Thursday, November 28, 2019

हरियाणा विधानसभा चुनाव में महिलाएं

हरियाणा विधानसभा चुनाव में वोट प्रतिशत के साथ साथ इसबार महिलाओं की भागीदारी भी कम देखने को मिली। 2019 में मुख्य पार्टियों में केवल 60 महिलाओं को टिकट दिया गया जिनमे से केवल 9 महिलाएं ही विधानसभा में अपनी जगह बना पायी। मुख्य पार्टियों को छोड़ दिया जाए तो महिला उम्मीदवारों की कुल संख्या 104 रही। यही संख्या पिछली बार निर्दलीय महिलाओं को जोड़कर 116 थी। 2014 में 116 महिला उम्मीदवारों में से केवल 13 महिलाएं ही विधायक बन पायी थी और 2009 में 69 महिला उम्मीदवारों में से केवल 9 महिलाएं ही विधानसभा में कदम रख पायी।
सबसे दिलचस्प टिकट का वितरण होता है:
1991 से लेकर 2019 तक हरियाणा विधानसभा चुनाव में महिलाओं ने 7 से लेकर 116 महिला उम्मीदवारों तक का सफर तय किया है। हालांकि इसबार बढ़ने की बजाय यह संख्या 116 से घटकर 104 तक आ गयी।
भाजपा ने सभी 90 सीटों पर चुनाव लड़ा और केवल 12 महिलाओं को ही टिकट दिया। 2014 में बीजेपी ने 15 महिलाओं को टिकट दिया था और 2009 में केवल 6 महिलाओं को टिकट दिया था। इसी तरह कांग्रेस ने 2009 के विधानसभा चुनाव में 11 महिलाओं को टिकट दिया था लेकिन 2014 में यह संख्या घटाकर 10 हो गई। हालांकि इस बार भी 2019 में इस संख्या में कोई परिवर्तन न करते हुए 10 महिलाओं को ही टिकट दिया गया।
इंडियन नेशनल लोकदल या इनेलो जिसे हरियाणा की एक अहम पार्टी माना जाता रहा है, इसने बड़ी पार्टियों में से सबसे ज्यादा महिला प्रत्याशियों को उतारा था। पार्टी ने 2019 के विधानसभा चुनाव में 15 महिलाओं को टिकट दिया था। पिछले चुनाव में इसने 16 महिलाओं को मैदान में उतारा था और 2009 में इनेलो ने 8 महिलाओं को टिकट दिया था।
पार्टियों का टिकट वितरण:
1. जननायक जनता पार्टी (जेजेपी)
इस चुनाव में इनेलो से अलग हुए दुष्यन्त चौटाला की जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) की पहली बार एंट्री हुई थी। इनेलो से टूटकर बनी इस पार्टी ने कुल 88 सीटों पर चुनाव लड़ा और 7 महिला प्रत्याशियों को उतारा।  
2.बहुजन समाज पार्टी (बसपा) 
मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने कुल 82 सीटों पर चुनाव लड़ा जिसमें से सिर्फ 6 महिलाओं को टिकट दिया। 2014 में भी बसपा ने 6 महिलाओं को ही टिकट दिया था और 2009 में 7 महिलाओं को टिकट दिया था।
3. आम आदमी पार्टी और स्वराज इंडिया
आम आदमी पार्टी और स्वराज इंडिया भी दौड़ में पीछे नहीं रही। आप ने अपने 48 उम्मीदवारों में 8 महिलाओं को सम्मिलित किया और योगेंद्र यादव की स्वराज इंडिया ने अपनी 27 उम्मीदवारों की सूची में 5 महिलाओं को जगह दी।
बात की जाए महिला उम्मीदवारों की जीत की तो जो भी महिलाएं जीतकर विधानसभा पहुँची हैं वह या तो किसी बड़ी राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखती हैं या पिछली बार जीती हैं या फिर कोई 'सेलेब्रिटी' है।
2019 के विधानसभा चुनाव में 9 महिलाएं जो विधानसभा में जगह बना पायी हैं उनमे से 5 महिलाएं कांग्रेस से, 3 भाजपा से, 1 जननायक जनता पार्टी से है। बात की जाए 2014 की तो 13 महिला विधायक जो जीतकर विधानसभा पहुँची थी उनमें से 8 भाजपा से, 3 कांग्रेस से, 1 इनेलो से और एक हरियाणा जनहित कांग्रेस से थी। 2009 में भाजपा से 1 महिला, कांग्रेस से 7 और इनेलो से 1 महिला उम्मीदवार जीती थी।
