Tuesday, November 24, 2020

भारत के मेले: छत्तीसगढ़ का 'मड़ई मेला' जहां मिलता है औरतों को संतान प्राप्ति का आशीर्वाद



ये छत्तीसगढ़ में लगने वाला एक मेला है, गंगरेल मड़ई। दीवाली के बाद पहले शुक्रवार को यह मड़ई मेला आयोजित करवाया जाता है। इस साल भी लगा था। जो इन महिलाओं की पीठ पर चलते दिख रहे हैं आपको इन्हें लोकल में 'बैगा' कहा जाता है, कहा जाता है कि इनपर माता सवार होती है और ये बेसुध से होकर इन औरतों के ऊपर से गुजरते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से महिलाओं को संतान प्राप्ति होती है। महिलाएं पेट के बल बाल खोलकर लेट जाती हैं और ये 'बैगा' इनके ऊपर से जाकर इन्हें आशीर्वाद देते हैं कि तुमको संतान प्राप्ति होगी।

वाह!!!

कितना हास्यास्पद है न कि स्त्री द्वारा तमाम प्रताड़नाएं सहने के बाद भी वंश की क्रमिकता का अधिकारी पिता है, मां नहीं..... जानते हैं परेशानी क्या है? परेशानी ये है कि पुरुष और स्त्री का धरातल कभी समान रहा ही नहीं। स्त्री शोषण एक घटना है जो पितृसत्तातमक समाज का एक अभिन्न अंग है। इसी के द्वारा पुरुष ने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से स्त्री को अपने नियंत्रण में रखा है।

स्त्री को दी जानेवाली शिक्षा-दीक्षा, उसकी अभिव्यक्ति की प्रत्येक दिशा पितृसत्ता के मुताबिक है। और सबसे खराब बात ये है कि स्त्रियों ने इस गुलामी को अपनी नियति कहकर स्वीकर कर लिया। अब उसी के मुताबिक ये तमाम रीति-रिवाज बनाये गए और वैसे ही चलते आ रहे हैं।
खैर.....पुरुष 'स्थापित' है और स्त्री अब भी स्थापित होने की प्रक्रिया में लगी हुई है। दोनों की हैसियत में फर्क तो होगा ही।

पूरी वीडियो का लिंक: https://youtu.be/Ifx45SIAH2A

Thursday, October 1, 2020

Be lethal, be brutal, go for kill...


बलात्कार की खबरें दबा दी जाती हैं। गुप्त रख दी जाती हैं कभी सरकार के द्वारा, कभी समाज के द्वारा, कभी घरवालों के द्वारा और कभी खुद लड़की के द्वारा। सत्तर प्रतिशत मामलें दर्ज ही नहीं होते हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो 2019 की रिपोर्ट मंगलवार को रिलीज़ हुई है बता रहे हैं कि महिलाओं के प्रति आपराधिक मामले 7.3 प्रतिशत तक बढ़ गए हैं।

तो लड़कियों अब क्या? अब तुम्हारे पास दो रास्ते हैं:

पहला,

आसपास हो रहे कुकृत्यों को देखकर परेशान होते रहिए, खुद को और सिस्टम को कोसते रहिए, हर दिन अपने आसपास हो रही घटनाओं को देखकर ये सोचते रहिए कि 'हमारे साथ ही क्यों'।

या फिर मान लीजिये कि,

पुरुषतांत्रिक समाज में औरत ही शिकार हैं। 'आप' शिकार हैं। आपको हर दिन, हर पल चौकन्ने रहना है। किसी पर भी अंधभरोसा करना छोड़ दीजिए। किसी पर भी नहीं। शक की निगाहों को हमेशा खुला रखिये। संगठित रहिए। एक- दूसरे के प्रति सहयोग में हाथ मिलाती रहिए। आपको क्या लगता है आसमान से गिरा यह पुरुषतंत्र लोहे का बना हुआ है? नहीं बल्कि इंसान के द्वारा बनाया गया है.....जी हां आप और मैं इसे टिकाए रखने के लिए जी-जान से लगे पड़े हैं…अनजाने में ही सही पर लगे हुए हैं..... आपके संगठन से ही पुरुषतंत्र में गहरी दरारें पड़ सकती हैं।  "BE LETHAL, BE BRUTAL, GO FOR KILL" को चरितार्थ करते हुए कर दीजिए इस बने बनाये सिस्टम को चूर-चूर और बना दीजिये इस दुनियां को रहने लायक क्योंकि दोस्त पराधीनता आपका आश्रय नहीं है। 

