Tuesday, November 12, 2019

इस्मत चुग़ताई की किताब 'टेढ़ी लकीर' का रिव्यु।

किताब: टेढ़ी लकीर
लेखिका: इस्मत चुग़ताई
प्रकाशन: राजकमल प्रकाशन।
इस्मत चुग़ताई की 'टेढ़ी लकीर'
तारीख गवाह है कि तलवारों ने इंसानों का खून बहाया है और कलम ने कौमों की तकदीर को जगमगाया है।
'इस्मत आपा' या इस्मत चुग़ताई उर्दू की मशहूर कहानीकार। इनकी कहानियां घरों में कैद हर पर्दानशी, दबी घुटी औरत की सच्चाई है।
ये सच है कि आज़ादी की लड़ाई कई मोर्चो से लड़ी गयी। सियासी आजादी के साथ दिमागों और खयालों की आजादी भी इसका एक मोर्चा रहा है।
जावेद अख्तर अपने एक इंटरव्यू में कहते हैं कि 'इस्मत को नापना आसान नहीं है। 1930 के आसपास इस्मत ने लिखना शुरू करा और उसके काफी समय बाद फेमिनिज्म का ये कांसेप्ट वेस्ट में पहुंचा। आपा की कहानियां नए समाज की तस्वीर दिखाती है और हक की आवाज़ उठाती हैं'।
इस्मत की लिखावट की सबसे खास बात है कि ये बगैर अपने किरदारों पर रहम खाये लिखती हैं। इनके किरदार बगैर रहम और हमदर्दी की भीख मांगे अपनी तन्हाईयों और दर्द को बयां करते हैं। ये किरदार दूध के धुले नहीं होते। ये किरदार बड़े टूटे फूटे होते हैं। इनमें खामियां हैं, कमजोरियां हैं, लालच है, बेईमानी है, ये झूठ बोलते हैं, ये बेवफाह हैं और निहायती धोखेबाज़ हैं। लेकिन, इस्मत इन सारी चीज़ों के बावजूद, हज़ार कमियों के इतर अपने किरदारों के अंदर छिपे उस इंसान नामक कीड़े को और उसके दुख को ढूंढ निकालती है।
मुज्तबा हुसैन के साथ अपने इंटरव्यू में इस्मत कहती हैं कि 'मैं एक छोटे से इंसान को उठा लेती हूँ और उसी से कहानी बनाती हूँ। उन किरदारों की अपनी एक अलग कहानी होने के बावजूद भी वह उस एक किरदार के आस पास ही घूमते हैं। ये हुनर मैने रूस के लिटरेचर से सीखा है।'
दूरदर्शन और बीबीसी का चर्चित चेहरा पदमा सचदेवा को इस्मत के काफी करीब माना जाता है। वह कहती हैं कि 'इस्मत आपा की बात हमेशा हँसकर की जाती है। वह इतनी खुशमिज़ाज थी की उनके आसपास के लोग भी हंसते खेलते रहते थे।'

