Monday, March 9, 2020

पाकिस्तान यात्रा: गुरुद्वारा करतारपुर साहिब

पाकिस्तान का एंट्री पॉइंट।
"देश से प्यार नहीं है तो पाकिस्तान चले जाओ" हिंदुस्तानियों के लिए पाकिस्तान हमेशा से ही देशप्रेम नापने की एसआई यूनिट रहा है। जितनी पाकिस्तान से नफरत उतना देश से प्यार और जितना पाकिस्तान से प्यार उतनी देश से नफरत। तो हमने भी अपना देशप्रेम कैलकुलेट करने के लिए पाकिस्तान ही चुना। 13 फरवरी को हम कॉलेज कैंपस में बात कर ही रहे थे कि अचानक हम तीनों के फ़ोन पर मैसेज आया 'Your registration no. For Shri kartarpur sahib Pilgrimage is confirmed'। हमारा ईटीए 16 फरवरी का था तो ज़ाहिर सी बात है हमे 14 को ही निकलना पड़ा। प्लानिंग के हिसाब से हमे दिल्ली से अमृतसर जाना था। हम लगभग 3 बजे अमृतसर पहुंचे। अमृतसर दिल्ली से लगभग 450 किलोमीटर की दूरी पर है।
गुरुद्वारा करतारपुर साहिब।
गुरुद्वारा करतारपुर साहिब का इतिहास क्या है?
पाकिस्तान स्थित गुरुद्वारा श्री करतापुर साहिब भारतीय सीमा से महज 4 किलोमीटर की दूरी पर है। सिखों के गुरु नानक जी ने करतारपुर को बसाया था और यहीं इनका परलोकवास भी हुआ। करतारपुर गुरुद्वारा साहिब पाकिस्तान के नारोवाल जिले में स्थित है। यह गुरुद्वारा नानक जी की समाधि पर बना है। रावी नदी के किनारे पर बसा यह स्थल भारतीय सीमा के डेरा साहिब रेलवे स्टेशन से महज चार किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। बताया जाता है कि यहां के तत्कालीन गवर्नर दुनी चंद की मुलाकात नानक जी से होने पर उन्होंने 100 एकड़ जमीन गुरु साहिब के लिए दी थी। सबसे पहले 1522 में यहां एक छोटा सा झोपड़ीनुमा स्थल का निर्माण करवाया गया था। करतारपुर को सिखों को पहला केंद्र भी कहा जाता है।
वेरका जंक्शन।
अमृतसर से करतारपुर गुरुद्वारा कैसे जाएं?
अमृतसर से वेरका जंक्शन का रास्ता मुश्किल से 20 मिनट का है। वेरका जंक्शन से हर 1 घण्टे पर लोकल ट्रैन चलती है जो महज डेढ़ घण्टे में डेरा बाबा नानक स्टेशन पहुँचा देती है। डेरा बाबा नानक स्टेशन पाकिस्तान से लगता हुआ स्टेशन है। एक तरफ बॉर्डर के उस पार गुरुद्वारा करतारपुर साहिब है तो वहीं बॉर्डर के इस पार गुरुद्वारा डेरा बाबा नानक है। सिखों के पहले गुरु, गुरु नानक देव जी ने काफी यात्राएं की। आज लगभग उन सभी जगहों पर गुरुद्वारे मौजूद हैं। उन्ही गुरुद्वारों में से एक गुरुद्वारा डेरा बाबा नानक भी है। यह गुरुद्वारा गुरदासपुर में है और भारत-पाकिस्तान के बॉर्डर से सिर्फ 1 किलोमीटर की दूरी पर है।
डेरा बाबा नानक रेलवे स्टेशन।
डेरा बाबा नानक गुरुद्वारे में मुफ्त बस सेवा के साथ रहने और खाने का भी पूरा प्रबन्ध होता है। यात्री चाहें तो यहां रुक सकते हैं। सुबह लगभग 8 बजे यहां से पहली बस करतारपुर कॉरिडोर के लिए रवाना होती है और 5 बजे वापिस लेकर भी आती है। इन दोनों गुरुद्वारों की बीच की दूरी लगभग 8-9 किलोमीटर है। रेलवे स्टेशन से गुरुद्वारे तक लगभग 20 से 25 मिनट के इस रास्ते को पूरा करने के लिए फ्री बस सेवा भी उपलब्ध है।