तस्लीमा नसरीन अपनी किताब 'औरत का कोई देश नहीं' में लिखती हैं, "असल में बदमाशी उजाले या अंधेरे पर निर्भर नहीं करती। यह मानसिकता पर निर्भर करती है और मानसिकता सुशिक्षा पर निर्भर करती है। सुशिक्षा निर्भर करती है, शिक्षा-व्यवस्था पर! शिक्षा व्यवस्था निर्भर करती है, राजनीति पर! समता के विश्वासी नारी-पुरुष, जब तक वैषम्य को जड़ से नहीं उखाड़ फेंकतें, जब तक व्यवस्थाओं में आमूल परिवर्तन नहीं होता, तब तक नारी को चूहों की तरह बस जीते रहना होगा। विपत्ति देखते ही बिल में छिप जाना होगा। लेकिन चूहों के बिल में ही क्या चूहे की सुरक्षा कायम रहती है? जैसे निरीह चूहे की सुरक्षा नहीं होती, वैसे ही नारी की भी सुरक्षा नहीं होती।"

और लड़कों तुम्हारे लिए इतना ही कि यार....

समाज में रह रही औरतें कहीं भी अधूरी नहीं हैं, सम्पूर्ण इंसान हैं और इंसान के तौर पर उसके प्रति जितनी श्रद्धा अर्पित करनी चाहिए, वह सब उनका प्राप्य है! बहुत बेसिक चीज़ है। आप एहसान नहीं कर रहे हैं। बस इतना याद रखिये कि ये दुनिया जो बनी है इतनी सुंदर ये हमने ही बनाई है, हम सबके लिए। आपकी माँ, आपकी बहन, आपकी प्रेमिका, आपकी बीवी, आपकी दोस्त, आपकी बेटी ने आपको हमेशा अपना दिल निचोड़कर प्यार दिया है। 

हमें शर्मिंदा मत कीजिये!!!🙏🏻

Tuesday, September 29, 2020

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता वाला देश..

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में 2016 से 2019 के बीच महिलाओं के प्रति हो रहे अपराध 20% तक बढ़े हैं। 2015 में यह संख्या 35,908 थी, 2016 में 49,262....2017 में बढ़कर हुई 56,011 और 2018 में 59,445। 

2018 में 3,946 रेप केस रजिस्टर हुए हैं। भारत जैसे देश में कागज़ी और असल के आंकड़े में जमीन आसमान का फर्क होता है। ये भी संख्या कागज़ी है, असल में कितने हैं इसका अनुमान आप लगा सकते है । 

हाथरस में जिस 19 साल की बच्ची का रेप हुआ था, अब नहीं रही। 'बच्ची' ही कहूंगी, 'महिला' नहीं। 

एन्टी रोमियो स्क्वाड की जगह 'एन्टी रेप स्क्वाड' या 'एन्टी हरर्समेंट् स्क्वाड' बनवा दीजिये। शायद कुछ सुधार आ जाये।  

खैर! आप फिर भी रहिए और रखिये हमें भी यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः वाली खुमारी में। 

(Source: The Hindu)


Wednesday, September 9, 2020

इंटरसेक्शनलिटी’ से आप क्या समझते हैं?

'इंटरसेक्शनलिटी' का मतलब उन चित्रों और चरित्रों से है जिसे समाज द्वारा रचा गढ़ा गया है। ये वो सामाजिक और राजनैतिक आस्पेक्ट्स हैं जिनके आधार पर कोई भी महिला या पुरुष भेदभाव या किसी भी प्रकार की ऊंच-नीच का सामना करता है। इसमें लिंग, वर्ग, जाति, समुदाय, धर्म, योग्यता, शारीरिक बनावट इत्यादि के माध्यम से समाज को उन्हें कमज़ोर या 'उनसे अलग', 'कमतर' जैसे सर्टिफिकेट प्रदान करने का मौका मिल जाता है। आज के समाज की अगर बात करें तो जात-पात, लिंग, साम्प्रदायिकता जैसी कुत्सित चीजें सालों-सालों से टिकी हुई हैं और अब जैसे जैसे वक्त गुज़र रहा है और इंसान जैसे और धर्मान्ध होता जा रहा है, कुसंस्कारों से और ज्यादा ढंकता जा रहा है और ज्यादा संकीर्ण होता जा रहा है। 

