जब जनता कोई भी सरकार चुनती है तो वह खुद को मिली हुई अपनी अनेक स्वतंत्रताएं सरकार को सौंप देती है इस आस में कि आने वाले समय में वो हमारा ख्याल रखेगी। परेशानी ये है कि जनता लोकतंत्र को बखूबी समझती है। लेकिन सरकारें? शायद नहीं। एकदम नहीं।
रोज़ मर रहे मजदूरों को देखकर आपके मन में अगर 'भारत का स्वतंत्र नागरिक' वाला भाव जागृत हो रहा है तो वह गौरवपूर्ण हरगिज नहीं है। इनका इतिहास केवल इतना है कि रोजी की तलाश में दूसरे प्रदेशों को गए ये लोग—मरते-खाते अपना गुजारा करते हैं। एक ऊबड़-खाबड़, आधा बनता हुआ आधा ढहता हुआ सा घर लिए ये लोग जहाँ जिधर चाहें अपनी नई इमारत बना लेते हैं। इनकी भावनाएँ उतनी ही मूल्यवान हैं जितनी भारत के किसी भी नागरिक की। इनका सही सलामत घर पहुंचना उतना ही जरूरी है जितना किसी भी विदेश से आ रहे भारतीय मूल के नागरिक का। एक भी मजदूर का मरना इस सरकार की नाकामियों और निकम्मेपन की निशानी है। यह स्थिति ऐसे ही चलने दी जाएगी तो वह एक स्थायी तथ्य बनती जाएगी, यहाँ तक कि कुछ दिन में उससे कोई प्रतिक्रिया होना भी सम्भव न रह जाएगा।
जब मानव जीवन की इतनी गहरी जरूरतें पूरी करनेवाली व्यवस्थाओं का लेखा-जोखा किया जाता है तो आंकड़ें दिए जाते हैं। अब भी दिए जा रहे हैं। हर रोज़। "पिछले इतने दिनों में हमने इतना काम किया" की खबरें डालकर समाज को आश्वस्त कर दिया जाता है कि हमने इतना विकास किया। कुछ दिन बाद तथ्यों और रिपोर्टों के सहारे इत्मीनान दिला दिया जाएगा कि अब सब ठीक है।
डर यही है कि अब अगर इस सिलसिले की अच्छाइयों का ज्यादा प्रचार कर दिया गया तो एक वक्त आएगा जब प्रशासन इसी को अपनी नीति घोषित कर देगा। और जब कोई अविश्वासी देशद्रोही इसका कारण पूछेगा तो उत्तर केवल यही होगा कि हमने अपनी सालाना रिपोर्ट में बता दिया है कि ‘साल में अमुक काम हमने किये और आप पड़ोसी देश का हाल देखिए थरथर कांप रहा है, भाई साहब।'
शुरू से ही सरकारें अपनी संस्थागत नाकामियों को ढकने के लिए सारी अव्यवस्थाओं का ठीकरा कभी किसी मजदूर, कभी कोई गरीब या कभी किसी असहाय के सर पर फोड़ देती है। ये नया नहीं है। क्योंकि सत्तासीन लोग जानते हैं कि जनता की याददाश्त कमजोर होती है। फिर ये होता है कि सरकारें अपनी जिम्मेदारी को बड़ी स्पष्टवादिता से साफ कर देती है और जनता को अन्त में यही समझा दिया जाता है कि वह खुद इस प्रवृत्ति के लिए ज़िम्मेदार है।
इसबार भी यही होगा। रुक जाइये कुछ दिन और।
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