Friday, June 14, 2019

एक क्यूट सी लव स्टोरी 'लुकाछिपी'

फ़िल्म: लुकाछिपी
निर्देशन: लक्ष्मण उतेकर
लेखकः रोहन शंकर

फ़िल्म का एक दृश्य
मथुरा की संकरी गलियों से शुरू हुई ये कहानी लुकाछिपी ट्रेंड में चल रहे लिव इन रिलेशनशिप के बारे में है। जहां कार्तिक आर्यन उर्फ गुड्डू और कृति सेनन उर्फ रश्मि  कहानी के मुख्य किरदार के रूप में हैं। वहीं पर साइड रोल में अपारशक्ति खुराना गुड्डू के दोस्त अब्बास के रूप में हैं और पंकज त्रिपाठी एक ऐसे किरदार में हैं जो गुड्डू की जासूसी और उसे परेशान करने में लगे रहते हैं। वहीं कृति सेनन के पिता का किरदार विनय पाठक ने निभाया है जो संस्कृति रक्षा मंत्री होते हैं।

कहानी क्या है?
ऐसे में कार्तिक आर्यन और कृति सेनन एक न्यूज असाइनमेंट के चलते एक दूसरे के करीब आते हैं जहां उन दोनों को एक दूसरे से प्यार होजाता है। अब सवाल आता है शादी का तो कृति सेनन यानी रश्मि शादी से पहले लिव इन का सुझाव देती है। बाद में चलकर छिपते-छिपाते लुका- छिपी  करते करते उनका लिव इन का सच सामने आ ही जाता है। हालांकि घिसते पीटते कहानी अंत मे शादी तक पहुँच ही जाती है।
कहानी शुरू से अंत तक बेहद ही प्लेन प्लाट पर चलती है जिसमें लिव इन को लेकर कोई क्रांतिकारी स्टेप नही दिखाया गया है। वहीं पर लुकाछिपी के पुराने लीपापोती वाले गाने कहीं न कहीं दर्शकों को थोड़ा निराश भी करते हैं।

फ़िल्म का दृश्य
प्रश्न क्या है? 
जिस देश में राधा कृष्ण को प्रेम की मूरत माना जाता हो और फिर भी वहां 'प्रेम' को जबतक किसी बन्धन में नही बांधा जाता या जबतक उसे किसी रिश्ते का नाम नही दिया जाता तबतक उसे अपवित्र ही माना जाता हो ऐसे में जो सवाल ज़ेहन में उतरता है वह है कि क्या हमारा समाज लिव इन के लिए तैयार है? जिस समाज में अभी तक प्रेम विवाह को भी मंजूरी न मिली हो वहां लिव इन की बात करना भी जायज़ होगा? क्या हमारा समाज भारतीय संस्कृति को छोड़ पाश्चात्य संस्कृति की ओर बढ़ रहा है? 

सौर ऊर्जा: एक आखिरी विकल्प


चित्र साभार: गूगल
एक छोटा सा कमरा जहाँ कोई खिड़की नही है जहां से धूप उतरती हो, हर जगह बस आर्टिफिशल लाइटें। आज दुनिया सभ्य हो चुकी है, जंगल काटे जा चुके हैं, सारे जानवर मारे जा चुके हैं, वर्षा थम चुकी है और पृथ्वी आग के गोले की तरह तप रही है। बेशक हमे बिजली और ईंधन से काफी ऊर्जा मिलती है लेकिन सवाल है आखिर कबतक? आपकी बिजली से चलने वाली लाइटे क्या कभी सुकून और न खत्म होने वाली एक ऊर्जा दे सकती है? दे सकती है क्या? ऐसे में हमारे पास एक उम्मीद की किरण सोलर एनर्जी या कहें सौर ऊर्जा है।
सूर्य से प्राप्त की जाने वाली ऊर्जा को हम सौर ऊर्जा के नाम से जानते हैं। मौसम और जलवायु का परिवर्तन करने में भी इसी का हाथ होता है। या यूं कहें कि पशु, पक्षी, मानव, कीट, पतंगे सभी का यही सहारा है।

सौर ऊर्जा का मकसद:
सौर ऊर्जा का मकसद विज्ञान व संस्कृति के एकीकरण तथा संस्कृति व प्रौद्योगिकी के उपकरणों के प्रयोग द्वारा सौर ऊर्जा को भविष्य के लिए अक्षय ऊर्जा का स्त्रोत साबित करना है। इसका अत्यधिक विस्तारित होना, अप्रदूषणकारी होना व अक्षुण होना इसे और प्रमुख बनाता है। सूर्य की ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलना इसका मुख्य काम है।

भारत में पारंपरिक इलेक्ट्रिक लैम्प को बदलने के लिए उजाला कार्यक्रम के तहत 30 करोड एलईडी बल्ब का वितरण किया गया है जिसके परिणामस्वरूप चार गीगाबाइट बिजली और दो अरब डॉलर की बचत हुई है।

आज इसका उपयोग करने में हम पीछे नही है उदाहरण के लिए:

  • सौर पाचक(सोलर कुकर)- उष्मा द्वारा खाना पकाने से विभिन्न प्रकार के परंपरागत ईंधनों की बचत होती है  अबतक लगभग 4,60,000 सोलर कुकर बिक्री किये जा चुके हैं।
  • सौर वायु उष्मन- इससे खुले में अनाजों व अन्य उत्पादों को सुखाते समय होने वाले नुकसान कम किये जा सकते हैं।
  • सौर स्थापत्य- इसके चलते परंपरागत ऊर्जा(बिजली व ईंधन) की बचत की जा सकती है।
  • सौर फोटो वोल्टायिक कार्यक्रम- इसमे सूर्य की रोशनी को सेमीकंडक्टर की बनी सोलर सेल पर डाल कर बिजली पैदा की जाती है।
  • सौर लालटेन- एक हल्का ढोया जाने वाला फोटो वोल्टायिक यंत्र है। अबतक लगभग 2,50,000 के ऊपर इनकी बिक्री देश के ग्रामीण इलाकों में हो चुकी है।

ऐसे ही सौर जल पम्प, ग्रामीण विद्युतीकरण(एकल बिजली घर), सार्वजनिक सौर प्रकाश प्रणाली, घरेलू सौर प्रणाली आदि। 

