Tuesday, February 25, 2020

शाहीन बाग: सहमति और असहमति से इतर

तमाम सहमतियों और असहमतियों से इतर....

शाहीन बाग से हटकर भी दिल्ली में कई ऐसी जगह हैं जहां महिलाएं और पुरुष साथ में CAA के विरोध प्रदर्शन में बैठे हैं और तकरीबन उतने ही दिनों से जितने दिनों से शाहीन बाग में विरोध प्रदर्शन चल रहा है (मेनस्ट्रीम मीडिया के कैमरे में कैद नहीं हुआ है वो अलग विषय है)।
तो सवाल ये है कि ये छिन्न-भिन्न वाला प्रदर्शन आखिर कबतक? कबतक आप ऐसे तितर-बितर होकर बैठे रहेंगे? क्यों न एक जगह चुन ली जाए और उसी जगह सभी मिलकर प्रदर्शन करें? किसी भी आंदोलन का एक लक्ष्य तो ये भी होता है ना कि जितना जनसमर्थन हम जुटा पाए उतना बेहतर? सबका अंतिम लक्ष्य तो एक ही है... जब मुद्दा एक ही है तो फिर जगह अलग अलग क्यों?
इससे अन्य नागरिकों को भी दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ेगा और इससे आपका विरोध प्रदर्शन भी ज्यादा मजबूती के साथ दिखेगा। कम से कम किसी को हिंसा जस्टिफाई करने का मौका नहीं मिलेगा। मैं फिर कहती हूँ कि हिंसा का जस्टिफिकेशन नहीं होता। हिंसा मुसलमान करे या हिन्दू करे, हिंसा हिंसा होती है।  'हिन्दू' और 'मुसलमान' ही रहिये। क्या है ना कि खुद को ज्यादा 'बड़ा मुसलमान' और ज्यादा 'बड़ा हिन्दू' कहलवाने के चक्कर में सब गुड़गोबर कर रहें हैं आपलोग। नहीं तो भाई 2-4 लोगों के मरने से रुकेगा तो कुछ नहीं ये दुनियां है जैसे चल रही है चलती रहेगी आपलोग खेलते रहिये 'उसने पहले मारा- उसने पहले मारा' वाला खेल।

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