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(Picture credit: Indian Express) |
लॉकडाउन की शुरुआत से ही प्रवासी मजदूर अपने घरों की ओर जाने लगे थे। राज्य और केंद्र सरकार के तू-तू-मैं-मैं के चलते प्रवासी मजदूरों का पलायन शुरू हो गया था। जिसके बाद श्रमिक ट्रेनों की व्यवस्था करवाई गयी। खैर, उसमें भी कितनी सहूलियत दी गयी सभी जानते हैं। इस पलायन के शुरू होते ही मजदूरों के मरने की खबरें आनी शुरू हो गयी थी। पिछले 54 दिनों में 119 मजदूरों की मौत रोड एक्सीडेंट में हुई है। जिसमें से अधिकतर मौतें 6 मई से 16 मई तक हुई हैं। इनकी संख्या 96 है। 16 मई यानी कल ही 26 लोगों की मौत हुई है जिसमें से 24 औरैया में और 2 उन्नाव में। 14 मई को 7 मौतें। 13 मई को मुज़फ्फरनगर में 6 मौतें और इससे पहले ना जाने कितनी मौतें अलग हो चुकी हैं। ये अभी हाल के आंकड़े हैं। शायद कुछ ऐसे भी होंगे जो अभी गुमनाम हैं।
दा इकनोमिक सर्वे ऑफ इंडिया की 2016-2017 की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि देशभर में प्रवासी मजदूरों की अनुमानित संख्या 10 करोड़ है। इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर के मुताबिक पश्चिमी बंगाल के 2.5 लाख प्रवासी मजदूर, 2.69 लाख छत्तीसगढ़ के, उत्तर प्रदेश के 10 लाख, 5.5 लाख राजस्थान और बिहार के 2.7 लाख प्रवासी मजदूर अभी भी कहीं ना कहीं किसी रेंटेड स्पेस, शेल्टर होम या फिर रोड पर हैं।
इन मौतों का सिलसिला चल रहा है। जबतक मजदूर सड़कों पर रहेंगे। ये चलता रहेगा।
ये मर रहे हैं। रोज़ मर रहे है। कभी ट्रेन से, कभी ट्रक से, कभी बस से, कभी रोड पर, कभी भुखमरी से और कभी लाचारी से....
अखबारों में रोज़ लीड खबर दी जा रही है। इस वक्त किसी के मरने को लीड खबर में दिया जा रहा है तो समझिए स्थिति सच में भयावह है।
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