Wednesday, September 9, 2020

इंटरसेक्शनलिटी’ से आप क्या समझते हैं?

'इंटरसेक्शनलिटी' का मतलब उन चित्रों और चरित्रों से है जिसे समाज द्वारा रचा गढ़ा गया है। ये वो सामाजिक और राजनैतिक आस्पेक्ट्स हैं जिनके आधार पर कोई भी महिला या पुरुष भेदभाव या किसी भी प्रकार की ऊंच-नीच का सामना करता है। इसमें लिंग, वर्ग, जाति, समुदाय, धर्म, योग्यता, शारीरिक बनावट इत्यादि के माध्यम से समाज को उन्हें कमज़ोर या 'उनसे अलग', 'कमतर' जैसे सर्टिफिकेट प्रदान करने का मौका मिल जाता है। आज के समाज की अगर बात करें तो जात-पात, लिंग, साम्प्रदायिकता जैसी कुत्सित चीजें सालों-सालों से टिकी हुई हैं और अब जैसे जैसे वक्त गुज़र रहा है और इंसान जैसे और धर्मान्ध होता जा रहा है, कुसंस्कारों से और ज्यादा ढंकता जा रहा है और ज्यादा संकीर्ण होता जा रहा है। 

यह शब्द 'इंटरसेक्शनलिटी' सबसे पहले किम्बरले विल्लिअम्स द्वारा प्रयोग में लाया गया था। उसके बाद से ही इस शब्द को नारीवाद के साथ जोड़कर देखा जाने लगा है। आज महिलाएं लगभग हर क्षेत्र में समाज द्वारा बनाये गए इस ताने-बाने का सामना कर रही है। नारीवादी सिमोन द बेऑवर अपनी किताब 'द सेकंड सेक्स' में लिखती हैं कि 'औरतें पैदा नहीं होती, बनाई जाती हैं' बस इसी को शेप देने का काम 'इंटरसेक्शनलिटी' कर रहा है। लेकिन आज कहीं ना कहीं समाज के बनाये हुए इन राजनैतिक और सामाजिक ताने-बाने को तोड़कर महिलाएं आगे आ रही हैं क्योंकि सदियों से चली आ रही प्रथाओं और सामाजिक व्यवस्था वाली जंजीरें टूटने की आवाज़ सबसे मधुर होती है। 

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