Monday, December 30, 2019

CAA/NRC: प्रधानमंत्री जी को खुला खत

प्रिय प्रधानमंत्री जी और गृहमंत्री जी!

ये खुला खत आप दोनों के नाम बड़े ही अफसोस और भारी दिल से लिखा जा रहा है। इस साल बहुत कुछ घटा किसी के लिए अच्छा तो किसी के लिए बुरा रहा। ज्यादातर फैसले धर्म और राजनीति का चौला ओढ़े थे। मैं नहीं जानती ये फैसले सही थे या गलत। लेकिन ऐसा विरोध मैने कभी नहीं देखा है और ना किसी किताब में पढ़ा है। आपको पता था शायद। लेकिन आप नहीं रुके। आप फैसले देते गए, वो फैसले जिनके लिए शायद लोग तैयार नहीं थे, वो फैसले जिनसे हम भारतवासी 2 धड़ो में बट गए। बांटना गलत नहीं था। गलती वहां हुई जब यही दो धड़े एक दुसरे के दुश्मन हो चले... और आपने हमे दुश्मन बनने दिया।

जिस वक़्त इस देश को अपने 'लीडर्स' अपने रिप्रेजेंटेटिव की जरूरत थी वो वहां मौजूद नहीं थे। 'नेता' नेतृत्व करता है। लेकिन ये सभी प्रदर्शन नेतृत्वहीन रहे। जिन्हें चुनकर लोगों ने सिर माथे बिठाया था वो उस वक़्त ही मौजूद नहीं थे जब देश को सबसे ज्यादा जरूरत थी। माफ कीजियेगा आप भी नहीं थे/हैं। कहीं कोई 'नेता' अपने निजी कार्यक्रमों में व्यस्त हैं तो कोई विदेश भ्रमण पर हैं। कई सूचनाएं देश को तत्काल मिलनी चाहिए थी, उन्हें सूत्रों के हवालों से दिया गया/ दिया जा रहा है। लोग गुमराह होते गए और आपने गुमराह होने दिया। देश जल रहा है प्रधानमंत्री मंत्री जी और आप उसे जलने दे रहे हैं। हम इतिहास से सीखते हैं और आगे बढ़ते हैं। कुर्सी का लालच और सत्ता का मोह गलत होता है। इतिहास की तमाम किताबों से हमने सीखा है कि पछताने की ताकत रखने वाली तमाम संस्कृतियां तबाह हो गयी और ढेर बन गयी। मैं जानती हूँ कि पुरानी सभी लड़ाइयां हमे यही बताती हैं कि मौत के योगफल के आधार पर ही हार-जीत तय हो सकती है। लेकिन लोगों का विरोध प्रदर्शन कोई युद्ध-महायुद्ध नहीं है। ये आपके ही लोग हैं। 

घृणा की तोप और नफ़रत का बारूद तैयार हो चुका है। काली आंधियां चल रही हैं। ये आंधी सबकुछ खत्म कर देगी और सबसे पहले तबाह होगी इस देश की गंगा-जमुनी तहजीब। फिर कोई इमरान सुबह-सबेरे मंदिरों में चढ़ने वाले फूल नहीं बेचेगा, कोई किशन ईद पर पहने जाने वाले कपड़े नहीं बेचेगा, दीवाली पर कोई गुफरान किसी आव्या के घर खाने पर नहीं जाएगा, बाजू वाली बिल्डिंग में रहने वाली कोई शाहीन ईद पर अश्विनी को नहीं बुलाएगी। किसी अरशियन को मैं भैया नहीं बुलाऊंगी और कोई फरहान मुझे चांदनी चौक की गलियां नहीं घुमाएगा। 

हो सकता है ये फैसले जरूरी हो, बेशक। लेकिन अभी इस देश को, सड़को पर निकल रहे जामिया-एएमयू-दिल्ली विश्वविद्यालय-जेएनयू और अन्य विश्वविद्यालयों को, गुमराह होते युवाओं को, खौफ में बैठे बुजुर्गों को आपकी जरूरत है। आपके नेतृत्व, आपके प्यार, आपके साथ, आपकी सांत्वना, एक लीडर की और सबसे जरूरी आपके उनके बीच में होने की जरूरत है। आप खड़े तो हैं लेकिन उनके विपक्षी बनकर.…. एकदम दूर......क्षतिग्रस्त होते लोगों के विश्वास, आखिरी सांस लेते भरोसे को और वेंटिलेटर पर पड़े इस देश को उसके प्रधानमंत्री की जरूरत है। उस लीडर की जिसे इस देश ने चुनकर भेजा है।

आज भी कई आंखें हैं, जो कहना तो बहुत कुछ चाहती हैं, पर उन्होंने कभी कुछ कहा नहीं। कई घरों में हल्की-सी उठती कोई आवाज़ है। किसी एथिक्स की क्लास में प्रश्न करने के लिए उठता कोई हाथ है। किसी पत्रकारिता कर रहे बच्चे के लौटते हुए अधूरे अरमान और कहीं किसी मजबूरी की कोई दास्तान... ये अजीब दिन हैं। एक के बाद एक, लगातार बीतते हुए दिशाहीन दिन।
'हम' आज़ादी के संघर्ष से लेकर अलग अलग लड़ाइयों में साथ रहकर डटे रहे हैं, आज भी डटे हैं और आगे भी डटे रहेंगे। उम्मीद है आप अभी पूरी तरह संवेदना शून्य नहीं हुए हैं। 

धन्यवाद! 

'हम' भारत के लोग।

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