थी। कुश्ती, तैराकी, पूजा, आरती, भजनों से चहकती ये जगह आज मर चुकी है। लोग यहां आज भी दिख जाते हैं लेकिन उनकी संख्या इक्का या दुक्का ही है। अब यहां कोई नहीं आता। ये जगह सुनसान है।



No comments:

Post a Comment

भारत के मेले: छत्तीसगढ़ का 'मड़ई मेला' जहां मिलता है औरतों को संतान प्राप्ति का आशीर्वाद

ये छत्तीसगढ़ में लगने वाला एक मेला है, गंगरेल मड़ई। दीवाली के बाद पहले शुक्रवार को यह मड़ई मेला आयोजित करवाया जाता है। इस साल भी लगा था। जो इन ...