2019 विधानसभा चुनाव में विजयी महिलाएं:
2019 चुनाव में 9 महिलाएं ही विधानसभा में अपनी जगह बना पाई। इसमें भाजपा से तीन, कांग्रेस से पांच ,जेजेपी से एक। भाजपा की तीन महिलाओं में बड़खल से सीमा तिरखा 43% वोट शेयर के साथ 58,750 वोट पायी। कलायत से कमलेश ढांडा 35% वोट शेयर के साथ 53,805 वोट और गन्नौर से निर्मल रानी 48% वोट शेयर के साथ 57830 वोट पायी। बात की जाए कांग्रेस की तो हरियाणा में 1967 से 2019 तक सबसे ज्यादा कांग्रेस से ही 49 बार महिला विधायक बनीं हैं। इस बार पांच महिलाएं अपनी जगह विधानसभा में बना पायी। जिसमें झज्झर से गीता भुक्कल 42% वोट शेयर के साथ 46,480 वोट, नारायणगढ़ से शैली को 40% वोट शेयर और 53,089 वोट, साढौरा से रेणु बाला को 40% वोट शेयर साथ 65,806 वोट, तोशाम से किरण चौधरी को 50% वोट शेयर और 72,699 वोट और कलानौर से शकुंतला खटक को 47% वोट शेयर के साथ 62,151 वोट मिले। जेजेपी की 7 महिला उम्मीदवारों में से केवल नैना चौटाला ही बाढड़ा से 40 फीसदी वोट शेयर के साथ 62,151 वोट अपने हिस्से में ला पायी।
करोड़पति महिला विधायक:
हरियाणा में करोड़पति विधायकों की सूची में महिलाएं भी पीछे नहीं हैं। 2009 से 2019 तक शीर्ष 10 करोड़पति विधायकों में हर बार कम से कम 2 महिला विधायक तो अपनी जगह बना ही लेती हैं। इस सूची में किरण चौधरी, निर्मल रानी, नैना सिंह मुख्य नाम हैं जो 2009 से अपनी जगह पर अटल हैं।
एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार 2019 में शीर्ष 15 करोड़पति  विधायकों में 3 महिला विधायक भी हैं। चौथे स्थान पर नैना सिंह जो बाढड़ा से विधायक हैं की लगभग 91 करोड़ में चल सम्पत्ति 30 करोड़ 40 लाख है और अचल संपत्ति लगभग 61 करोड़ 38 लाख है। यही सम्पत्ति 2014 में लगभग 70 करोड़ 78 लाख थी जो 21 करोड़ बढ़कर अब 91 करोड़ तक आ गयी है।
पांचवे स्थान पर निर्मल रानी जो गनौर से विधायक है की लगभग 88 करोड़ की सम्पत्ति है जिसमें चल संपत्ति 32 लाख 67 हज़ार है और अचल सम्पत्ति 87 करोड़ 99 लाख है यही सम्पत्ति 2009 में 21 करोड़ थी। बारहवें स्थान पर तोशाम से किरण चौधरी विधायक हैं जिनकी पूर्ण सम्पत्ति लगभग 51 करोड़ है जिसमें 13 करोड़ 83 लाख चल सम्पति है और 37 करोड़ 52 लाख अचल सम्पत्ति है। किरण चौधरी 2014 में छठे नम्बर की करोड़पति विधायक थी जिनकी सम्पत्ति 70 करोड़ 78 लाख थी 2019 में अब यह घटकर 51 करोड़ पर आ गई है। 2009 में किरण चौधरी की सम्पत्ति लगभग 10 करोड़ 89 लाख थी।
महिलाओं की इस संख्या को देखकर विधानसभा चुनाव की राजनीति में एक सवाल उठता है कि या तो महिलाओं में राजनीति को लेकर कोई रुचि नहीं है, या फिर हरियाणा जैसे पुरुष प्रधान राज्य में उन्हें मौका नहीं मिलता, बाते दोनों हो सकती हैं। या हो सकता है उन्हें यह लगता हो कि राजनीति में पड़कर समय बर्बाद ही होगा इससे बेहतर वह घर के काम करें। राजनीति के लिए पुरुष ही ठीक हैं। वही नेतृत्व करें। 

