"बचपन में हम सभी ने भगवान और शैतान की कई कहानियां अपनी दादी-नानी से तो सुनी ही हैं। अगर अच्छाई के रास्ते चलेंगे तो भगवान मिलते हैं और बुराई के रास्ते चलेंगे तो शैतान का मिलना तय है। लेकिन अगर असल में हम सोचें तो अच्छाई और बुराई दोनों ही हम सभी के अंदर बैठी होती है। बस कब किसको बाहर निकालना है ये हम तय करते हैं।"
आपको 2014 में सनमजीत सिंह तलवर के निर्देशन में आयी फ़िल्म ढिश्कियाऊं याद है? ऑनी सेन के निर्देशन में बनी Voot पर आयी 'असुर' वेब सीरीज आपको उसकी याद दिला सकती है। हालांकि वेब सीरीज के लेखक गौरव शुक्ला ने इसे लिखा बेहद अलग ढंग से है और इसकी एंडिंग भी अलग है लेकिन फिर भी कहानी आपको उस फ़िल्म की याद जरूर दिलवाएगी। सीरीज़ खत्म होने पर आपको ऐसे लगेगा जैसे ये आप पहले ही किसी फ़िल्म में देख चुके हैं। ये कहानी आपको डार्क नाइट के जोकर की भी जरूर याद दिलाएगी।
Voot पर रिलीज़ हुई हिंदी वेब-सीरिज़ 'असुर- वेलकम टू योर डार्क साइड' एक मायथोलॉजी सस्पेंस थ्रिलर है। ये सीरिज़ कली-कल्कि अवतार वाली कहानी, देव-असुर की कहानियां जो शायद आपने अपनी दादी या नानी से ही कभी सुनी होगी ऐसे स्टोरीज़ को दोबारा से याद दिलवाती हैं। इसमें अरशद वारसी और अधिकतर इंडियन सिरियल में ही दिखने वाले बरुन सोबती मुख्य किरदार में हैं।
क्या है वेद-पुराण वाला कनेक्शन?
श्रीमद्भागवत-महापुराण के 12वें स्कंद के में श्लोक लिखा है-
सम्भलग्राममुख्यस्य ब्राह्मणस्य महात्मनः।
भवने विष्णुयशसः कल्कि: प्रादुर्भविष्यति।।
अर्थात: शम्भल ग्राम में विष्णुयश नाम के एक ब्राह्मण होंगे। उनका ह्रदय बड़ा उदार और भगवतभक्ति पूर्ण होगा। उन्हीं के घर कल्कि भगवान अवतार ग्रहण करेंगे।
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कुछ ऐसा माना जाता है कल्कि का रूप। |
हिंदू मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु के दसवें अवतार 'कल्कि' का अवतरण कलयुग के अंत में होना है। श्रीमद्भागवत गीता में भी कहा गया है कि "जब-जब इस पृथ्वी पर धर्म की हानि होती है और अधर्म आगे बढ़ता है, तब-तब मैं इस पृथ्वी पर जन्म लेता हूँ। सज्जनों और साधुओं की रक्षा के लिए, दुर्जनो और पापियों के विनाश के लिए और धर्म की स्थापना के लिए मैं हर युग में जन्म लेता हूँ"
बस ये कहानी बार-बार आपको इन्हीं दो श्लोकों की याद दिलवाती रहेगी।
कहानी क्या है?
कहानी 'शुभ' नाम के एक ऐसे एक्स्ट्रा-आर्डिनरी बच्चें के बारे में है जो गलत नक्षत्र में पैदा हो जाता है (उसके पिता के अनुसार)। इसी कारण वह उसे बचपन से ही 'असुर' कहने लगता है। ये बात उसके दिमाग में बैठ जाती है और वो खुद को मायथोलॉजीकल केरैक्टर 'कली' मानने लगता है। वह बड़े होकर दूसरों को मारना शुरू कर देता है इस आस में कि विष्णु का अवतार कल्कि तक उसका सन्देश जाए। सीबीआई को जैसे ही इसकी भनक लगती है वो इसकी तहक़ीक़ात शुरू कर देते हैं। 10 साल पहले सीबीआई छोड़ चुके विदेश में रह रहे निखिल नायर के फ़ोन में मरे हुए इंसानों के कोऑर्डिनेट आने लगते हैं (निखिल नायर किसी ज़माने में डीजे के साथ काम कर चुका होता है और आपसी कलह की वजह से सीबीआई छोड़कर चला जाता है)। वह इसकी जानकारी अपने पुरानी कलीग लोलार्क दुबे को देता है। धनंजय राजपूत 'डीजे' का किरदार निभा रहे अरशद सीबीआई में सीनियर होते हैं और ये इन केस को हैंडल करने का जिम्मा उन्हें दिया जाता है। कुछ दिन बाद जाकर पता चलता है कि इन लोगों को मारने वाला प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर इन दोनों से (निखिल और डीजे) जुड़ा होता है। बाद में जाकर निखिल को किन्ही कारणों से विलेन का साथ देना पड़ता है और वो उसके साथ मिलकर लोगों को मारना शुरू कर देता है। कहानी में ऐसे ही चूहे बिल्ली जैसा खेल चलता रहता है। अब ये पूरी कहानी तो खैर आपको सीरीज़ देखने पर ही समझ आएगी।
कहानी कहाँ कहाँ निराश करती है?