यह शब्द 'इंटरसेक्शनलिटी' सबसे पहले किम्बरले विल्लिअम्स द्वारा प्रयोग में लाया गया था। उसके बाद से ही इस शब्द को नारीवाद के साथ जोड़कर देखा जाने लगा है। आज महिलाएं लगभग हर क्षेत्र में समाज द्वारा बनाये गए इस ताने-बाने का सामना कर रही है। नारीवादी सिमोन द बेऑवर अपनी किताब 'द सेकंड सेक्स' में लिखती हैं कि 'औरतें पैदा नहीं होती, बनाई जाती हैं' बस इसी को शेप देने का काम 'इंटरसेक्शनलिटी' कर रहा है। लेकिन आज कहीं ना कहीं समाज के बनाये हुए इन राजनैतिक और सामाजिक ताने-बाने को तोड़कर महिलाएं आगे आ रही हैं क्योंकि सदियों से चली आ रही प्रथाओं और सामाजिक व्यवस्था वाली जंजीरें टूटने की आवाज़ सबसे मधुर होती है। 

Monday, September 7, 2020

#JusticeForSSR में मीडिया ट्रायल की भूमिका

Credit: Mir Suhail

यार! मुझे नहीं लगता किसी अंजान के लिए भी न्याय मांगने वाला इंसान इतना संवेदनहीन हो सकता है। किसी भी 'गलत' को सेलिब्रेट करने से ज्यादा खतरनाक समाज के लिए और कुछ भी नहीं है। रिया के साथ हो रहा मीडिया ट्रायल गलत है। सुशांत के लिए न्याय मांगना और रिया के साथ हो रहे बर्ताव को एप्रिशिएट करना दोनों अलग चीज़े हैं। 

जिस संविधान की रात दिन दुहाई देकर आप 'हक' और 'इंसाफ' की बात कर रहे हैं दोस्त वही संविधान रिया को ये भरोसा देता है कि उसकी भावनाएँ भी उतनी ही मूल्यवान हैइस वक़्त टीवी का रिमोट पकड़कर बैठे हुए हर किसी व्यक्ति की है। अगर अभी भी आप इसे गलत नहीं कह पा रहे हैं तो मेरी नज़र में आप बिना रस्सी के भी बंधे हुए हैं, बिना मलिनता के भी दागी हैं। शिखर पर होते हुए भी गिरे हुए हैं। गडमड मत कीजिये। 

जिस तरह कहा जाता है कि हिंसा के भाले दोमुँहे होते हैं, ठीक वैसे ही मीडिया ट्रायल है। यह इसका सहारा लेने वालों को उनके दुश्मनों से अधिक घायल करता है/कर रहा है/आगे और भी ज्यादा करने वाला है। 

किसी 'अपराधी' के साथ संवेदनाएं नहीं होनी चाहिए। बेशक। लेकिन किसी 'आरोपी' के साथ हो रहे गलत को भी गलत न कह पाएं इतनी संवेदनहीनता भी तो नहीं होनी चाहिए ना यार।

आज वो हैं कल आप हो सकते हैं....


Picture credit: Mir Suhail Sir. 


#SSRcase

Saturday, July 25, 2020

'अगले जन्म में चाहें जानवर बन जाएं पर औरत नहीं बनना चाहतें'- फूलन देवी

फूलन देवी
औरत की निष्ठुरता देखकर लोग अक्सर शंकित हो उठते हैं, क्योंकि सदियों से जैसा प्रचार किया जा रहा है औरत से वही अपेक्षा की जाती है। पुरुषों की निष्ठुरता भले ही सह ली जाए, लेकिन औरत की निष्ठुरता बर्दाश्त के बाहर होती है। पर कहते हैं ना कि सदियों में 1-2 बार आती हैं #फूलन_देवी जैसी औरतें। जो लड़ना-भिड़ना जानती हैं खुद के लिए। फूलन के दो रूप हैं- एक वो जिसमें वो निष्ठुर हैं, निर्मम हैं और एक वो जिसमें वो अपने पसंदीदा हीरो का नाम आने पर भी शर्मा जाती हैं। फूलन इंटरव्यू देती हुई काफी हिचकती हुई नज़र आती हैं। कम बोलती हैं, शायद शब्दों को समेट नहीं पाती हैं। या शायद बनावट नहीं है। हर इंटरव्यू में अगर आप उनके चेहरे पर देखेंगे तो वही बचपन, वही बच्ची नज़र आएगी जिसे आधे में ही छोड़ दिया था। ये एक इंटरव्यू के कुछ अंश हैं जिसमें फूलन की सारी ज़िन्दगी दिख जाती है- 