आज वैश्विक सौर ऊर्जा के प्रोमोटर भारत ने फ्रांस के साथ अंतरराष्ट्रीय सौर गठबन्धन शुरू किया है जिसमे कर्क और मकर रेखा के बीच आने वाले देशों को मिलने वाली पर्याप्त सौर ऊर्जा का प्रयोग किया जा सके इसकी शुरुवात के लिए दोनों देश ने 2.7 करोड डॉलर का योगदान भी दिया है। 
और तो और अभी हाल ही में नवी मुम्बई में देश का पहला सूर्य ऊर्जा आधारित चार्जिंग स्टेशन स्थापित किया गया है। इसे मैजेंटा पावर नामक कंपनी ने तैयार किया है। इससे देश मे कार्बन उत्सर्जन करने वाले वाहनों की संख्या में धीरे धीरे कमी आयेगी।

परेशानी क्या है?
परेशानी यह है की आज घनी आबादी और स्मार्ट सिटी की चकाचौंध में हम पर्यावरण को भूल ही गए हैं। इस अधमरी अपढ़ जाति को भला दिशा को देगा? ऐसे में सौर ऊर्जा को वैकल्पिक ऊर्जा के रूप में प्रचारित करते हुए इस्तेमाल को बढ़ाना समय की मांग है। और यही आखिरी विकल्प भी है।

176 साल से चल रही मूक रामलीला

राजस्थान के जंझुनू जिले का एक छोटा-सा कस्बा जहां होती है 'मूक रामलीला'

मूक रामलीला की एक झलक
बड़ी बड़ी दीवारों के शानदार महल, राजसी किले, हाथियों व ऊँटो की शाही सवारी, दूर दूर तक उड़ती रेगिस्तान की रेत के बीच राजस्थान के झुंझुनूं जिले में बसता है एक छोटा सा कस्बा बिसाऊ, जो अपने अंदर न जाने कितनी संस्कृतियां, कला, धरोहर और परम्पराएं संजोए हुए है।
अद्भुत, अनुपम, प्राचीन, वास्तुकला, काष्ट नक्काशी और आभूषण निर्माण कला में महारत रखने वाले कारीगरों का नगर बिसाऊ करीब 2 किलोमीटर के क्षेत्र में 30,000 जनसंख्या को आँचल में समेटे हुए है।
कला को समर्पित यह बिसाऊ आज भी लगभग 176 साल पुरानी अपनी धरोहर को बचाने में दिन रात व सुबह शाम प्रयासरत है। यह है 'मूक रामलीला'। जी हां आपने सही पढ़ा 'मूक'। इसका सबसे बड़ा आकर्षण यही है कि यह मूक होती है सभी पात्र मुखौटे का प्रयोग करते हैं, पात्रों की पहचान उनका मुखौटा होता है उनका नाम नही।
रामलीला का सबसे प्रथम मंचन कहाँ हुआ? कब हुआ? कैसे हुआ? किसने किया? इसका कोई प्रामाणिक दस्तावेज उपलब्ध नही है। भारत में रामलीला परम्परागत रूप से भगवान राम के चरित्र पर आधारित नाटक है।
रामलीला देखते लोग
झुंझुनू जिले के बिसाऊ में हो रही इस रामलीला का अगर इतिहास खंगाला जाए तो पता चलेगा कि 200 वर्ष पूर्व यहां एक साध्वी हुआ करती थी जिनका नाम जमना देवी हुआ करता था। गाँव के बड़े बुजुर्गों का मानना है कि वह गांव के सभी बच्चो को इकट्ठा कर उनसे यह रामलीला करवाया करती थी चूंकि बच्चों को संवाद याद करने में दिक्कत होती थी इसलिए वह मुखौटा पहनकर अपना अपना अभिनय करते थे। तबसे लेकर आज तक यह मूक रामलीला बिसाऊ में निरंतर होती आ रही है।
अलग-अलग तरीकों और अलग-अलग भाषाओं में रामलीला का मंचन पूरे देश में किया जाता है। हालांकि पूरे देश में रामलीला का मंचन विजयादशमी या दशहरा उत्सव पर किया जाता है। लेकिन बिसाऊ में होने वाली यह ऐतिहासिक रामलीला काफी अलग है जो इसकी विश्वसनीयता में चार चांद लगा देती है। श्राद्ध पक्ष की समाप्ति के तुरंत पश्चात 15 दिनों यानी प्रथम नवरात्रि से शुरू होकर पूर्णिमा तक यह रामलीला चलती है। इस बीच रामलीला प्रेमियों से यह पूरा क्षेत्र पटा हुआ होता है। इसमे न किसी प्रकार की संवाद अदायगी होती है और न ही कोई मंच होता है, बल्कि कलाकार विभिन्न पात्रों का स्वांग रचकर अपने अभिनय के जरिये सड़क पर नाच कर प्रस्तुत करते हैं। इस मूक रामलीला का समापन पूर्णिमा के दिन भरत मिलाप व रामचंद्र जी के राज्याभिषेक के रूप में होता है। आज भी वानर सेना के रूप में इसमे बिसाऊ के सभी बच्चे बारी बारी से अभिनय करते हैं।
रामलीला में अभिनय करता एक कलाकार
15 दिनों तक चलने वाली इस अनूठी मूक रामलीला का आयोजन विश्व में अन्यत्र कहीं भी नही होता है। लेकिन कहीं न कहीं बिसाऊ वासियों के मानना है कि इलेक्ट्रॉनिक एवं आधुनिकता के इस युग में बच्चे मूक रामलीला में ज्यादा रुचि नही लेते इसलिए रामलीला के मुख्य पात्रों के रूप में बड़े लोग ही अभिनय करते हैं। 176 से चल रही इस रामलीला को आजतक बचाया हुआ है और इसी संदर्भ में आज बिसाऊ के द्वारा इसे हेरिटेज में लाने के लिए ऐड़ी चोटी का जोर लगाया जा रहा है लेकिन ऐसे ही अगर इन कलाओं को नजरअंदाज किया गया इनका भविष्य क्या होगा कोई नही जानता।
कस्बे के चुरू लिंक रोड पर नीलकंठ महादेव की 132 फ़ीट ऊंची प्रतिमा भी श्रद्धालुओं व पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। प्रतिमा के साथ साथ यहां शिव परिवार, अष्ट विनायक, नवग्रह देवता, द्वादश ज्योतिर्लिंग तथा हरियाली चादर ओढ़े हुए बगीचा भी देखने लायक है।
नीलकंठ महादेव की 132 फ़ीट ऊंची प्रतिमा
"हमे समझना होगा कि हमारी धरोहरों, विरासतों पर ठहरना हमारी गति का प्रतीक है, ठहराव का नही।"

