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गांधी स्मारक निधि, पट्टीकल्याणा। |
पानीपत जिले के समालखा तहसील से तकरीबन 2 किलोमीटर की दूरी पर पट्टीकल्याणा नाम की जगह है। सड़क से सटा एक बोर्ड है जिसपर 'गांधी स्मारक निधि' लिखा है। हालांकि यहां पहुंचने के लिए काफी मशक्कत का सामना करना पड़ा।
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पट्टीकल्याणा, स्वाध्याय आश्रम। |
यह है गांधी स्मारक निधि प्राकृतिक जीवन केंद्र स्वाध्याय आश्रम। हमने अंदर जाने की सोची तो बाहर बैठे एक 67 वर्षीय वृद्ध ने हमे टोका 'यहां हर किसी को जाने की आज्ञा नहीं है'। हमने बताया हम पत्रकार हैं, मिलना चाहते हैं। काफी देर बात करने के बाद अंदर जाने की परमिशन इस शर्त पर मिली कि हम उस आश्रम में इधर उधर नहीं घूमेंगे सीधा वहां के हेड डॉक्टर से मिलेंगे।
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अंदर से आश्रम ऐसा दिखता है। |
खैर, हमने ज्यादा बहस ना करते हुए सीधा डॉक्टर को फ़ोन घुमाया। एक लड़की मिली जो वहीं की स्टूडेंट थी। उसके जिद्द करने पर हमने थोड़ा ही आश्रम घुमा। तो पाया कि यहां 'नेचुरोपैथी' यानी प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति से इलाज होता है।
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हरा-भरा प्रांगण। |
गांधी जी के 'नेचुरोपैथी' सिद्धांत से यहां मरीजों को ठीक किया जाता है। प्रकृति से किये जाने वाले इलाज को नेचुरोपैथी कहा जाता है। इंसान का शरीर 5 तत्वों से मिलकर बना है वायु, जल, अग्नि, पृथ्वी और आकाश और इन्ही तत्वों से मरीज का इलाज नेचुरोपैथी में किया जाता है। नेचुरोपैथी में रोग को ठीक करने के साथ ही उसे शरीर से खत्म करने पर ध्यान दिया जाता है। इस चिकित्सा पद्धति में पूरी तरह से प्रकृति में मिलने वाली चीजों का इस्तेमाल कर अलग-अलग रोगों का उपचार किया जाता है।
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67 वर्षीय हिरेन अंकल। |
'आई एम 67 इयर्स ओल्ड एंड डॉक्टर बाई प्रॉफेशन' पीछे से एक आवाज़ आती है। हालांकि उम्र के हिसाब से दिखने में वो काफी जवान लग रहे थे। 2005 में गाड़ी से एक्सीडेंट के कारण उनकी बॉडी पैरालाइज्ड हो गयी थी, 27 दिन कोमा में रहने के बाद आज वह 80% तक ठीक हो गए हैं। अंकल बताते हैं कि वह इस आश्रम में 2015 में एडमिट हुए थे और आज यहां के स्टूडेंट बन गए हैं। एक 27 वर्षीय जवान की ऊर्जा से ओत-प्रोत हीरेन अंकल बताते हैं कि 'मैं पेशे से डॉक्टर हूं, लेकिन एलोपैथी से ज्यादा नेचुरोपैथी पर भरोसा करता हूं। अब मैं रोज़ सुबह-शाम 5 किलोमीटर पैदल चलता हूं।' प्राकृतिक इलाज का फायदा बताते हुए हीरेन अंकल हमे बताते हैं कि, 'मैं काफी ऑप्टिमिस्टिक हूं, 1978 में गाज़ियाबाद में मेरा नर्सिंग होम था। लोग अक्सर मेरी पीठ पीछे कहा करते थे कि ये डॉक्टर इंजेक्शन में पानी भरकर लगाता है, अब मैं उन्हें कहना चाहता हु कि हां पानी से भी इलाज होता है।'
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चिकित्सक कक्ष, प्राकृतिक जीवन केंद्र। |
प्राकृतिक चीज़ों से इलाज के बावजूद यह आश्रम किसी ऐम्स, अपोलो से कम फैसिलिटीज़ वाला नहीं है। आश्रम की देखरेख करने वाले एक सीनियर डॉक्टर बताते हैं कि 'इस आश्रम में दो प्रकार की व्यवस्था हैं- जनरल वार्ड और स्पेशल वार्ड जहां 100 बेड्स की व्यवस्था है। खाने का यहां एक प्रॉपर टाइम टेबल है। सुबह 5 बजे से मरीजों की दिनचर्या शुरू हो जाती है। बाहर की खाने की वस्तुएं यहां वर्जित हैं। मरीजों को केवल जैविक खाना ही दिया जाता है।' हालांकि आश्रम के कुछ कमरों में लगे ऐ.सी हमारी नजरों में खटक रहे थे। लेकिन लोगों की जेबों को नाक चिढ़ाते तीन-तीन, चार-चार लाख तक आने वाले बड़े बड़े हॉस्पिटल बिल की बजाय यहां 1 महीने का बेड का खर्चा मुश्किल से 10-20 हज़ार तक ही आता है।
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आश्रम के अंदर ही एक खादी भारत स्टोर भी है। |
25 एकड़ की ज़मीन पर बने इस प्रांगण में चारों ओर हरियाली फैली है। खिली धूप, साफ हवा, फूलों की खुशबू, साफ पानी और लहराते खेत हम दिल्ली में रहने वाले लोगों को अक्सर खुश कर देते हैं।
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