Thursday, November 21, 2019

Fee Hike: IIMC AND JNU

दिक्कत ये नहीं है कि राइट वाले लेफ्ट वालों की बात काटते हैं। दिक्कत ये है कि अगर JNU से जुड़े किसी भी मुद्दे पर तुम जरा सा असहमत हो जाओ या उनकी हां में हां न मिलाओ या चलो कोई illogical सा लॉजिक देकर तुम उनकी बात भी काट दो तो सब तुमको संघी/राइट विंग का तमगा दे देते हैं। तो भाई समझो इस बात को JNU को सपोर्ट करने वाला हर इंसान LEFTIST नहीं होता और उनका विरोध करने वाला हर इंसान RIGHTIST नहीं होता। हो सकता है वो genuinely तुम्हारी बात से सहमत/असहमत हो। तो तुम पहले इस राइट और लेफ्ट वाली धारणा से बाहर आ जाओ। न मैने 'राइट आइडियोलॉजी' को पढ़ा है और न ही 'लेफ्ट आइडियोलॉजी' को....मुझे नहीं है इतना ज्ञान और न तुमसे चाहिये। मुझसे ये बेफिजूल के 'right or left वाले question', 'jnu की history तुम्हे पता है?', 'टुकड़े टुकड़े', 'देश विरोधी नारे', 'jnu की ये प्रथा वो प्रथा', 'उनका रहन-सहन', या वो 'कितनी महंगी सिगरेट फूंकते हैं', 'वो किस गाड़ी से आते हैं', 'इस उम्र के लोग वहां पढ़ रहे हैं' जैसे unnecessary question न किये जाएं। सीधी सी बात है JNU में fee hike हुआ है। मुझे मतलब नहीं है वो 2 रुपये है या 200 रुपये वो लोग fee hike का विरोध कर रहे हैं जो अच्छा है। कहीं और फीस बढ़ रही है तो भाई करो ना विरोध, कर दो मार्च संसद तक, बैठ जाओ धरने पर ....तुम्हारा भी साथ देंगे सबलोग....पर करो तो सही जिस दिन कर लोगे उस दिन बता देना। 
मुद्दा ये है ही नहीं की वो 10 रुपये देने या 10,000 रुपये देने के काबिल हैं या नही मुद्दा ये है कि ये फीस हर जगह बढ़ क्यों रही है? मुद्दा ये है कि इतनी फीस भरेगा कौन? मुद्दा ये है कि कबतक ये स्कूल की, कॉलेज की, यूनिवर्सिटी की फीस बढ़ती रहेगी? कबतक इस देश का हर बाप loan लेकर तुमको पढ़ायेगा? कबतक हर किसान अपने खेत, अपनी ज़मीन बेचकर तुमको बड़े बड़े कॉलेज में भेजेगा? कबतक तुम्हे पढ़ाने के लिए तुम्हारी मां की शादी में मिला सोना गिरवी रखा जाएगा? कबतक IIMC की सीट केवल इसलिए ही खाली रहेंगी कि उसकी फीस एक या डेढ़ लाख है? कबतक? किसी न किसी को तो कहना होगा ना कि 'अब बस बहुत हुआ, अब फीस नहीं बढ़ेगी, हम नहीं देंगे इतनी फीस, हम नहीं है काबिल इतनी फीस देने के'। वो फीस हर साल बढाते जायँगे तुम भरते जाओगे? कभी न कभी तो हमे उन्हें बताना होगा न कि भाई हमारे बस के बाहर है इतनी फीस देना..तभी न कुछ solution निकलेगा? 
तो सुनो बे जब भी तुमको लगे न कि 'बस' 500-600 रुपये ही तो बढ़े हैं इतनी फीस तो दे सकते हैं...एकबार बस एकबार अपने पापा को फ़ोन घुमाना और उनसे अपना नाम लेकर पूछना कि 'डैडी हमारी फीस 500-600 रुपये बढ़ गयी है कम करवानी चाहिए या नही?' उनका जवाब तुमको सब बता देगा।