1. कहानी में एक साथ बहुत घोच-पोच हो रहा होता है जिसे समझने में काफी दिक्कत होती है। क्योंकि कहानी में सब चीज़े बहुत इंस्टेंट हैं तो इसमें नज़रें हटी, दुर्घटना घटी जैसा सीन है। अगर आप एक भी सीन मिस करते हैं तो हो सकता है आपको अगला सीन समझने में दिक्कत हो।
2. कहानी में फीमेल रोल बहुत कम दिखाया गया है। हालांकि लीड की पत्नी नैना का किरदार निभा रही अनुप्रिया गोइन्का का सीरीज के आखिरी 2 एपिसोड में फायरवॉल सिक्योरिटी तोड़ने और फिर असुर को ट्रैक करने वाला रोल दिखाया गया है बावजूद इसके उसका स्क्रीनटाइम बेहद कम है। इसका दूसरा किरदार है नुसरत सईद का। रिद्धि डोगरा यह किरदार निभा रही है। नुसरत सीबीआई में ही काम करती है। फॉरेंसिक डिपार्टमेंट को सम्भाल रही सीनियर पोस्ट पर है, बाद में जाकर प्रमोशन भी होता है लेकिन फिर भी एक दिल टूटा आशिक़ ही नज़र आती है। एक और किरदार भी है आयुषी मेहता खैर वो तो बस नाम के लिए ही नज़र आ रही हैं।
3. कहानी में ये दिखाने की पूरी कोशिश की है कि शुभ मायथोलॉजी को असली मानकर खुद को असुर 'कली' मानता है और कलगी अवतार/ विष्णु तक अपना सन्देश पहुँचाना चाहता है और इसीलिए वह लोगों की हत्या कर रहा है। लेकिन कहानी के कुछ पार्ट में कहीं-कहीं दूसरा या तीसरा लॉजिक भी दिखाया जाता है जिसमें शुभ बदला लेना चाहता है। या शायद जबरदस्ती कहानी को खींचने की कोशिश की गयी है।
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निखिल नायर और दिग्विजय राजपूत। |
कहानी की एंडिंग का भंड़ाफोड़ करें?
कहानी के आखिर में दिखाया गया है कि सीबीआई में काम करने वाला रसूल ही 'शुभ' है। लेकिन बनारस के जेल में जब आग लग जाती है तब चार लोग मरते हैं (शुभ को जोड़कर)। उसमें से तीन लोग (काली आंखों वाला लड़का, रसूल और केसर) आ चुके हैं। अभी तक भी चौथा इंसान नहीं दिखाया गया है। उसकी एंट्री अभी बाकी है जो हो सकता है असली 'शुभ' हो। तो मेरे खयाल से असली शुभ की पहले सीज़न में एंट्री नहीं हुई है। ये तीनों बस फॉलोवर्स भर हैं। इसका एक और कारण भी है कि जब रसूल लोलार्क को उस जगह लेकर जाता है जहां निखिल नायर को रखा गया था वहां डायरी में से एक बचपन की घटना पढ़ते हुए वो बचपन में की चीटिंग का जिक्र करता है जिसमें उसकी मैडम उसे फेल कर देती है। टेक्निकली शुभ एक एक्स्ट्रा-आर्डिनरी बच्चा होता है। उसे चीटिंग की क्या जरूरत?
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अंत ही आरंभ है। |
मुझे लगता है अच्छे या बुरे इंसान जैसा कोई कांसेप्ट ही नहीं है। हमारे हालात तय करते हैं कि हम अच्छे हैं या बुरे। चलिए उदाहरण के तौर पर ही देखिए....आपके घर में आ कर चोरी करने वाला इंसान आपके लिए 'बुरा इंसान' हो सकता है... लेकिन अगर उस इंसान के परिवार की साइड से देखें तो उनका पेट भरने वाला वो इंसान एक 'अच्छा इंसान' है।
खैर...काफी अच्छी वेब-सीरिज़ है। आपके दिमाग के घोड़े दौडवाने का दम रखती है। देख डालिये। अगर आप 'मैं हिंदी वेब-सीरिज़ नहीं देखती/देखता' वाले हैं तब भी ये आपको निराश नहीं करेगी पक्की बात है। या अगर आप 'ब्रो! सेक्रेड गेम्स जैसी फाड़ वेब-सीरीज़ नहीं बन सकती इंडिया में' वाले हैं तब तो ब्रो पक्का देख ही डालिये।
पहला सीज़न देखकर ही अगर आप सोच रहे हैं कि आप कहानी समझ गए हैं तो बस यही कहना चाहूंगी कि ए-दिले नादान 'शुभ' का आना बाकी है क्योंकि 'अंत ही आरम्भ है'।
👍
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