दिल्ली के टॉप मोस्ट हॉन्टेड प्लेस

1.जमाली कमली का मकबरा और मस्जिद
यह महरौली में भारतीय पार्क के पुरातत्व सर्वेक्षण में स्थित है। यह दो लोगो के नाम पर बनाई गई है शेख जमाली और कमाली। इसका निर्माण बाबर और हुमायूँ के शासनकाल के दौरान 1528-1529 इसवी में हुआ था।
जमाली कमाली की मस्जिद, एक संलग्न उद्यान क्षेत्र में स्थित है। जिसमे दक्षिण द्वारा प्रवेश किया जाता है। इस मस्जिद का निर्माण करने में लाल बलुआ पत्थर का उपयोग किया गया है और साथ ही संगमरमर द्वारा अलंकृत भी किया गया है। ये मकबरा मस्जिद के उत्तरी दिशा के निकट स्थित है। कक्ष के भीतर की सपाट छत को चिपकनेवाली पट्टी से बनाया और सुशोभनाता से अलंकृत किया गया है। इस कक्ष को लाल और नील रंग से रंगा गया है और साथ ही उसपर कुरान की कुछ आयतों का भी उल्लेख किया गया है। मकबरे की कक्ष की दीवारो पर रंगीन टाइल्स लगायी गयी है जिनपर जमाली की कविताओं को लिखा गया है। मकबरे की सजावट को एक गहने की पेटी में घुसने की धारणा से की गयी है। जमाली कमाली मस्जिद और मकबरे, के समाधि कक्ष में संगमरमर से बानी दो कब्रे है : एक जमाली की, जो एक संत व् कवि थे और दूसरी कमाली की। जमाली कमाली के मकबरे में 12 कब्र और भी बनीं हुई है इसके अलावा भी कई कब्रे है लेकिन यह सभी कब्रे अज्ञात श्रेणी में आती है।
कौन थे जमाली?
जमाली का असली नाम शेख फेजलुल्लाह था जिन्हें महान सूफ़ी संत के रुप में जाना जाता था। जमाली अपने दौर के प्रख्यात कवि थे। इतिहासकारों की मानें तो अपनी एक यात्रा के दौरान वह दिल्ली आए थे जहां लोधी वंश के शासनकाल में वह कवि बनकर रहने लगे। वह बाबर और हुमायूं के दरबारी कवि भी हुआ करते थे। शेख़ फेज़लुल्लाह को ज़माली नाम उनकी लोकप्रिय कविताओं की वजह से ही मिला था। इसी नाम से जमाली कमाली मस्जिद की स्थापना की गई। मस्जिद में दो कब्र स्थापित है एक जमाली की और दूसरी कमाली की, ऐतिहास के पन्नों में केवल जमाली का जिक्र किया गया है। कमाली कौन थे क्या उनका इतिहास रहा इस बात की जानकारी उपलब्ध नहीं है।
भूतिया होगयी है यह जगह
आज कई बातें सामने आ रही है।भूतिया अड्डो में शामिल जमाली कमाली मस्जिद के बड़े से आंगन में सुबह से लेकर शाम तक स्थानीय बच्चे खेलते है।लेकिन रात होते ही यहां कोई नहीं रुकता स्थानीय लोग से इसे भूतिया अड्डा मानते है जहां रात होते ही जिन्न की टोली लग जाती है। कुछ लोगों ने यहां रहस्यमयी आवाज़े सुनी है तो कुछ यहां अदृश्य रुह होने की बात कहते है।

2.मालचा महल
दिल्ली के दक्षिण रिज़ के बीहड़ों में छुपा ‘मालचा महल’ जिसमे पिछले 28 सालो से अवध राजघराने के वंशज राजकुमार ‘रियाज़’ (Prince Riaz) और राजकुमारी ‘सकीना महल’ (Princess Sakina Mahal) रह रहे है।   पहले इनके साथ इनकी माँ ‘विलायत महल’ भी रहा करती थी जिन्होंने 10 सितंबर 1993 को आत्महत्या कर ली थी।  इस महल तक जाने का रास्ता सरदार पटेल मार्ग से जाता है। लेकिन इस महल में अंदर जाने की इज़ाज़त किसी को नहीं है। उस महल तक पहुंचने के एक मात्र रास्तेल पर लगा है लोहे का ग्रिल, जिस पर हल्की-सी आहट होते ही  कुत्तेा भौंकना  शुरु कर देते हैं । चारों ओर कंटीली तार के बाड़े से घिरे उस महल के प्रवेश द्वार पर लगे पत्थर पर लिखा है, रूलर्स ऑफ अवध: ‘प्रिंसेस विलायत महल’  ।
जब 1985 में विलायत महल यहाँ रहने आई थी तो उनके साथ उनके बच्चो के अलावा 12 कुत्ते और पाँच नेपाली नौकर साथ थे। लेकिन आज यहां कोई नही है । पिछले ही साल सितंबर 2017 में प्रिंस ऑफ अवध की गुमनाम मौत होगयी।
फ़िरोज़ शाह तुगलक ने कराया था निर्माण ( Built by Feroz Shah Tughlaq) :
अब लगभग खंडहर हो चुके इस महल का निर्माण आज से 700 साल पूर्व फ़िरोज़ शाह तुगलक ने कराया था। यह महल उसकी शिकारगाह था। पहाड़ी पर बने इस महल में करीब 10 खिड़की और दरवाज़े है पर इनमे से एक किवाड़ नहीं है। इस चौकोर रूप के महल के हर ओर 6 यानी कुल 24 मेहराब (आर्च) हैं।
कैसे पहुँची विलायत महल मालचा
इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री बनने से पूर्व सभी राजा – महाराजाओं को सरकार की तरफ से पेंशन मिला करती थी पर जब इंदिरा गांधी, प्रधानमन्त्री बनी तो उन्होंने पेंशन बंद कर दी।  इससे उन राजा – महाराजाओं के तो कुछ फर्क नहीं पढ़ा जिनके पास या तो पुश्तैनी दौलत थी या फिर कमाई के अन्य स्रोत थे।  लेकिन जिनके पास दोनों में से कुछ नहीं था उनके सामने संकट खड़ा हो गया।  इनमे से ही एक थी विलायत महल, जिनके पति कि मृत्यु हो चुकी थी  और कमाई का कोई स्रोत नहीं था। कोई उपाय न देखकर विलायत महल ने सन 1975 में अपने दोनों बच्चेl रियाज व सकीना सहित , 12 कुत्तों और और पांच नौकरों के साथ लखनऊ से दिल्ली की ओर रुख किया और यहां के नई दिल्ली रेलवे स्टे शन के एक प्लेोटफॉर्म पर डेरा डाल दिया। बाद में वह अपने कुनबे के साथ प्लेईटफॉर्म से उठकर वीआईपी वेटिंग लांज पहुंची और वहां कब्जा कर लिया। लगातार धरना और मांग के चलते इंदिरा गांधी ने उन्हें कहीं और रहने के लिए ठिकाना उपलब्ध कराने का वचन दिया। विलायत महल की मांग थी कि उन्हें रहने के लिए ऐसी जगह मुहैया कराई जाए, जहां आम आदमी उनकी जिंदगी में ताक-झांक न कर सके। जगह की तलाश खत्म हुई सरदार पटेल मार्ग स्थित सेंट्रल रिज एरिया में ।
10 सितम्बर 1993 को विलायत महल ने आत्महत्या कर ली थी
कहते है की वो गुमनामी से डिप्रेसन में चली गई थी इसलिए उन्होंने अपनी अंगूठी के हीरे को तोड़कर खा लिया था। उनके बच्चो ने पहले उन्हें दफना दिया था, लेकिन 1994 में खजाने के लिए उनकी कब्र को खोदने की घटना के बाद उनके बेटे ने उन्हें निकालकर जला दिया।
राजकुमार की भी मौत होगयी
अवध राजघराने के राजकुमार अली रजा (साइरस) की गुमनामी में मौत हो गई। 2 नवंबर को पुलिस ने उनका कंकाल सेंट्रल रिज एरिया स्थित मालचा महल से बरामद किया था। 58 वर्षीय राजकुमार वहां 25 वर्ष से रह रहे थे। मां और बहन की मौत के बाद अली रजा महल में अकेले थे। उनका बाहर की दुनिया से ज्यादा संपर्क नहीं था।
दिल्ली के टॉप मोस्ट हॉन्टेड प्लेस में होता है शुमार
लोगो का मानना है की बेगम विलायत महल की आत्मा आज भी इसी महल में भटकती है और इसलिए इस जगह को दिल्ली के टॉप हॉन्टेड प्लेस में शामिल किया जाता है।  अब ये हॉन्टेड है या नहीं, पता नहीं, लेकिन इतना जरूर यह जगह रात को डरावनी और दिन में रहस्यमयी नज़र आती है।