Tuesday, November 12, 2019

इस्मत चुग़ताई की किताब 'टेढ़ी लकीर' का रिव्यु।

किताब: टेढ़ी लकीर
लेखिका: इस्मत चुग़ताई
प्रकाशन: राजकमल प्रकाशन।
इस्मत चुग़ताई की 'टेढ़ी लकीर'
तारीख गवाह है कि तलवारों ने इंसानों का खून बहाया है और कलम ने कौमों की तकदीर को जगमगाया है।
'इस्मत आपा' या इस्मत चुग़ताई उर्दू की मशहूर कहानीकार। इनकी कहानियां घरों में कैद हर पर्दानशी, दबी घुटी औरत की सच्चाई है।
ये सच है कि आज़ादी की लड़ाई कई मोर्चो से लड़ी गयी। सियासी आजादी के साथ दिमागों और खयालों की आजादी भी इसका एक मोर्चा रहा है।
जावेद अख्तर अपने एक इंटरव्यू में कहते हैं कि 'इस्मत को नापना आसान नहीं है। 1930 के आसपास इस्मत ने लिखना शुरू करा और उसके काफी समय बाद फेमिनिज्म का ये कांसेप्ट वेस्ट में पहुंचा। आपा की कहानियां नए समाज की तस्वीर दिखाती है और हक की आवाज़ उठाती हैं'।
इस्मत की लिखावट की सबसे खास बात है कि ये बगैर अपने किरदारों पर रहम खाये लिखती हैं। इनके किरदार बगैर रहम और हमदर्दी की भीख मांगे अपनी तन्हाईयों और दर्द को बयां करते हैं। ये किरदार दूध के धुले नहीं होते। ये किरदार बड़े टूटे फूटे होते हैं। इनमें खामियां हैं, कमजोरियां हैं, लालच है, बेईमानी है, ये झूठ बोलते हैं, ये बेवफाह हैं और निहायती धोखेबाज़ हैं। लेकिन, इस्मत इन सारी चीज़ों के बावजूद, हज़ार कमियों के इतर अपने किरदारों के अंदर छिपे उस इंसान नामक कीड़े को और उसके दुख को ढूंढ निकालती है।
मुज्तबा हुसैन के साथ अपने इंटरव्यू में इस्मत कहती हैं कि 'मैं एक छोटे से इंसान को उठा लेती हूँ और उसी से कहानी बनाती हूँ। उन किरदारों की अपनी एक अलग कहानी होने के बावजूद भी वह उस एक किरदार के आस पास ही घूमते हैं। ये हुनर मैने रूस के लिटरेचर से सीखा है।'
दूरदर्शन और बीबीसी का चर्चित चेहरा पदमा सचदेवा को इस्मत के काफी करीब माना जाता है। वह कहती हैं कि 'इस्मत आपा की बात हमेशा हँसकर की जाती है। वह इतनी खुशमिज़ाज थी की उनके आसपास के लोग भी हंसते खेलते रहते थे।'

मैं बचपन से ही दादी, नानी, चाची से चिड़िया, राजकुमार, तोते, उड़ने वाले घोड़े की कहानियां, जिन्न की कहानियां सुनकर ही बड़ी हुई हूँ। स्कूल और कॉलेज में आते आते कहानियों का स्तर भी बढ़ता गया। अब लोगों के दुख-सुख, मोहोबत्त और समाज में व्याप्त कुरीतियों की कहानियां पढ़नी शुरू की। किसी एक लेखिका ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया तो वह है इस्मत चुग़ताई। इस्मत की हर कहानी नए किरदारों के साथ रहती है, हर बार कुछ अलग होता है। हर नई कहानी का किरदार पुरानी कहानी के किरदार को धकेल देता है।
पता नहीं क्यों लेकिन मंटो के किरदार दुःख देते हैं। एक टीस दे जाते हैं जो अंदर तक छलनी कर देती है। इस्मत का लेखन स्टाइल काफी अलग है, जो किसी को कॉपी नहीं करता। ये सीख भी देता है, आईना भी दिखाता है और दुःख भी नहीं देता। बावजूद इसके प्रेरणा दे जाता है। कई लेखक अपने किरदारों को बड़ा संभालकर चलाते हैं। इस्मत के किरदार एकदम रास्ता चीरते हुए आगे बढ़ते जाते हैं।
इस्मत 'टेढ़ी लकीर' की शम्मन के बारे में कहती हैं, 'मैने शम्मन के दिल में उतरने की कोशिश की है। उसके साथ आंसूं बहाए हैं और कहकहे लगाए हैं। उसकी कमजोरियों से जल भी उठी हुं, उसकी हिम्मत की दाद भी दी है'। शम्मन एक किरदार नहीं है, शम्मन उस दौर की हर लड़की की कहानी है जो पाबंदियों और गुमनामियों के अंधेरे के बीच भी एक लौ ढूंढ रही है। जिसका भविष्य और वर्तमान घड़ी की उस पेंडुलम के भांति इधर से उधर डामाडोल हो रहा है। जो बाहर से शांत तो दिख रही है लेकिन उसके जिस्म में आग के गोले उसे जला रहे हैं, तपा रहे हैं और उसके किरदार को रच रहे हैं।
शम्मन कहानी है उस टूटे-फूटे किरदार की जिसकी कोई 'परफेक्ट लाइफ' नहीं है। इस कहानी की कोई 'हैप्पी एंडिंग' नहीं है। इस्मत अपने किरदार के बारे में पाठकों को असमंजस में रखती हैं। इन सभी किरदारों को आप इम्पेर्फेक्शन के साथ भी एक्सेप्ट कर लेते हैं।
शम्मन गिरती है, कई बार गिरती है, बार बार गिरती है लेकिन संभल जाती है और चल पड़ती है नए सफर पर।
एक इंटरव्यू में इस्मत कहती हैं कि "जो औरत खुद को डिफेंड नहीं कर सकती है वो इस काबिल नहीं है कि ज़िंदा रहे"

