आज सआदत हसन मंटो का जन्मदिन है। मंटो को पढ़ने से ज्यादा समझना जरूरी है। समाज की असलियत और हर बुरे पहलू को सामने लाने के बाद भी मंटो भी इसी समाज का बायप्रोडक्ट थे। मंटो के शराब पीने को आज की युवा पीढ़ी जस्टिफाई करती है। जो खतरनाक ट्रेंड है। मंटो को जैसी लिखने की लत थी वैसे ही शराब की लत थी।
मंटो अक्सर कहते थे कि अगर में आधी से ज्यादा बोतल शराब पीता हूँ तभी बेहतर लिखता हूँ। मंटों जब पंजाब में रहने जाते हैं तो एक खत में लिखते हैं "मेरी याददाश्त यहाँ की बनी हुई शराब पी-पीकर बहुत कमजोर हो गयी है। यूं तो पंजाब में शराब पीना मना है, मगर कोई भी आदमी बारह रुपये दो आने खर्च करके शराब पीने के लिए परमिट हासिल कर सकता है। इस रकम पे पांच रुपये डॉक्टर की फीस होती है, वो लिख देता है कि जिस आदमी ने यह रुपये खर्च किये हैं, अगर बाकायदा यह शराब न पिये तो उसके जीने का कोई भरोसा नहीं है।"
बंटवारे के बाद जब मंटों पाकिस्तान गए तब अक्सर ऐसा होता था कि उनके लेख के पैसे उन्हें ना देकर सीधा उनके घर पहुँचा दिए जाते थे।
मैंने एक लेख में पढ़ा था कि मंटों को अक्सर 'टॉमी' कह दिया जाता था क्योंकि उन्हें शराब का लालच देकर मुफ्त में लेख लिखवा लिया जाता था। और कई बार ऐसा हुआ है कि बदले में पैसे भी नहीं दिए गए।
मंटो की सबसे बड़ी कमी उनकी शराब रही है। मंटो की लेखनी सबसे बेहतर हो सकती है...लेकिन शराब इंसान की तबाही का सबसे बड़ा कारण होती है। मंटो का भी। 'मंटो' मरते दम तक भी 'सआदत' को अपने अंदर से नहीं निकाल पाए।
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