3.खूनी दरवाज़ा
खूनी दरवाजा बहादुरशाह जफर मार्ग पर दिल्ली गेट के निकट स्थित है
 मुस्लिम शूर साम्राज्य के संस्थापक शेरशाह सूरी द्वारा बनवाये गये फिरोज़ाबाद के लिये इस द्वार को बनवाया गया था जिसे काबुली बाज़ार के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि अफ्गानिस्तान से आने वाले लोग इस द्वार से गुजरते थे। यह 15.5 मीटर ऊँचा दरवाजा दिल्ली के क्वार्टज़ाइट पत्थर का बना है। खूनी दरवाजे में तीन स्तर हैं जिनपर इसमें स्थित सीढ़ियों के माध्यम से पहुँचा जा सकता है।
22 सितम्बर 1857 को बहादुरशाह जफर के आत्मसमर्पण के बाद ब्रिटिश नेता विलियम हडसन द्वारा मुगल वंश के तीन राजकुमारों का कत्ल कर दिया गया था जिसमें बहादुरशाह जफर के बेटे मिर्जा मुगल और खिज्र सुलतान और पोता मिर्जा अबू बख्र शामिल थे। इसलिये इस गेट का नाम खूनी दरवाजा पड़ा। हलाँकि इसके अलावा इस गेट के नाम के बारे में कई अन्य किंवदन्तियाँ प्रचलित हैं।
जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं-

  • ऐसा माना जाता है कि अकबर के बेटे जहाँगीर ने अकबर के नवरत्नों में से एक, अब्दुल रहीम खानखाना के बेटों को इस गेट पर मरवा दिया था और उनके शरीर को सड़ने के लिये लटका दिया था क्योंकि अब्दुल रहीम ने अकबर के उत्तराधिकारी जहाँगीर के खिलाफ बगावत की थी।
  • ऐसा भी कहा जाता है कि औरंगज़ेब ने अपने बड़े भाई को राजगद्दी की दौड़ में पिछाड़ दिया था और उसके कटे हुये सिर को इसी गेट पर प्रदर्शनी के रूप में लटका दिया था।
  • ऐसा भी कहा जाता है कि जब 1739 में पारस के राजा नादिर शाह ने दिल्ली को लूटा था तब इस गेट पर बहुत रक्तपात हुआ था।
  • स्वतन्त्रता के पश्चात भी 1947 के दंगों में भी खूनी दरवाजे पर काफी रक्तपात हुआ था। पुराना किला स्थित कैंप की ओर जाते हुये कई शर्णार्थियों को यहाँ पर मौत के घाट उतार दिया गया था।

आज यह दरवाजा भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित स्मारक है। हलाँकि वर्ष 2002 में इस गेट पर घटी एक अप्रिय घटना के फलस्वरूप अब इसे पूरी तरह से सील कर जनता के प्रवेश के लिये प्रतिबन्धित कर दिया गया है।