इस्मत चुग़ताई की कहानी 'लिहाफ' समलैंगिकता और बाल शोषण जैसे विषयों पर आज से लगभग 78 साल पहले ही बात कर चुकी है, जो आज के सीनेरिओ में भी उतनी ही फिट बैठती है जितनी की तब थी। 'लिहाफ़' के एक अंश में इस्मत लिखती हैं, 'अम्मा को हमेशा से मेरा लड़को के साथ खेलना नापसंद रहा, भला लड़के क्या शेर-चीते हैं जो निगल जाएंगे उनकी लाडली को? और लड़के भी कौन, खुद भाई और दो चार सड़े-सड़ाए, जरा जरा से उनके दोस्त? मगर नहीं वह तो औरत जात को सात तालों में रखने की कायल हैं और यहां बेगम जान की वह दहशत कि दुनियां भर के गुंडों से नहीं। बस चलता तो उस वक्त सड़क पर भाग जाती पर वहां ने टिकती....'
'लिहाफ़' के लिए ने न जाने इस्मत ने कितने झमेले, कितनी आलोचनाओं और कोर्ट के चक्कर काटे लेकिन लिखना बन्द नहीं किया। हंसती-खेलती 'इस्मत आपा' ने औरत की उस छिपी दुनियां को सबके सामने रखा जिसमें वह प्यार, मोहोबत्त, और दोस्ती की भूखी है। वह हर बात चुपके से कान में कह डाली जो दूसरे कहने से कतराते रहे।
इस्मत की कहानियों में हर लड़की खुद को खोज सकती है। इन कहानियों से आने वाली लड़कियां समझ सकेंगी मुश्किलों को और लड़ सकेंगी सभी परेशानियों से। 'इस्मत' इसलिए जरूरी है कि हर लड़की समझ सके, जान सके, पहचान सके अपनी ज़िन्दगी में आने वाली हर मुश्किल को और सीधी लकीर को छोड़ चुन सके किसी 'टेढ़ी लकीर' को।




Saturday, November 2, 2019

WHAT WE TALK ABOUT WHEN WE TALK ABOUT RAPE

BOOK NAME: WHAT WE TALK ABOUT WHEN WE TALK ABOUT RAPE.
WRITER: SOHAILA ABDULALI
PUBLICATION: PENGUIN.

हर किताब को पढ़ने के बाद मेरी या किसी की भी धारणा बन जाती है। उस लेखक के प्रति, उस किताब के प्रति। हम उसके कंटेंट के बारे में सोचने लगते हैं, उसके बारे में लिखने का सोचते हैं, लोगों को बताने का सोचते हैं उसके बारे में और जानने की कोशिश करना चाहते हैं। इस किताब को पढ़ने के बाद मैं कुछ सोच नहीं पा रही हूँ। लिखने का मन नहीं है मैं अपना ज्ञान नहीं देना चाहती। मैने जो पढ़ लिया बस पढ़ लिया, जो समझ लिया बस समझ लिया। पिछली बार मंटो को पढ़ने के लगभग 1 हफ्ते तक मैं काफी परेशान रही थी उसके बाद से ही सोशल issues पर चोट करने वाली किताबों को पढ़ने से बचने लगी हूँ। 1 साल पहले इस किताब के बारे में सुना था....न जाने कुछ दिन पहले इस किताब का ख्याल कैसे मन में आया।
किताबें खत्म हो जाती हैं लेकिन अपना कभी न छूटने वाला असर छोड़ जाती हैं। बस ये वही किताब है।

'रेप' के बारे में कुछ लिखना नहीं चाहती न ही इस किताब के बारे में। लेकिन इसे पढ़ा जाना चाहिए। हर उम्र के व्यक्ति को इस किताब को पढ़ना चाहिए।

भारत के मेले: छत्तीसगढ़ का 'मड़ई मेला' जहां मिलता है औरतों को संतान प्राप्ति का आशीर्वाद

ये छत्तीसगढ़ में लगने वाला एक मेला है, गंगरेल मड़ई। दीवाली के बाद पहले शुक्रवार को यह मड़ई मेला आयोजित करवाया जाता है। इस साल भी लगा था। जो इन ...