आपकी ताकत?
-दुर्गा की हम पूजा करते हैं, दुर्गा हमें ताकत देती है। 

आपकी प्रेरणा?
-बस सच्चाई हमारी प्रेरणा है।

जीवन में आपकी सबसे बड़ी उपलब्धि?
-हमने इतना शोषण सहा और उसका फिर हमने डटकर सामना किया। हमारे लिए यही सबसे बड़ी उपलब्धि है।

ज़िन्दगी का एक अफसोस?
-हमने एक गरीब परिवार में औरत बनकर क्यों जन्म लिया।

आप अगले जन्म में क्या बनना चाहेंगी?
-हम अगले जन्म में भले ही जानवर बन जाएं पर इस तरह की ज़िन्दगी और मतलब औरत नहीं बनना चाहेंगे।

अगर आप अपनी ज़िन्दगी की एक चीज़ बदलना चाहें तो क्या बदलेंगी?
-मैं अपने आपको बदलना चाहूंगी,अपनी ज़िन्दगी को बदलना चाहूंगी। मैं फिर से एक छोटी-सी बच्ची बनना चाहती हूँ फिर से एकबार बचपन जीना चाहती हूँ। ये फूलन देवी नहीं बनना चाहती।

आपने बदला लेने की कब सोची?
-जब गांव वालों और घरवाले ने कहा कि तुम मर चुकी हो, तुम्हारी ज़िन्दगी खत्म हो चुकी है तब हमने सोचा कि जब इतना अत्याचार सह लिए हैं तो अब क्यों मरें? क्यों ना उन्हें बताएं कि जवाब देना क्या होता है। क्यों मर जाएं हम? किस लिए मर जाएं?

सचमुच, औरतें जो अपने रास्ते में रुकावट बने हर इंसान को उखाड़ फेंकती हैं। जो सहने से ज्यादा जंग करना जानती हैं। कोई कंधे पर अंजान हाथ रख दे, तो झटक कर अपने को छुड़ा लेना जानती हैं। अपने साथ कुछ गलत होने पर जो लज्जावती, करुणामयी, स्नेहमयी जैसी विशेषणों को चुनौती दे बन जाती हैं निष्ठुर, भयंकर और निर्मम। और अंत तक लड़ती रहती हैं अपने लिए और अपनी जैसी कइयों के लिए जबरदस्त ताकत के साथ...... ऐसी औरतें ज़िंदा रहती हैं.....हमेशा। 

(Wildfilmsindia एक यूट्यूब चैनल है जिसने शायद फूलन देवी के सबसे ज्यादा इंटरव्यू किये हैं। देखना चाहें तो देख सकते हैं। )