4.भूली भटियारी
लोकेशन
ये महल दिल्ली के करोल बाग में ही है । बस भीड़ – भाड़ से दूर, दक्षिण की ओर बढ़ते एक वीराने में बना है ये ‘भूली भटियारी महल’ । करोल बाग स्थित बग्गा लिंक के बैक साइड से होती हुई एक सुनसान रोड इस वीरान जंगल तक जाती है ।
इतिहास
14 वीं शताब्दी में दिल्ली के तत्कालीन शासक फिरोज शाह तुगलक द्वारा इस शिकारगाह का निर्माण करवाया गया था। जो शिकार वगैरह के न होने के समय सराय के रूप में भी इस्तेमाल की जाती रही थी।
नाम के पीछे का कारण
इतिहासकार इसकी रखवालन  बु-अली-भट्टी के नाम पर इसका नामकरण मानते हैं तो कुछ भटियारा परिवार की महिला जो जंगल में गुम हो गयी थी, के नाम पर इसकी पहचान को मानते हैं, तो कुछ इसकी देख-रेख करने वाली भूरी के नाम पर इसका नाम रखे जाने को अहमियत देते हैं।
लेकिन तुगलक वंश के बाद ये जगह एक सूफी संत का निवास स्थान बनी । इन सूफी साहब का नाम था ‘बू अली बख्यितयारी’ । ये नाम बोलने में इतना कठिन था कि लोगों ने उसे कुछ ‘भूली भटियारी’ कहना शुरू कर दिया । और इसी नाम से महल का नाम ‘भूली भटियारी महल’ पड़ गया ।
नाम के पीछे ये है तीसरी कहानी
वहीं दूसरी कहानी है ये भटियारिन की । भटियारिन यानी राजस्थान के आदिवासी कबीलों की एक महिला जो अपना रास्ता भूल गई । उसे ही ये जगह मिली और वो यहीं की हो गई । इस महिला के बाद इस जगह को ‘भूली भटियारी’ कहा जाने लगा । ये नाम स्थानीय लोगों में प्रचलित हुअा और आज भी इसी नाम से ये जगह जानी जाती है ।
भूतिया कहे जाने वाले इस महल को कुछ समय पहले उन 18 स्मारकों की सूची में शामिल किया गया है, जिसका संरक्षण किया जाना है। दिल्ली पुरातत्व विभाग ने इस संबंध में एक विस्तृत रिपोर्ट भी तैयार की थी। ऐसा दावा किया जाता है कि संरक्षण के बाद इस महल का लुक बदल जाएगा फिर इसे कोई भी भूतिया महल नहीं कहेगा।

5.करबला कब्रिस्तान
यहां आखिरी व्यक्ति को 1985 में दफनाया गया था। यह मध्य दिल्ली के बीके दत्त कॉलोनी में शिया बोरियल ग्राउंड करबाला, विशेष रूप से तज़ियास के अंतिम संस्कार के लिए आरक्षित है। इमाम हुसैन इब्न अली के ताबूत हैं जो प्रॉफेट के पोते हैं।  हर साल मुहर्रम के 10 वें दिन, शाहजहानाबाद के शिया शोक करने वाले, मेहरौली और निजामुद्दीन हुसैन की शहीद मनाने के लिए इकट्ठे होते हैं।
करबाला जमीन भूरी और शुष्क है; कब्र, एक दूसरे से कुछ और दूर, एक खूबसूरत महासागर में आधे-पत्थर वाले जहाजों की तरह दिखाई देती हैं। लेकिन इसमें नीलगिरी, शीशम, केकर, जामुन और ताड़ के पेड़ हैं।
कब्रिस्तान का एक हिस्सा एक नर्सरी में विकसित किया गया है। संलग्नक दीवार मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय (1759 -1806) के शासनकाल में बनाई गई थी। जमीन के केंद्र में सम्राट की पत्नी महा खानम की मकबरा है। यह एक चौकोर इमारत है, हल्का हरा चित्रित है। अंदर, एक सीढ़ी एक घुमावदार कक्ष में जाती है, जिसमें एक संगमरमर की कब्र है। मकबरे के प्रवेश द्वार में एक पानी कूलर है।

6. दिल्ली कैंटोनमेन्ट
पश्चिमी दिल्ली में स्थित दिल्ली कैंट की स्थापना सन 1914 में अँग्रेजों द्वारा करा गया था आज जो कंटोनमेंट बोर्ड दिल्ली,वही फरबरी 1938 तक ये कैंट अथॉरिटी से जाना जाता था।

  • दिल्ली कैंट एक उच्य स्तरीय छावनी बोर्ड है।
  • दिल्ली छावनी में भारतीय सेना मुख्यालय, दिल्ली क्षेत्र है; आर्मी गोल्फ कोर्स; रक्षा सेवा अधिकारी संस्थान; सैन्य आवास; सेना और वायुसेना पब्लिक स्कूल; और कई अन्य रक्षा-संबंधित प्रतिष्ठानों। छावनी में आर्मी रिसर्च और रेफरल अस्पताल और बेस अस्पताल भी भारत की सशस्त्र बलों के एक तृतीयक देखभाल चिकित्सा केंद्र हैं।

वर्तमान में, छावनी कैंटोनमेंट्स अधिनियम, 2006 और समय-समय पर जारी भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय (एमओडी) के विभिन्न नीति पत्रों और निर्देशों द्वारा चलता है।
भूत की कहानी
 इस छावनी में एक कहानी बहुत ज्यादा मशहूर है  ऐसा लोगो का  कहा मानना है कि एक औरत,खुले बाल और सफेद साड़ी में मुसाफिरों से लिफ्ट माँगती है । और जब तक वो नही देता है उसका अपने दायरे तक पीछा करती है लोगो का मानना है कि जिन लोगो ने लिफ्ट दिया इसने उसको मार दिया।
 बहोत लोगो का ये भी कहना है कि इस औरत का एक्सीडेंट हो गया था इसलिए  लोग ज्यादातर ये ही हिदायत देते है कि जब कभी ये भूतिया औरत आपके आगे आ जाए तो आप गाड़ी को रोकिये मत चलते चले जाइए। ऐसे में वो पीछे रह जाती है अपने दायरे को पर नही करती है
 कुछ लोगों का मानना है कि यह भूतनी द्वारका सेक्टर9 के आस-पास भी भटकती हुई नजर आती है।यह भूतनी कौन है और यह आने जाने वालों से क्यों लिफ्ट मांगती है इस बात का पता नहीं चल पाया है।
कुछ कहते हैं कि वह कई दुर्भाग्यपूर्ण लड़कियों में से एक थीं जो बीमार दिमाग की वासना का शिकार हो गईं, जिसे भारत की बलात्कार राजधानी कहा जाता है।

7.म्युटिनी हाउस
यह स्मारक 1857 में मारे गए सिपाहियों की याद में अंग्रेजों ने बनवाया था। हां, यादें और साए अभी भी इस इमारत के आसपास रहते हैं। इसलिए इसे डरावना माना जाता है।