इमीग्रेशन पॉइंट से गुरुद्वारा करतारपुर साहिब तक का सफर कैसे होता है पूरा?
गुरुद्वारे तक पहुँचने के लिए इमीग्रेशन प्रोसेस से होकर गुज़रना पड़ता है। इमीग्रेशन में ईटीए और डाक्यूमेंट्स वेरिफिकेशन जैसी तमाम फॉरमैलिटी करनी होती है। पाकिस्तान जाने से पहले भारतीय इमीग्रेशन पॉइंट पर पोलियो ड्राप भी पिलाई जाती है। इसका कारण है कि पाकिस्तान अभी भी पोलियो फ्री देश नहीं हुआ है। भारतीय इमीग्रेशन पॉइंट के बाद पाकिस्तान में स्वागत होता है। गुरुद्वारे तक सभी को बसों में ले जाया जाता है। जिसके बाद गुरुद्वारे की एंट्री पर ही ब्रीफिंग दी जाती है।

क्या है गुरुद्वारे के अंदर?
शुरुआत में ही गुरुद्वारे में 'मज़ार शरीफ़' है। कहा जाता है कि जब गुरु नानक देव जी अपने स्वर्गीय निवास के लिए रवाना हुए, तो हिंदू और मुस्लिम अंतिम संस्कार करने के तरीके पर सहमति नहीं बना पाए। हिंदू अपनी परंपरा के अनुसार दाह संस्कार करना चाहते थे जबकि मुसलमान अपने अनुसार दफन करना चाहते थे। इसीलिए गुरु नानक देव जी का जब परलोकवास हुआ तब उस जगह लोगों को कुछ फूल और एक कपड़ा मिला जिसको दो हिस्सों में बांट दिया गया। एक हिस्सा हिंदुओं को मिला और एक मुसलमानों को। आज भी एक समाधि हिंदू परंपरा के अनुसार गुरुद्वारे में स्थित है और एक कब्र (मुस्लिम परंपराओं के अनुसार) नानक देव जी की याद के रूप में परिसर में स्थित है।
गुरुद्वारे में एक कुआँ भी है। जिसके बारे में कहा जाता है कि इसी कुएं से पानी ले जाकर गुरु नानक देव जी खेती करते थे। जिन खेतों में वह खेती करते थे अब उस जगह को 'खेती साहब' कहा जाता है। 

