Tuesday, September 29, 2020

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता वाला देश..

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में 2016 से 2019 के बीच महिलाओं के प्रति हो रहे अपराध 20% तक बढ़े हैं। 2015 में यह संख्या 35,908 थी, 2016 में 49,262....2017 में बढ़कर हुई 56,011 और 2018 में 59,445। 

2018 में 3,946 रेप केस रजिस्टर हुए हैं। भारत जैसे देश में कागज़ी और असल के आंकड़े में जमीन आसमान का फर्क होता है। ये भी संख्या कागज़ी है, असल में कितने हैं इसका अनुमान आप लगा सकते है । 

हाथरस में जिस 19 साल की बच्ची का रेप हुआ था, अब नहीं रही। 'बच्ची' ही कहूंगी, 'महिला' नहीं। 

एन्टी रोमियो स्क्वाड की जगह 'एन्टी रेप स्क्वाड' या 'एन्टी हरर्समेंट् स्क्वाड' बनवा दीजिये। शायद कुछ सुधार आ जाये।  

खैर! आप फिर भी रहिए और रखिये हमें भी यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः वाली खुमारी में। 

(Source: The Hindu)


Wednesday, September 9, 2020

इंटरसेक्शनलिटी’ से आप क्या समझते हैं?

'इंटरसेक्शनलिटी' का मतलब उन चित्रों और चरित्रों से है जिसे समाज द्वारा रचा गढ़ा गया है। ये वो सामाजिक और राजनैतिक आस्पेक्ट्स हैं जिनके आधार पर कोई भी महिला या पुरुष भेदभाव या किसी भी प्रकार की ऊंच-नीच का सामना करता है। इसमें लिंग, वर्ग, जाति, समुदाय, धर्म, योग्यता, शारीरिक बनावट इत्यादि के माध्यम से समाज को उन्हें कमज़ोर या 'उनसे अलग', 'कमतर' जैसे सर्टिफिकेट प्रदान करने का मौका मिल जाता है। आज के समाज की अगर बात करें तो जात-पात, लिंग, साम्प्रदायिकता जैसी कुत्सित चीजें सालों-सालों से टिकी हुई हैं और अब जैसे जैसे वक्त गुज़र रहा है और इंसान जैसे और धर्मान्ध होता जा रहा है, कुसंस्कारों से और ज्यादा ढंकता जा रहा है और ज्यादा संकीर्ण होता जा रहा है। 

यह शब्द 'इंटरसेक्शनलिटी' सबसे पहले किम्बरले विल्लिअम्स द्वारा प्रयोग में लाया गया था। उसके बाद से ही इस शब्द को नारीवाद के साथ जोड़कर देखा जाने लगा है। आज महिलाएं लगभग हर क्षेत्र में समाज द्वारा बनाये गए इस ताने-बाने का सामना कर रही है। नारीवादी सिमोन द बेऑवर अपनी किताब 'द सेकंड सेक्स' में लिखती हैं कि 'औरतें पैदा नहीं होती, बनाई जाती हैं' बस इसी को शेप देने का काम 'इंटरसेक्शनलिटी' कर रहा है। लेकिन आज कहीं ना कहीं समाज के बनाये हुए इन राजनैतिक और सामाजिक ताने-बाने को तोड़कर महिलाएं आगे आ रही हैं क्योंकि सदियों से चली आ रही प्रथाओं और सामाजिक व्यवस्था वाली जंजीरें टूटने की आवाज़ सबसे मधुर होती है। 

Monday, September 7, 2020

#JusticeForSSR में मीडिया ट्रायल की भूमिका

Credit: Mir Suhail

यार! मुझे नहीं लगता किसी अंजान के लिए भी न्याय मांगने वाला इंसान इतना संवेदनहीन हो सकता है। किसी भी 'गलत' को सेलिब्रेट करने से ज्यादा खतरनाक समाज के लिए और कुछ भी नहीं है। रिया के साथ हो रहा मीडिया ट्रायल गलत है। सुशांत के लिए न्याय मांगना और रिया के साथ हो रहे बर्ताव को एप्रिशिएट करना दोनों अलग चीज़े हैं। 

जिस संविधान की रात दिन दुहाई देकर आप 'हक' और 'इंसाफ' की बात कर रहे हैं दोस्त वही संविधान रिया को ये भरोसा देता है कि उसकी भावनाएँ भी उतनी ही मूल्यवान हैइस वक़्त टीवी का रिमोट पकड़कर बैठे हुए हर किसी व्यक्ति की है। अगर अभी भी आप इसे गलत नहीं कह पा रहे हैं तो मेरी नज़र में आप बिना रस्सी के भी बंधे हुए हैं, बिना मलिनता के भी दागी हैं। शिखर पर होते हुए भी गिरे हुए हैं। गडमड मत कीजिये। 

जिस तरह कहा जाता है कि हिंसा के भाले दोमुँहे होते हैं, ठीक वैसे ही मीडिया ट्रायल है। यह इसका सहारा लेने वालों को उनके दुश्मनों से अधिक घायल करता है/कर रहा है/आगे और भी ज्यादा करने वाला है। 

किसी 'अपराधी' के साथ संवेदनाएं नहीं होनी चाहिए। बेशक। लेकिन किसी 'आरोपी' के साथ हो रहे गलत को भी गलत न कह पाएं इतनी संवेदनहीनता भी तो नहीं होनी चाहिए ना यार।

आज वो हैं कल आप हो सकते हैं....


Picture credit: Mir Suhail Sir. 


#SSRcase

भारत के मेले: छत्तीसगढ़ का 'मड़ई मेला' जहां मिलता है औरतों को संतान प्राप्ति का आशीर्वाद

ये छत्तीसगढ़ में लगने वाला एक मेला है, गंगरेल मड़ई। दीवाली के बाद पहले शुक्रवार को यह मड़ई मेला आयोजित करवाया जाता है। इस साल भी लगा था। जो इन ...