8.फ़िरोज़ शाह कोटला किला
इतिहास
दिल्ली के पाँचवे शहर फ़िरोज़ाबाद के इस महल का निर्माण सुल्तान फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ ने करवाया था। कहा जाता है कि कभी ये भव्य किला हुआ करता था जिसमे कई बेशकीमती पत्थर लगे होते थे जिनका नामोनिशान आजकल इधर नहीं मिलता। समय के बीतने के साथ दक्षिण (दीनपनाह और शेरगढ़ ) और उत्तर(शाहजहाँनाबाद) में शहरों के निर्माण के लिए इधर से इन बेशकीमती पत्थरों को निकाल लिया गया था। वैसे फिरोजाबाद के निर्माण के लिए भी सामान पुराने शहरों जैसे सिरी, जहापनाह और लाल कोट से ही लाया गया था। अग्रेजी की कहावत व्हाट गोज अराउंड कम्स अराउंड इधर चरित्रार्थ होती है।
किले में देखने लायक हिस्से हैं :

  • किले के खंडहर जिन्हें कि अब तक  सुरक्षित रखा गया है।
  • बावली यानी एक कुआँ। यह कुआँ अब  खुला हुआ नहीं है। 2014 में इसमे कूद कर एक व्यक्ति ने आत्महत्या कर ली थी और इसी कारण इसे बंद रखा हुआ है। इसके चारो ओर एक धातु की फेंस का निर्माण कर दिया गया है जिसके कारण पर्यटक इसमें प्रवेश नहीं कर सकते हैं। इधर एक बोर्ड लगा हुआ था कि यह कभी किले के लिए पानी का मुख्य स्रोत हुआ करता था। यह अभी भी इधर के बागों को पानी देने के काम आती है।
  • एक पिरामिडीय इमारत  जिसके सबसे ऊपरी हिस्से पे एक अशोक स्तम्भ स्थापित किया हुआ है। इस इमारत का निर्माण इस स्तम्भ को स्थापित करने के लिए ही किया गया था। इस स्ट्रक्चर के हर हिस्से में कई कोठरियाँ बनी हुई हैं जिनके अन्दर लोग दिया बत्ती करते हैं।

किले के ऊपर का अशोक स्तम्भ
किले के ऊपर जो अशोक स्तम्भ रखा हुआ है। इस स्तम्भ के विषय में कहा जाता है कि इसे राजा अशोक ने 273  से 236 ई.पू में अम्बाला हरयाणा में खड़ा किया था। फिर फ़िरोज़ शाह तुगलक इसे दिल्ली लाया था और इसे उसने इधर लगवाया था। पहले वो इसे तोड़कर इसका दोबारा उपयोग करना चाहते थे लेकिन फिर तुगलक ने इसे ऐसे ही मस्जिद के सामने लगवा दिया। इसमें ब्राह्मी में  कुछ सन्देश अंकित किये हुए हैं जिनका मतलब उस वक्तयानी 1356 में  उन्हें पता नहीं था। लगभग 500 साल बाद 1837 में जेम्स प्रिन्सेन नामक शख्स ने इनका अनुवाद किया बाकी मिली स्तंभों और शिलालेखों की मदद से किया।

9.खूनी नदी, रोहिणी
असल में उद्गम
रोहिणी अथवा रोहिणी नदी का उद्गम नेपाल के लुम्बिनी क्षेत्र के रूपनदेई और कपिलवस्तु जिलों में शिवालिक पर्वत की चौरिया पहाड़ियों से होता है और यह दक्षिण की ओर बहते हुए भातरीय राज्य उत्तर प्रदेश में प्रवेश करती है। गोरखपुर के पास यह राप्ती नदी में बायीं ओर से मिलती है जो इसके बाद गौरा बरहज में घाघरा में मिल जाती है तथा घाघरा बाद में गंगा में मिलती है।
लेकिन आज का माहौल
रोहिणी के कम शोर गुल वाले इस इलाके में यूं भी कम लोग आते हैं। नदी के आसपास कोई नहीं जाता है। कारण, नदी के किनारे लाश मिलना। हत्या, आत्महत्या, दुर्घटना कारण चाहे जो हो, यहां नदी किनारे लाशें मिलना आम बात हो गई है। यही कारण है कि लोग इसे डरावनी जगहों में शुमार करते हैं।

10.हाउस नंबर डब्ल्यू-3
कहा जाता है दिल्ली के सबसे पॉर्श इलाकों में से एक ग्रेटर कैलाश-1 के हाउस नंबर डब्ल्यू-3 पर जाने से हर कोई कतराता है। इस घर में एक बुजुर्ग दंपत्ति की हत्या कर दी गई थी और उनके शव को करीब एक महीन के बाद घर की टंकी से निकाला गया था। घर के आसपास रहने वाले लोगों का कहना है कि इस घटना के बाद से उन्हें यहां रोने और चीखने-चिल्लाने की आवाजें कई बार सुनाई देती हैं।

11.संजय वन
दशा
 संजय वन भारत के दिल्ली में वसंत कुंज और मेहरौली के पास एक विशाल शहरी  वन क्षेत्र है। यह लगभग 783 एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ है। यह शहर के ग्रीन लुंगस के सबसे मोटे तौर पर जंगली इलाकों में से एक है।
चिंता का विषय
 जंगल जो की मेहरौली दक्षिण मध्य रिज का हिस्सा है, इसमे हाल के दिनों में प्रोसोपिस जूलिफ्लोरा पेड़ के प्रसार में  गंभीर गिरावट आई है, जो अरावली रेंजसंद के लिए गैर-स्थानिक है, जिससे भूजल स्तर में कमी आई है, मूल वनस्पति की हत्या हुई है और अरवलिस की प्राकृतिक मिट्टी की विशेषताओं को बदलना। सीवेज पानी और प्रदूषण जिसे संजय वन में छोड़ा जाता है, इसने राजधानी में इस हरे रंग की बेल्ट को भी प्रभावित किया है।
जंगल की कहानी
इस जंगल में बहुत से पुराने बरगद के पेड़ हैं इसलिये यहां पर आने वाल कई शिकारी बताते हैं कि उन्होंने एक औरत को सफेद कपड़ों में बरगद के पेड़ के पीछे छुपते हुए देखा है।
बहुत से लोगों का कहना है कि यहां उन्होंने भूतों और चुड़ैलों को देखने के अलावा कई बार बच्चों के रोने की आवाजें भी सुनी हैं।

Thursday, June 13, 2019

फ़िल्म रिव्यु: 'एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा'

फ़िल्म- 'एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा'
डायरेक्शन- शैली धर
लेखिका- ग़ज़ल धालीवाल

