हमारे यहां लड़कियों की ज़िन्दगी में पिता का रोल बेहद कम होता है। हम बचपन से लेकर बड़े होने तक माँ के साथ ज्यादा घुलमिलकर रहते हैं। पिता अक्सर हमारी ज़िन्दगी में कम ही रहते हैं। लेकिन फिर भी एक लड़की अपनी ज़िन्दगी में आने वाले लड़के में अपने पिता जैसे गुण देखना चाहती है। मुझे नहीं याद है मेरे पिता ने आखिरी बार मेरा माथा कब चूमा था। शायद जब मैं पैदा हुई होंगी तब। शुरू से लेकर आजतक मैंने अपनी पसन्द, नापसन्द, परेशानियां, खुशियां, दुख, बचपन में लगी चोट, दोस्तों से हुई लड़ाई सबकुछ अपनी माँ को ही बताया है। ऐसा नहीं है कि पिता अपनी बेटियों को प्यार नहीं करते। मुझे लगता है एक माँ से ज्यादा पिता अपनी बेटियों को प्यार करते हैं। जो पिता अपनी बेटियों को नहीं बता पाते हैं कि वो उन्हें कितना प्यार करते हैं उन्हें शायद पत्र लिखकर बता देना चाहिए। ज़िन्दगी में एक बार ही सही लेकिन दुनियां के सभी पिताओं को अपनी बेटियों को एक पत्र तो जरूर लिखना चाहिए।
जवाहरलाल नेहरू ने भी अपनी बेटी इंदिरा को लिखे पत्रों में देश-दुनियां की सभी बातें बताई थी। किताब को पढ़ते हुए एक दफा भी ऐसा नहीं लगा कि ये किसी एक के लिए लिखे गए पत्र हैं। इंदिरा गांधी जब मसूरी में थी तब जवाहरलाल नेहरू इलाहाबाद से उनको पत्र लिखा करते थे। वह केवल 10 साल की थी। बाद में चलकर इन पत्रों का संग्रह ही 'पिता के पत्र पुत्री के नाम' किताब बनी। इस किताब में 31 पत्र हैं जो नेहरू ने 1928-29 में लिखे थे। यह शायद आजतक की पढ़ी हुई मेरी सबसे सरल किताब है। मानव सभ्यता के बारे लिखी गयी सबसे आसान और सरलतम किताब है। संसार का इतिहास, मानव सभ्यता, जातियों का बनना, मज़हबों के नाम पर बंटना, रामायण-महाभारत, विश्व युद्ध, काम का बंटवारे, हमारे आसपास के समाज की संरचना से लेकर रेसिस्म तक सभी कुछ लिखा गया है। मूड को एकदम लाइट करने वाली किताब है।
ये किताब के कुछ अंश हैं:
1. प्रकृति: ये पहाड़, सितारे, नदियां, जंगल, जानवरों की पुरानी हड्डियां और इसी तरह कई चीज़ें वे किताबें हैं जिनसे दुनियां का पुराना हाल मालूम होता है। मगर हाल जानने के लिए केवल दूसरों का लिखा ही पढ़ना काफी नहीं है जरूरी है कि हैं संसार-रूपी किताब को पढ़ें। संसार एक ऐसी किताब है जो हमेशा हमारे सामने खुली रहती है। अगर हम इसे पढ़ना सीख लें तो ना जाने कितनी कहानियां हमे इसके पत्थरों के पृष्ठों में मिलेगी जो किसी भी परियों की कहानी से ज्यादा खूबसूरत होंगी।
2. आदमी, जानवर और रेसिस्म: आदमी और जानवर में सिर्फ अक्ल का फर्क है। इस अक्ल ने आदमी को उससे बड़े बड़े जानवरों से ज्यादा ताकतवर बना दिया। सभी इंसान एक ही हैं। बस आबोहवा का फर्क है। सभी का एक रंग है काला, गोरा का उसके इंसान होने पर कोई फर्क नहीं पड़ता।
3. सभ्यता: अच्छी-अच्छी इमारतें, तस्वीरें, किताबें और तरह तरह की खूबसूरत चीज़ें सभ्यता की पहचान है। मगर एक भला आदमी जो स्वार्थी नहीं है और सबकी भलाई के लिए दूसरों के साथ मिलकर काम करता है सभ्यता की सबसे बड़ी पहचान है।
हमारे बचपन के सिलेबस में ऐसी किताबें जरूर रखनी चाहिए। मानव सभ्यता के बारे में लिखी गयी मोटी-मोटी पोथियों वाली किताबों से इतर ऐसे पत्र और ऐसी सरल भाषा वाली किताबें आज के दौर की जरूरत है। घृणा, कपट, छल, आतंक और ज़हर से भरे समाज में पल रहे बच्चों को जटिल नहीं ऐसी ही सरल किताबों की जरूरत होने वाली है। क्योंकि ऐसी किताबें ही उनके बचपन को बचाये रखेंगी।