मैं बचपन से ही दादी, नानी, चाची से चिड़िया, राजकुमार, तोते, उड़ने वाले घोड़े की कहानियां, जिन्न की कहानियां सुनकर ही बड़ी हुई हूँ। स्कूल और कॉलेज में आते आते कहानियों का स्तर भी बढ़ता गया। अब लोगों के दुख-सुख, मोहोबत्त और समाज में व्याप्त कुरीतियों की कहानियां पढ़नी शुरू की। किसी एक लेखिका ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया तो वह है इस्मत चुग़ताई। इस्मत की हर कहानी नए किरदारों के साथ रहती है, हर बार कुछ अलग होता है। हर नई कहानी का किरदार पुरानी कहानी के किरदार को धकेल देता है।
पता नहीं क्यों लेकिन मंटो के किरदार दुःख देते हैं। एक टीस दे जाते हैं जो अंदर तक छलनी कर देती है। इस्मत का लेखन स्टाइल काफी अलग है, जो किसी को कॉपी नहीं करता। ये सीख भी देता है, आईना भी दिखाता है और दुःख भी नहीं देता। बावजूद इसके प्रेरणा दे जाता है। कई लेखक अपने किरदारों को बड़ा संभालकर चलाते हैं। इस्मत के किरदार एकदम रास्ता चीरते हुए आगे बढ़ते जाते हैं।
इस्मत 'टेढ़ी लकीर' की शम्मन के बारे में कहती हैं, 'मैने शम्मन के दिल में उतरने की कोशिश की है। उसके साथ आंसूं बहाए हैं और कहकहे लगाए हैं। उसकी कमजोरियों से जल भी उठी हुं, उसकी हिम्मत की दाद भी दी है'। शम्मन एक किरदार नहीं है, शम्मन उस दौर की हर लड़की की कहानी है जो पाबंदियों और गुमनामियों के अंधेरे के बीच भी एक लौ ढूंढ रही है। जिसका भविष्य और वर्तमान घड़ी की उस पेंडुलम के भांति इधर से उधर डामाडोल हो रहा है। जो बाहर से शांत तो दिख रही है लेकिन उसके जिस्म में आग के गोले उसे जला रहे हैं, तपा रहे हैं और उसके किरदार को रच रहे हैं।
शम्मन कहानी है उस टूटे-फूटे किरदार की जिसकी कोई 'परफेक्ट लाइफ' नहीं है। इस कहानी की कोई 'हैप्पी एंडिंग' नहीं है। इस्मत अपने किरदार के बारे में पाठकों को असमंजस में रखती हैं। इन सभी किरदारों को आप इम्पेर्फेक्शन के साथ भी एक्सेप्ट कर लेते हैं।
शम्मन गिरती है, कई बार गिरती है, बार बार गिरती है लेकिन संभल जाती है और चल पड़ती है नए सफर पर।
एक इंटरव्यू में इस्मत कहती हैं कि "जो औरत खुद को डिफेंड नहीं कर सकती है वो इस काबिल नहीं है कि ज़िंदा रहे"

इस्मत चुग़ताई की कहानी 'लिहाफ' समलैंगिकता और बाल शोषण जैसे विषयों पर आज से लगभग 78 साल पहले ही बात कर चुकी है, जो आज के सीनेरिओ में भी उतनी ही फिट बैठती है जितनी की तब थी। 'लिहाफ़' के एक अंश में इस्मत लिखती हैं, 'अम्मा को हमेशा से मेरा लड़को के साथ खेलना नापसंद रहा, भला लड़के क्या शेर-चीते हैं जो निगल जाएंगे उनकी लाडली को? और लड़के भी कौन, खुद भाई और दो चार सड़े-सड़ाए, जरा जरा से उनके दोस्त? मगर नहीं वह तो औरत जात को सात तालों में रखने की कायल हैं और यहां बेगम जान की वह दहशत कि दुनियां भर के गुंडों से नहीं। बस चलता तो उस वक्त सड़क पर भाग जाती पर वहां ने टिकती....'
'लिहाफ़' के लिए ने न जाने इस्मत ने कितने झमेले, कितनी आलोचनाओं और कोर्ट के चक्कर काटे लेकिन लिखना बन्द नहीं किया। हंसती-खेलती 'इस्मत आपा' ने औरत की उस छिपी दुनियां को सबके सामने रखा जिसमें वह प्यार, मोहोबत्त, और दोस्ती की भूखी है। वह हर बात चुपके से कान में कह डाली जो दूसरे कहने से कतराते रहे।
इस्मत की कहानियों में हर लड़की खुद को खोज सकती है। इन कहानियों से आने वाली लड़कियां समझ सकेंगी मुश्किलों को और लड़ सकेंगी सभी परेशानियों से। 'इस्मत' इसलिए जरूरी है कि हर लड़की समझ सके, जान सके, पहचान सके अपनी ज़िन्दगी में आने वाली हर मुश्किल को और सीधी लकीर को छोड़ चुन सके किसी 'टेढ़ी लकीर' को।




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