गुरुद्वारे से लगता हुआ एक छोटा सा बाज़ार भी है जहां खाने पीने और पहनने की छोटी छोटी चीज़े मिलती है। स्ट्रीट फूड के अलावा यहां लाहौर, करांची, मुल्तान आदि की फेमस मिठाई मौजूद हैं।
बेसन का नान।
करतारपुर कॉरिडोर बनने से पहले कैसे होते थे दर्शन?
कॉरिडोर बनने से पहले लोग डेरा बाबा नानक गुरुद्वारे से ही दूरबीन से दर्शन किया करते थे। पाकिस्तान सरकार द्वारा बीच में आने वाली घास को भी काट दिया जाता था ताकि भारत के लोग आसानी से गुरुद्वारा करतारपुर साहिब के दर्शन कर सकें। बंटवारे के दौरान दरबार साहिब और डेरा बाबा नानक भी अलग हो गए थे। एक पाकिस्तान के हिस्से आ गया था तो दूसरा हिंदुस्तान। इन दोनों गुरुद्वारों के बीच में बहती नदी है रावी। जो बरसों से ऐसी ही बहती रही। करतारपुर साहिब के बारे में भारत ने पाकिस्तान से पहली बार बातचीत 1998 में की थी। जिसके बाद से ही भारत के सिख करतारपुर कॉरिडोर बनवाने की बात कर रहे थे। जिसके 20 साल बाद इस मामले में अहम क़दम उठाया गया। भारत के सिख शुरू से ही चाहते रहे कि उनको करतारपुर गुरुद्वारे तक जाने तक का कोई वीज़ा-फ्री कॉरिडोर या कोई ऐसा सिस्टम दिया जाए जिससे वहां पहुँचने में आसानी हो। क्योंकि इससे पहले हिंदुस्तानियों को लाहौर जाना पड़ता था और फिर लाहौर से करतारपुर साहिब। लाहौर से गुरुद्वारे लगभग 150 किलोमीटर की दूरी पर है। लेकिन गुरु नानक देव जी की 550 वीं जयंती पर इसे खोल दिया गया था।
सफर के साथी।
दोनों देशों के बीच हुए समझौते में क्या है?
1. कोई भी भारतीय किसी भी धर्म को मानने वाला हो उसे वीज़ा की जरूरत नहीं होगी।
2. ट्रेवल के लिए केवल इलेक्ट्रॉनिक ट्रेवल ऑथोराईज़ेशन (ईटीए) की जरूरत होगी।
3. दर्शन के लिए कम से कम 10 दिन पहले रेजिस्ट्रेशन करवाना होगा। 
4. यह कॉरिडोर पूरे साल खुला रहेगा।
5. भारतीय विदेश मंत्रालय यात्रा करने वालों की इस लिस्ट को 10 दिन पहले पाकिस्तान को देगा जिसके बाद वह वेरिफिकेशन करेंगे और उसी के बाद ईटीए जारी किया जाएगा।
6. इस रेजिस्ट्रेशन की फीस 20 डॉलर होगी। यानी 1400 भारतीय रुपये।
7. एक दिन में अधिक से अधिक 5000 लोग/श्रद्धालुओं को ही दर्शन की परमिशन दी जाएगी।
8. आवेदकों को मेल और मैसेज के ज़रिए तीन-चार दिन पहले कन्फ़र्मेशन की जानकारी दी जाएगी।
किसे बुलाया गया था भारत-पाकिस्तान के बीच लकीर खींचने के लिए?
वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैय्यर उन चंद लोगों में से एक थे जो भारत-पकिस्तान बंटवारे के बाद रेडक्लिफ़ से मिले थे। सिरील रेडक्लिफ वही शख्स हैं जिन्हें 1947 में ब्रिटेन से भारत-पाक के दो टुकड़े करने के लिए बुलवाया गया था।
रेडक्लिफ़ के इंटरव्यू के दौरान हुई सभी बातों का ज़िक्र करते हुए कुलदीप नैय्यर कहते हैं कि “मैं जानना चाहता था कि उन्होंने विभाजन की लाइन आखिर कैसे खींची? उन्होंने कोई बात मुझसे छिपाई नहीं"।
फ़ोटो साभार: गूगल।
कुलदीव नैय्यर को रेडक्लिफ़ ने आपबीती सुनाते हुए कहा कि “मुझे इस रेखा को खींचने के लिए 10-11 दिन का समय दिया गया था। उस वक़्त न ही हमारे पास कोई डाटा था और ना ज़िलों के नक्शे। मैंने रावी नदी को बंटवारे का आधार बनाया था। हालांकि मैं पहले लाहौर को भारत को देना चाहता था क्योंकि लाहौर में हिंदुओं की संपत्ति ज़्यादा थी। लेकिन अगर लाहौर हिंदुस्तान में चला जाता तो पाकिस्तान के हिस्से में कोई भी बड़ा शहर नहीं आता इसलिए लाहौर को भारत से निकालकर पाकिस्तान को दे दिया। लाहौर को पाकिस्तान को देना मेरा मजबूरी थी।"
बंटवारे का दर्द बयां करते हुए रेडक्लिफ़ कहते हैं कि, 'यह रेखा खींचते हुए मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं किसी दिल के दो हिस्से कर रहा हूँ।' कुलदीप नैय्यर अपने एक इंटरव्यू में बताते हैं कि जिस वक़्त वह रेडक्लिफ़ से बात कर रहे थे और वह इस रेखा खींचने की घटना का वर्णन कर रहे थे तब उनके चेहरे पर एक उदासी थी। वह बार बार कह रहे थे कि 'मुझे इस बात का दुख हमेशा रहेगा'।
क्या सोचते हैं पाकिस्तान के लोग भारत के बारे में?


No comments:

Post a Comment

भारत के मेले: छत्तीसगढ़ का 'मड़ई मेला' जहां मिलता है औरतों को संतान प्राप्ति का आशीर्वाद

ये छत्तीसगढ़ में लगने वाला एक मेला है, गंगरेल मड़ई। दीवाली के बाद पहले शुक्रवार को यह मड़ई मेला आयोजित करवाया जाता है। इस साल भी लगा था। जो इन ...