निहायत ही दिलचस्प हल्की फुल्की कहानी का ताना बाना जोड़ती यह फ़िल्म 'होमोसेषुअलिटी' की बात करती है। गाने, कॉमेडी, इमोशन्स को समेटे यह फ़िल्म अपने दर्शको के साथ न्याय करती नज़र आती है। हालाँकि ट्रेलर देखकर ऐसा कतई नहीं लगा था की इसका मुद्दा होमोसेषुअलिटी है।
बचपन से लेकर जवानी तक हमे हमारे 'सभ्य समाज' के द्वारा बनाई गयी एक महिला और पुरुष की परफेक्ट इमेज वाली डेफिनेशन में फिट करवाया जाता है। हालाँकि एलजीबीटीक्यों की आवाज़ एक गूंज बनके जब देश की सबसे बड़ी अदालत की चौखट पर पहुंची तो धारा 377 को निरस्त करना पड़ा।


तो कहानी क्या थी?
तो कहानी यह थी कि स्वीटी चौधरी जिसका किरदार सोनम कपूर निभा रही थी अपने भाई बबलू (अभिषेक दूहा) से भागते हुए साहिल मिर्जा (राजकुमार राव) के नाटक रिहर्सल में पहुंच जाती है।
लव एट फर्स्ट साइट को कुछ ज्यादा ही सीरियसली ले गए हमारे साहिल साहब पहुँच जाते हैं लड़की के घर मोगा। बाद में चलकर जिसमे पता चलता है कि स्वीटी को लंदन में रह रही कुहू (रेगिना कसांड्रा) नाम की लड़की से प्यार है। स्वीटी के भाई बबलू को ही केवल उन दोनों की सच्चाई का पता होता है। होमोसेषुअलिटी को 'बीमारी' का नाम देने वाला बबलू स्वीटी की शादी जल्द-से-जल्द किसी लड़के से करवाना चाहता है। ऐसे में साहिल यह ठान लेता है की वह स्वीटी के घरवालो को समझा कर रहेगा की यह कोई बीमारी नही है। अनिल कपूर जो स्वीटी के पिता का किरदार निभा रहे हैं को जूही चावला जिसका कैटरिंग का बिज़नस होता है से प्यार होजाता है।

एक्टिंग कैसी रही?
राजकुमार राव की एक्टिंग हमेशा की तरह माइंड ब्लोइंग रही। अनिल कपूर और सोनम कपूर ने भी बेटी-बाप के किरदार को जीवित करने का कम बखूबी किया है। साउथ की जानी मानी एक्ट्रेस रेगिना का भी स्क्रीन प्रजेंस काफी अच्छा था, हालाँकि इनका ज्यादा रोल नही था।

डायरेक्शन और संगीत?
ट्रेलर आते ही फ़िल्म का टाइटल ट्रैक 'एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा' पहले ही हिट हो चुका था। गुड नाल इश्क़ मिट्ठा के साथ दूसरे गाने आपको काफी इम्प्रेस करेंगे। इसमें म्यूजिक दिया रोचक कोहली ने जो काबिले तारीफ है। एक्टिंग, डायरेक्शन, सिनेमेटोग्राफी अच्छी है। कम और ज्यादा के बीच रहती यह फ़िल्म रियल लोकेशन पर शूट की गयी है।

फ़िल्म का अंत?
क्लाइमेक्स थोडा और बेहतर हो सकता था, अगर होता तो चार चाँद लग जाते। कुल मिलकर यह फ़िल्म औसत रही बीएस अंत और बेहतर ढंग से पेश किया जा सकता था। 

Wednesday, June 12, 2019

मालचा महल : एक अनसुना सच


चित्र साभार: गुगल
महल चाहे किस भी हाल में हो अपना बखान करने से कभी नही चूकता। ऐसा ही है मालचा महल कहा जाता है वहां भूतों का वास है, आस पास के लोग तो यह भी कहते हैं कि रात में उस महल से न जाने कैसी कैसी डरावनी आवाज़ें आती हैं। इसके पीछे का सच क्या है यह तो बस वो खंडर हो चुका महल जानता है।
तो क्या थी कहानी मालचा की?
दिल्ली के दक्षिण रिज़ के बीहड़ों में छुपा ‘मालचा महल’। कहते हैं अवध राजघराने की बेगम विलायत महल के आग्रह पर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा ये महल उन्हें आवास के रूप में दिया गया था। बेगम विलायत महल अपने दो बच्चो प्रिंस रियाज़ और बेटी  व 9 कुत्ते और 7 नौकरों के साथ यहां आकर बस गयी थी। कुछ दिन बाद सभी नौकर उन्हें छोड़कर चले गए कहते हैं नौकरों द्वारा चोरी के कारण बेगम विलायत महल बेहद आहत हुई। आस पास के गाँव वालों द्वारा काफी परेशान किये जाने पर बेगम विलायत महल ने आत्महत्या कर ली अभी माँ के जाने का दुःख खत्म भी नही हुआ था कि कुछ साल बाद बहन भी गुज़र गयी। आस पास के लोगों द्वारा काफी परेशान किये जाने पर प्रिंस को एक पिस्तौल भी दी गयी थी जिससे उन्हें शूट-एट-साइट के आर्डर दिए गए थे।
समाज के प्रति रवैया?
कहते हैं बेगम विलायत महल द्वारा केवल एकबार ही इंटरव्यू दिया गया है वह भी किसी विदेशी चैनल को। उनका मानना था कि हम शाही लोग हैं हमें आम इंसानो से बात करना उनकी तरह रहना या उनसे मिलना मिलाना शोभा नही देता। आज के ज़माने में न नौकरी, न गुज़ारे के लिए कोई भत्ता, न कोई दोस्त (हालांकि भारत सरकार द्वारा कुछ पैसे दिए जाते थे) समाज में रह कर समाज से भला कहाँ कटा जा सकता है।