#PhoolanDevi #banditqueen

Friday, July 3, 2020

Book Review: 'She Said' by Jodi Kantor and Megan Twohey

Book Cover
मुझसे अक्सर लोग पूछ बैठते हैं कि आखिर #metoo क्यों? #MeToo कैंपेन बस महिलाओं की आपबीती के बारे में नहीं है और ना कभी था ये उनकी शक्ति के बारे में है। आपको दिखाने के लिए कि महिलाओं के साथ हो रहे उत्पीड़न केवल कपोलकल्पना नहीं है। सेक्शुअल हरर्समेंट की कोई ट्रेनिंग नहीं होती है। एक दुनिया है जो मौजूद है हमारे और आपके आसपास जिसे हम देखना नहीं चाहते या देखकर भी अनदेखा कर देते हैं। ये किताब है 'She Said' दिखाने के लिए कि किस तरह का समाज बनाया है आपने औरतों के लिए। 
पूरे #metoo आंदोलन को उठा लिया जाए तो ये एक मिक्स्ड रिकॉर्ड रहा है। दुनियाभर की औरतों ने अपने साथ हुए और हो रहे सेक्शुअल हरर्समेंट पर खुलकर अपनी आपत्ति दर्ज करवाई है। हार्वे वाइंस्टीन वाली स्टोरी इन्वेस्टिगेशन रिपोर्टिंग का शानदार नमूना है। ये स्टोरी 'न्यू यॉर्क टाइम्स' की जर्नलिस्ट जोड़ी कैंटर और मेगन तुहे ने ब्रेक की थी। ना जाने कितने महीनों की मेहनत के बाद। 'She Said' में इस पूरी स्टोरी का जिक्र किया गया है। किताब में डोनाल्ड ट्रम्प का Pussygate वाला मामला और सुप्रीम कोर्ट जस्टिस ब्रेट कवनौघ का metoo वाला मामला भी है लेकिन बेहद कम पोर्शन में। मेन फोकस वाइंस्टीन वाली स्टोरी ही है।
Harvey Weinstein
किताब की शुरुआत एक्ट्रेस रोज़ मैकगोवन से होती है जिन्होंने सार्वजनिक रूप से यह कहा था कि 'एक हॉलीवुड निर्देशक ने उनका रेप किया है' लेकिन जोड़ी के पूछने पर वह नाम लेने से इनकार कर देती हैं। जोड़ी और मेगन दोनों महीनों तक वाइंस्टीन के खिलाफ सबूत इक्कट्ठा करती हैं। 
उन महिलाओं तक पहुंचती हैं जिनका हार्वे ने सेक्शुअल हरर्समेंट किया था। फोन के माध्यम से, ईमेल से, उनके घरों तक जाती हैं, लेकिन डराने-धमकाने और वित्तीय बर्बादी के खतरे के चलते कितनी सारी विक्टिम्स रिकॉर्ड दर्ज करवाने से मना कर देती हैं। कई तो ऐसी थी जिन्होंने एकदम आखिर में अपना नाम दर्ज करवाया। शुरुआत में एशले जुड ही रिकॉर्ड पर गयी थी। ग्विनिथ पाल्ट्रो के वाइंस्टीन से क्लोज़ रिलेशन्स के चलते वह लास्ट तक बैकग्राउंड में ही सही पर स्टोरी में मदद कर रही थी। इसका कारण था कि वह नहीं चाहती थी कि उसकी पब्लिक इमेज पर कोई फर्क पड़े।  
Jodi Kantor and Megan Twohey
कहा जाता है की ऊंचाई तक पहुंचने के लिए ना जाने कितनी तरह की सीढ़ियों से गुज़रना पड़ता है। किताब के आधार पर बात करूँ तो मॉडर्न हॉलीवुड में अधिकतर अभिनेत्रियों को किसी ना किसी सीढ़ी पर समझौता करना पड़ा है। जिन महिलाओं का वाइंस्टीन ने हरर्समेंट किया था उनमें से कितनी सारी महिलाओं ने समझौता करना ठीक समझा, कितनी बस गुमनाम हो गयी, कितनी पुरानी बातें भूलकर अपनी ज़िन्दगी में आगे बढ़ गयी, शहर बदल लिया, घर छोड़ दिया।
जब स्टोरी प्रकाशन के लिए तैयार हो जाती है तब एन्ड मोमेंट पर पता लगता है कि वाइंस्टीन प्रकाशन को रोकने के लिए एक सिक्युरिटी फर्म, ब्लैक क्यूब का उपयोग कर रहा होता है। इस तरह की प्लानिंग कि ब्लैक क्यूब के दो एजेंट, झूठी पहचान का उपयोग करते हुए मैकगोवन से मिलते हैं और पत्रकारों से मिलने और जासूसी करने के लिए वाइंस्टीन को पीड़ित के रूप में पेश करते हैं। स्टोरी रुक जाती है। पर वो कहते हैं ना कि 'दा क्रिमिनल कैन रन, बट ही कांट हाईड' तो स्टोरी एट दी एन्ड पब्लिश हो जाती है।
Rebacca Corbett
हां किताब की सबसे अमेजिंग कैरेक्टर मुझे Rebacca Corbett लगी। इनके बारे में नहीं जानती थी। इसी किताब में उनके बारे में पढ़ा। पहली जर्नलिस्ट हैं जिन्होंने काफी आइडियल टाइप फील दी है। fan हो गयी हूँ उनकी। 'Person I want to meet' वाली लिस्ट में ये दूसरा नाम ऐड कर दिया है मैंने। कर लीजिये आप भी गूगल।

भारत के मेले: छत्तीसगढ़ का 'मड़ई मेला' जहां मिलता है औरतों को संतान प्राप्ति का आशीर्वाद

ये छत्तीसगढ़ में लगने वाला एक मेला है, गंगरेल मड़ई। दीवाली के बाद पहले शुक्रवार को यह मड़ई मेला आयोजित करवाया जाता है। इस साल भी लगा था। जो इन ...