https://www.scoopwhoop.com/Malcha-Mahal-haunted-tragic-story/

आस पास वालों का कहना है कि प्रिंस काफी कम लोगो से बातें करते थे। न ही वो मिलनसार थे और न ही उनके कोई दोस्त, हालांकि सब्जी,दूध और रोज़मर्रा की चीज़ों के लिए वह अपनी साईकल से ही बाहर निकलते थे। परिवार का न होना इंसान को बहुत अकेला करदेता है। 2016 में प्रिंस भी चल बसे अब यह महल सरकार के अधीनस्थ है।
ऐसे में सवाल क्या बनता है?
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या हम इतने असंवेदनशील हैं कि एक परिवार जो अपने हिसाब से ज़िन्दगी जीना चाहता है हम उसे भी इस हद तक परेशान करदें की वह आत्महत्या कर ले? या क्या हम समाज मे ही रहकर समाज से कट सकते है? आखिर क्या मजबूरी थी बेगम विलायत महल की कि उन्हें एक आम ज़िन्दगी तो जीना मंजूर थी लेकिन किसी से मदद लेना मंजूर नहीं था।
दिल्ली में ऐसे न जाने कितने महल, किले, हवेली, रोड़ हैं जो अजीबों गरीबों चीज़ो के लिए जाने जाते है। कुछ लोग इन्हें भूतियां कहकर पीछे हट जाते हैं और कुछ लोग तांत्रिक चीज़ो से सरोबार कहकर।
आखिर किसी महल का भूतियां हो जाना क्या दर्शाता है? या कोई जगह जब खुद अपने बारे में चिल्ला चिल्लाकर बताती है तब उसे भूतियां कहा जाता है?

Tuesday, June 11, 2019

महिला: एक वस्तु?


क्या था मुद्दा ?
जून 2018 में अमेज़न ऐशट्रे आने के बाद मानो बाढ़-सी आ गयी थी। देशभर के लोगो ने जमकर इसका विरोध किया चाहे वो फेसबुक पर पोस्ट के माध्यम से हो चाहे ट्विटर पर ट्वीट या फिर सीधा अमेज़न पर रिपोर्ट करने से हो। हालांकि ये पहली बार नही था जब देशभर में लोगो द्वारा किसी अमेज़न प्रोडक्ट का विरोध किया गया हो। इससे पहले जनवरी, 2017 में भी भारतीय tricolour themed doormat के आने पर स्वयं विदेश मंत्री सुषमा स्वराज द्वारा इसकी कड़ी निंदा की गई थी जिसमे उन्होंने सभी अमेज़न ऑफिसर का वीसा रद्द करने की चेतावनी दी थी जिसके चलते बकायदा अमेज़न ने एक माफ़ीनामा भी दिया था। सिलसिला यही खत्म नही होता जूते और जूते के फीते पर तिरंगा जैसा प्रिंट (ADE indian flag women's chukka canvas shoe M003), राष्ट्रीय चिन्ह अशोक चक्र भी डॉग-टी-शर्ट (mahatma gandhi silhouette funny dog coats) पर एवं गांधी फ्लिप फ्लॉप के नामसे एक प्रोडक्ट जिसमे गांधी जी की प्रिंटेड फ़ोटो थी खैर एकबार फिर रिपोर्ट करने पर इन सारे प्रोडक्ट्स को अमेज़न की साइट से हटा दिया गया।

हद्द तो तब हुई जब 'अमेज़न ऐशट्रे' नामक एक प्रोडक्ट अमेज़न इंडिया की साइट पर आया हर बार की तरह पहले इसे अमेज़न इंडिया से और फिर इंटरनेशनल साइट से इसे हटा दिया गया।

अमेज़न के प्रोडक्ट व उनके चित्र

यह प्रोडक्ट आपत्तिजनक क्यों था?
बता दूं कि अमेज़न इंडिया पर 'tripolar creative ashtray' नाम से यह प्रोडक्ट बेच जा रहा था। डिज़ाइन कुछ ऐसा था कि महिला को आपत्तिजनक स्थिति में दिखाया गया था। इस ऐशट्रे को एक लड़की का रूप दिया गया है जो एक टब में लेटी हुई है और उसके तन पर नाममात्र के कपड़े हैं। यह लड़की अपने पैर चौड़े किये लेटी हुई है और उसकी वेजाइना स्मोकर के लिए खुली हुई है। 'क्रिएटिविटी' के नामपर लोगो को बताया जा रहा है कि लड़की की वेजाइना में सिगरेट घुसाकर बुझा सकते हैं।

विचार कीजिये, आपने ऐसा एक प्रोडक्ट ख़रीदा क्योंकि वो आपको आकर्षित लगा या चलिए मान लीजिये की वो आपको किसी ने तोहफे में ही दिया है। पहले आप थोड़ा हिचकते है अपनी सिगरेट को बुझाने में लेकिन उसके बाद आप उसे बुझा देते है आखिरकार वह केवल ऐशट्रे ही तो है और आप किसी को असल में तो नुकसान नहीं पहुचा रहे है? लेकिन जैसे जैसे आप अपनी एक एक सिगरेट उसके वेजाइना में बुझाते है अवचेतन रूप से आप इस विचारधारा में धसते जाते है कि महिला का एक वस्तु के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।

भारत जैसै देश में ऐसा प्रोडक्ट?
एक ऐसे देश में जहाँ महिलाएं शुरू से प्रताड़ित होती आयी हैं। जहां हर मिनट कोई बलात्कार होता है वहां इस तरह का प्रोडक्ट बेचना मानवता को भी शर्मसार करने जैसा है। जिस देश में निर्भया केस हुआ है जिसमे एक लड़की के प्राइवेट पार्ट में सरिया घुसाकर इंसानियत को कुचलने के काम किया गया वहां इस तरह के उत्पाद लोगो की विकृत मानसिकता को और बढ़ावा देने का काम करेगा। दुख तो इस बात का है कि एकबार फिर आवाज कुछ पलों के लिए उठी और हमेशा की तरह केवल फाइलों, पोस्ट्स और कमैंट्स में ही दबकर रह गयी कबतक देश की बेटी, बहन, माँ को शारीरिक व मानसिक तौर पर प्रताड़ित किया जाएगा? प्रताड़ना का शिकार कुछ महिलाओं ने तो जैसे हालातो से समझौता-सा कर लिया है।

प्रश्न क्या है?
प्रश्न तो यह है कि क्या केवल अमेज़न ही  इसके लिए जिम्मेदार है? केवल प्रोडक्ट को साइट से हटा देना ही इस समस्या का हल है?

भारत के मेले: छत्तीसगढ़ का 'मड़ई मेला' जहां मिलता है औरतों को संतान प्राप्ति का आशीर्वाद

ये छत्तीसगढ़ में लगने वाला एक मेला है, गंगरेल मड़ई। दीवाली के बाद पहले शुक्रवार को यह मड़ई मेला आयोजित करवाया जाता है। इस साल भी लगा था। जो इन ...